करुणा निधान भगवन श्री राम




२८ -०३-२०१५ को राम नौवी का महोत्सव भी मान्या जायेगा |भगवान् श्री राम का जन्म चेत्र मास शुक्ल पक्ष नौवी के अभिजित महूरत में हूआ था |गोस्वामी तुलसी दास जी के अनुसार वशंत ऋतू चेत्र मास सुक्ल पक्ष नोवी तिथि दिन का अभिजित न अधिक धुप न ठण्ड में क्रपालु भगवानश्री राम का अयोध्या नरेश दशरथ कौसल्या सुतने जन्म लिया |जिस समय भगवन श्रीराम का जन्म लिया उस समय भृष्ट आचरण विश्व की मुख्य समस्या बन गया था |
रावण सुभायु मारीच का आतंक जग जाहिर था | गोस्वामी तुलसी दास नेमानस में जिन परस्थितियो का वरन मानस में किया है |उस के अनुसार ब्र्श्ताचार देश के ही नहीं विश्व की समस्या था |जिसे रघुकुल नंदन राम द्वरा दूर किया गया |जिनका वरण सुनकर ही सरीर के रोगटे खड़े हो जाते है |यानि दानव प्रवर्तियाइतनी बलवान थी कि राक्षस ऋषि मुनियों को जीवत ही खा जाते थे |जो लोग जप तपभजन साधन करते थे उनके ग्राम भवन सभी जलादिये जाते थे |
मुझे मानस की एक कथा व्यप्त भ्रष्टाचार को लेकर स्मरण हो रही है कि बनवासी राम जब चित्र कुट से पंचवटी की और प्रस्थान कर रहे थे तब रास्तेअगस्त मुनि के प्रभु आश्रम गए तथा उन्हें अपने रहने को स्थान पूछा अगस्त मुनि द्वरा करुनानिधान भगवानको उस क्षेत्र का दर्शन कराया जहाँ ऋषि मुनियों के सरीर को जीवत अबस्था में ही असुरो नेखा लिया था तथा जिनके अबशेष ही बाकीथे |जिन की कथा सुनकर तथा दर्शन कर के भगवन राम रो पड़े तथा इस आतंक को विश्व की समस्या मानकर उसी छनभुजा उठाकर इस प्रथ्वी को असुर विहीन करने का निर्णय लिया तथा अपने वनोवास कालमें जगह जगह जाकर ऋषि मुनियों को निर्भय किया तथा असुरो का नास किया इतना ही नहीं प्रभु नेसमाज के अछूते दिन दुखी लोगो को सहारा दिया |भगवन श्रीराम नेअपने जीवन कालमें केवल मानव मात्र का कल्याण किया एसा नहीं था |प्रभु के सरल आचरण के कारण पेड पौधे जीव जंतु सभी करुणा निधान भगवानश्रीराम की महमा का गुण गान करने लगे थे |इस बात का प्रमाण आज भी है कि राम क्रपा से पत्थर तैर गए सैकड़ो वर्षो के बाद राम सेतु के रूप में आज भी मोजूद है जो विश्व में जीता जगता उदारहण है |जिस से कोई अछूता नहीं है |
राम करुणामयी -एक सज्जन नेमुझ से पूछा की माँ जानकी प्रभु को करुनानिधान क्यों कहती थी ?मेने उत्तर दिया कि प्रभु करुणा निधान ही थे |मुझे एक कथा भगवानश्री राम जी के चरित्र की याद है |कि पंचवटी पर जब प्रभु खर दूषण से अकेले युध कर रहे थे |प्रभु ने कौतिक कर खर दूषण का वध किया इस के बाद कुछ असुर जो अपने प्राण गवाना नहीं चाहते थे प्रभु शरण में आये और प्रभु से पूछा की भगवानआप युध में किसी को जीवन दान देतो हो ,प्रभु मुस्कराए और बोले जो यधमें मुझे पीठ देखकर भाग जाता है में उसे जीवन दान देता हूँ |इतनी बात सुनी वह असुर युध से भाग खड़े हूए तथा प्रभु नेउन्हें छोड़ भी दिया |
एसे दयालु हे मेरे राम 

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कोहू न काहू क़र सुख दुःख दाता |निज कृत कर्म भोग फल पाता||  
गरल सुधा रिपु करें  मिताई ,गोपद सिन्धु अनिल सितलाई .
गरुण सुमेर रैन सम  ताहि ,राम कृपा कर चितवें जाहि  ..
Pt.Shriniwas Sharma
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