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दीपावली पर लक्ष्मी पूजन (विधि सूक्षम पञ्च उपचार )

दीपावली पर लक्ष्मी पूजन (विधि सूक्षम पञ्च उपचार ) प्रस्तावना :- धन की देवी लक्ष्मी का पूजन सभी कामनाओं को पूरण करनें वाला है। देवी लक्ष्मी जिस घर में वास करती है उनकी सम्पूरण कामनाएं पूरण होती हैं तथा परिवार में शांति रहती है इसमें कोई संदेह नहीं है। इसीलिए दीवाली के दिन धन की देवी लक्ष्मी का पूजन बड़ी धूम धाम से करते हैं।  लक्ष्मी पूजन दीपावली पर  ही विशेष क्यों ? वैसे शरद पूर्णिमा वर्ष में आनें वाले नवरात्रे महीनें के दोनों पक्षों की तिथी  अष्टमी अमावस्या और पूर्णिमा इन सभी तिथियों माँ भगवती लक्ष्मी की पूजा कर आशीर्वाद द्वारा सफलता प्राप्त की जा सकती है। इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन दीवाली के दिन ही लक्ष्मी पूजन विशेष फलदायी सिद्ध होता है इसके दो कारन हैं . नम्बर -1 रामराज की स्थापना  कहा जाता है की अत्याचारी रावन पर विजय प्राप्त करनें वाले जन जन के प्रिय भगवान् श्री राम का राज्य तिलक दीवाली वाले दिन ही हुआ था .जिस से भूलोक पर जन मानस में ख़ुशी की लहर थी। देवता भी अत्यंत प्रसन्न थे। गोस्वामी तुलसी दस जी के अनुसार भगवान् शिव देवराज इंद्र व नारद नें स्वयं पृथ

2012 का दीपावली पर्व का महत्व

2012 का दीपावली पर्व का महत्व दीपावली हिन्दुओं के मुख्य पर्वों में से एक है। दीपावली के दिन लोग परिवार में शांति एवं सद्भावना हेतु ऋद्धी  सिद्धी के दाता  गणेश एवं लक्ष्मी का नारायण के साथ पूजन होता है।। धन देने वाली लक्ष्मी अन्य देविओं की तरह सभी सुलाक्ष्नो से युक्त हैं इसके आलावा उनमें खास बात यह है की वो अज्ञान व अन्धकार से दूर रहनें वाली शांतिप्रिय हैं .यही कारण है की समुद्र मंथन से उत्तप्न लक्ष्मी नें भगवान् विष्णु को अपना पति इसलिए चुना के उनका चित्त शांत था .संसार में उनकी पूजा सदभावना के साथ साथ शांतिप्रिय होने के कारण होती रही है। इसलिए दीपावली पर्व अन्ध्लार को दूर करनें वाला धन और ज्ञान देने वाला एवं सभी कामनाओं को पूर्ण करनें वाला कहा जाता है। शास्त्र अनुसार लक्ष्मी का वाहन उल्लू मन गया है जिसे मात्र रात्री में ही दिखाई देता है।इस से स्पष्ट है की लक्ष्मी का वास ताम अन्धकार का नाश करने वाला ज्ञान ,धन व शांति देने वाला है। लक्ष्मी गुणों की देवी है,अवगुण व अज्ञान से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। दीवाली के दिन इसलिए जो लोग जुआ आदि खेलते हैं या मदिरा पान करते हैं भगवती लक्ष्मी का

शरद पूर्णीमा पर्व संतान प्राप्ति का साधन

शरद पूर्णीमा पर्व संतान प्राप्ति का साधन शरद पूर्णिमा मन की सभी अभिलाषाओं को पूरण करने वाला अनोखा पर्व माना गया है। इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होता है . यह भी कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को भगवान् श्री कृषण नें महारास रचाया था जिसमें सभी देवता उपस्थित हुए थे . मानाजाता है की शरद पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्र देव धरा पर अमृत वर्षा करते हैंजिस से की धरा पर सभी रोग और शोकों का नाश हो  धन धन्य की वृद्धि हो सके . शरद पूर्णिमा के दिन संतान प्राप्ति हेतु व्रत करनें का भी विधान है शास्त्रों में कहा गयाहै इस दिन व्रत धारण कर देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है .लक्ष्मी पूजन  में श्रीसूक्त व  कनक धारा  स्त्रोत्र  का   
कन्या राशी में शनि मंगल की युति जनता के लिए कष्टकारी सिद्ध होगी (22 जून से 5 अगस्त ) ज्योतिषीय ग्रहों के आधार पर उत्पन्न परिस्थिति का अवलोकन तथा निर्णय करती है ज्योतिष के अनुसार 22 जून 2012 से मंगल सूर्य की राशी सिंह का त्याग कर बुध की  राशी कन्या में गोचर करेगा जहाँ पहले ही शनि का मार्गीय अवस्था में गोचर है। शनि एवं मंगल की युति ज्योतिष में भिन्न कारक होनें के कारण किसी भी स्थिति में  नहीं मानी जाती है। ज्योतिष अनुसार मंगल अग्नि तथा बल का कारक है तो शनि जनता मल ,दरिद्रता आदि का कारक माना गया है ,जो किसी भी स्थिति में शुभ नहीं होती शनि एवं मंगल की युति कन्या राशी में होनें के कारण व्यापर एवं बुद्धिजीवी वर्ग पर सबसे जयादा असर पड़ेगा किओं की कन्या राशी का स्वामी बुद्ध है . इसके साथ साथ अग्नि से सम्बंधित परेशानी जैसे बम्ब ब्लास्ट ,अग्नाय घटनाएं होंगी एवं रेल यातायात पर बुरा प्रभाव पड़ेगा इस युति के प्रभाव स्वरुप आतंकवादी गतिविधि बढेंगी तथा देश की कुंडली के तीसरे घर में गोचर का प्रभाव होनें के कारण पडोसी राष्ट्रों से धोखा एवं देश के मित्रवत सम्बन्ध कमजोर हो सकते हैं इसके साथ साथ देश के

बुद्ध क़ा राशी परिवर्तन -अग्नि सम्बन्धी घटना क़ा योग

बुद्ध क़ा राशी परिवर्तन -अग्नि सम्बन्धी घटना क़ा योग  ज्योतिष के आधार पर इन दिनों बुद्ध नें गुरु कि राशी मीन को त्याग कार मंगल कि राशी मेष में प्रवेश किया है. सूर्य और गुरु पहले ही इस घर में गोचर क़र रहे हैं सूर्य इन दिनों मंगल के नवांश वृश्चक एवं मंगल के ही नक्षत्र भरनी में है गुरु अपनें नवांश तथा मंगल के नक्षत्र कृतिका में है इसके साथ साथ बुद्ध मंगल के नवांश एवं मंगल के नक्षत्र अश्विनी में स्थापित है.ये स्थिति अग्नि से सम्बंधित घटना है.यातायात यान वहां कि त्रुटी कि ओर संकेत देती है.जिस क़ा सम्बन्ध मौसम के परिवर्तन या जलीय तत्व के आधार पर होने कि सम्भावना है. इस समय गोचर में केतु क़ा शुक्र के नक्षत्र रोहिणी में गोचर होने के कारण दुर्घटनाओं के साथ साथ चोरी एवं लूट कि वारदातें भी संभव हैं वार्दात्कारी इन घटनाओं को सक्रिय रूप देने हेतु नई तकनीक क़ा सहारा ले सकते हैं यह योग भारत वर्ष कि कुंडली के दक्स्वें घर में बनता है. जो संसद क़ा घर कहलाता है. अतः बुद्ध के गोचर परिवर्तन से राजनीति पर भी बड़ा असर पड़ेगा ,बड़े पैमाने पर राजनैतिक उतार  चदाव हो सकते हैं जिस से लोकतंत्र प्रभावित होगा

सूर्य का मेष राशी में प्रवेश

सूर्य का  मेष  राशी  में  प्रवेश १३ अप्रेल २०१२ दिन शुक्रवार को सूर्य गुरु की राशी मीन को त्याग कर मंगल की राशी मेष में प्रवेश करेगा परिणाम स्वरुप उस समय गुरु एवं सूर्य गोचर वश मेष राशी में हो जायेंगे . इस के साथ साथ शुक्र का संचार वरिश राशी में होने के कारण सूर्य से आगे होगा एवं बुद्ध का संचार मीन राशी में होनें के कारण सूर्य से पीछे होगा .सूर्य का शुक्र के दिन मंगल की राशी मेष में प्रवेश करना इस बात का प्रतीक है की उत्तर के देशों में अशांति एवं युद्ध की परिस्थिति उत्त्पन्न   होगी  तथा जनता में भय व्याप्त होगा एवं पूर्व के देशों में सुख और समृद्धि बरकरार रहेगी . सूर्य सक्रांति के अनुसार इस मॉस में ५ शनिवार और ५ रविवार हैं मॉस में ५ शनिवार होनें के कारण प्राकृतिक  प्रकोप अग्नि भय भूकंप आदि की सम्भावना बढ जाएगी .५ रविवारों के कारण राजनैतिक संकट उपद्रव की घटनाएं बढेंगी ,समाज में सरकार की नीतियों की बड़े पैमानें पर आलोचना होगी जिस के चलते कहीं कहीं युद्ध के से वातावरण पैदा हो सकते हैं .सूर्य का वासु की नाडी में स्थित होनें के कारण तथा मंगल का अम्रता नाडी में स्थित होनें के कारण कुछ स्

नव वर्ष का वर्षफल--2012-2013

नव  वर्ष  का  वर्षफल  हिन्दू नव वर्ष का शुभारम्भ दिनांक २३ मार्च २०१२ दिन शुक्रवार छात्र शुक्ल प्रतिपदा से होगा .इस नव वर्ष का नाम विश्ववासु संवत्सर  होगा।वर्ष का राजा शुक्र होगा तथा मंत्री भी शुक्र होगा अतः इस वर्ष में राजा और मंत्री दोनों के पद सुख के स्वामी शुक्र पर होने के कारण सुख के साधन बढेंगे अनाज का उत्पादन बढेगा तथा वर्ष में वृक्षों पर फलों की अधिकता रहेगी।लोगों में धार्मिक प्रवृति अधिक होगी अवं यज्ञ आदि अनुष्ठानों की वृद्धि होगी महिलाओं में नयी जाग्रति होगी एवेम नूतन समाज में महिलाओं की भागीदारी बढेगी । संवत्सर का फल :-  विश्ववासु नामक संवत्सर होनें के कारण समाज में अनेक बिमरियन फैलेंगी रोगों के चलते लोग अपना काम समय से पूरण नहीं कर पायेंगे ।शासकों की नीतियों का पुरजोर विरोध होगा एवं राज्नीति के चलते देश के पश्चमी भाग में ज्येष्ठ मास में  छत्र भंग होने की संभावना है.अनाज उत्पादन के बाद भी बाजार में महंगाई बढेगी चौपाय पशु गायें भैंस आदि महंगी होंगी तथा तिलहन एवं दलहन  के  भाव अत्यंत महंगे होंगे  । वर्षनाम आश्विन का फल : अश्वयज   नामक आश्विन होने से वर्ष में वर्षा अधिक होगी

वैशनो तिथि -एकादशी

हिदू  दर्शन  सिधान्त  के  अनुसार  एकादशी का  विशेष  महेतुय माना गया  है । जीवन  के  किसी  भी  प्रकार  के  शंकट  को दूर करने  की  क्षमता  एकादशी का  व्रत  रखता  है  । इस  में  कोई  अतोसुक्ति नहीं  है ।एकादशी अध्यात्मक तिथि माना गया है । जो मानव  जीवन  के  प्रवाल शास्त्रू -कम , क्रोध . मद  . लोभ पर विजय  कराकर  जीवन  को  परमात्मा  के  निकटम  क्रपा  भजन  का  शरूप  प्रदान  करती  है । पुराण मतअनुसार अनेक  इसे  उद्धरण  है  जिस  में  स्पष्ट  वरन  है  की  एकादशी  के  ब्रतके  प्रभाव  से जीव  को  भगवन  की क्रपा  प्रदान  होती  है ।राजाअम्बरीश , पीतहामाह  भीसम  , धरम राज  युधिष्टर ,एवं  अर्जुन  को एकादशी  के प्रभाव से नारायण क्रपा  प्राप्त  हूई  इस  में  अतोसुक्ति  नहीं  है ।इस लिए यह  स्पष्ट है एकादशी  का पवन  ब्रत  इद्रिय सयामविवक एवं अधत्मिक ज्ञान प्रदान करता  है ।ekadasi  ka pawan virat

गणंत(मूल) लगन नक्षत्र विचार

गणंत(मूल) लगन नक्षत्र विचार  ज्योतिष में गणंत नक्षत्र लगन व राशि की चर्चा बड़े पैमाने पर प्राचीन काल से  की जाती रही है |अगर किसी जातक का जन्म मूल नक्षत्र में होता है तो उसे परिवार के लिए तथा सम्बन्धियों के लिया खराब माना जाता है |मूल नक्षत्र व लगन आदि का विचार ज्योतिष का अत्यंत प्राचीन मत है कहा जाता है की लंकापति रावाण नें  अपनें जयेष्ट पुत्र अहिरावान के मूल नक्षत्र में पैदा होनें के कारण पातळ में भिजवा दिया था तथा उसका मुंह तक नहीं देखा था |रामचरित मानस के मर्मग्य व रचियता गोस्वामी तुलसीदास का बचपन का नाम रामबोला था क्यूँ की जन्म ते ही इस जातक नें मुख से राम नाम का उच्चारण किया था |गोस्वामी जी का जन्म मूल नक्षत्र में होनें के कारण जन्म के कुछ दिनों बाद ही माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था अतः मूल नक्षत्र व लगन निश्चय ही अनिष्ट करनें वाली होती हैं लेकिन इनमें जन्मे जातक निश्चय ही अत्यंत शक्तिशाली उद्ध्यम शील प्राकर्मी व इस संसार में यश प्राप्त करनें वाले होते हैं इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है.| ज्योतिष अनुसार २७ नक्षत्रों में से ६ नक्षत्र मूल मने जाते हैं नम्बर -१ ,अश्वनी ,नम्बर-२ अश्

bhawn ke andr kavad ka sthan

वास्तु कें अंदर घर कें जहा भोगोलिक व्यवस्थायो का  महत्व कें साथ  साथ वस्तुओ कें  रख  रखाव  का अपना  विशेष महत्व है | अगर आपका भवन  भोगोलिक सुवधयोसे  युक्त  है लेकिन देनिक वास्तु ओ  रख  रखाव ठीक  नहीं  है  तो भी वास्तु दोष  लग  जायेगा | इसी लिए ये  अति अबशक  है किकिसी  भवन  में  भोगोलिक  सुभदायोके  साथ  साथ वास्तु  ओ का रख  रखाव  भी  ठीक  हो अर्थात रशोई  घर  में  वर्तन ,तथा रशोई भंडार ,पहने जाने  कपडे ,घर या भवन  कें अंदर भंडार कीव्यवस्था अदि सभी  का अपना  महत्व है | भवन कें अंदर कबाड़ का स्थान -वास्तु अनुसार कबाड़ का स्थान दक्षिण  पक्शिम यानि नैरीत्य बाले कोने  को अनुकूल  मानाजाता  है |इस कोने में  राखी गयी  किसी वास्तु में  कोई उर्जा  पैदा  नहीं  होती  है |फलसरूप किसी  प्रकार की उर्जा न बननेके कारन नकारात्मक  प्रभाव  नहीं  पड़ता  है |अतभवन  कें अंदर कबाड़ा  प्रतिदिन कामन आने वाली  वास्तु उसी कोने में रखनी  चाहिए |घर कें अंदर रफ  सामान ,कबाड़ा ,खली बोतल अदि  इसी कोने  में  रखनी  चाहिए |लेकिन इस कोने  को भवन कें सबसे उचा  रखना अनवार्य है | इसी लिए इस यह अति अब्सक  है  की ये कोना  न त

निरंतर ख़राब होगा मायावती जी का स्वाभिमान

निरंतर ख़राब होगा मायावती जी  का  स्वाभिमान उत्तर प्रदेश  की मुखिया मा ० मायाबती  जी  की जन्म  तिथि  प्राप्त  अभिलेखों  कें  अनुसार १५-जन-१९५६ तथा  समय २०.३४ जन्म स्थान दादरी [उ  प्र] है | दर्शाए गए अभीलेखो कें अनुसार मुख्यमंत्री जी  की कुंडली सिंह  लगन तथा मकर  राशी  की  बनती  है | जिस में  प्राप्त  नवांश मिथुन  राशी  से  बनता  है | मिथुन  राशी  जन्म  कुंडली  के  एकादश  भाव  में  तथा चन्द्र  कुंडली  कें छठे भाव  से  उत्पन्न  है |चन्द्र कुंडली के अनुसार मुख्य  मंत्री  जी  कुंडली में  शनि का गोचर इन के दशम  भाव  में  है तथा गुरु  का गोचर चौथे भाव  में  है |बर्तमान  समय  में मंगल गोचर चन्द्र  कुंडली  के  आठवे भाव  में  है | इस समय कुंडली कें अनुसार शनि १४-मार्च १९९४ से १४ मार्च -२०१३  तक  है |जिस में अंतर गुरु ०२-जुलाई  -२०१० से १४-मार्च २०१३  तक है |तथा प्रत्यंतर  शुक्र ०१-दिसम्बर -२०११ से ०३-मई -२०१२  तक है | शनि  की दिशा  इनकी कुंडली में सर्वाधिक   अनकूल  रही  है  जिस में  मान सम्मान शक्ति   आदि  सभी  प्राप्त  होती रही  है |लेकिन बर्तमान  समय  में चलने बाला गुरु  का अंतर तथा शुक्र  क