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Showing posts from September, 2017

नव रात्रीस्थापना शरद कालीन वर्ष -२०१७

Subject: नव रात्रि स्थापना एवं पूजन दिनाक २१-०९-२०१७  दिन गुरुवार से  शरद कालीन  नवरात्री का शुभ आरंभ होगा इस वार नवरात्री का शुभ आरंभ  दिन गुरुवार  नक्षत्र हस्त  योग शुक्ल कारणबव से हो रहा  है  एवं जिस का समापन दिनाक २९-०९-२०१७ दिन शुक्रवार  पूषा नक्षत्र शुभ योग  कारण बा से होगा  | इस वार नवरात्री का शुभ आरंभ गुरुवार के हस्त नक्षत्र में होने के कारण देवी माँ दुर्गा का अगवान  पालकी में होगा  जो भक्त जानो को अतिय्न्त शुभ एवं मनोरथ  पूरण करने बाला है | लेकिन दिनाक २९-०९-२०१७ दिन शुक्र वार  पूषा नक्षत्र में समपन्न होने के कारण देवी का बिदाई  नंगे पैर है  जो  बहुत शुभ नहीं है | लेकिन बहुत ख़राब भी नहीं  है | अत देवी का पालकी में अगवान बहुत शुभ  है एवं नंगे पैर बिदाई  माध्यम  फल साधक को प्रदान करने बली है |                                                  घट्स्थ्पना - इस दिन घट स्थापना का समय जो ज्योतिष अनुसार अतियंत शुभ  है उस का समय प्रात ६.३० से ७.३० तक रहेगा   इस के बाद समय प्रात ७.४९ से  ९.१९ तक रोग एवं अमंगल की चौकड़ी होने के कारण कलश स्थापना बरजित होगी  जो प्रात १०.४० तक रहेगी  घा

नारायण बाली पूजन

नारायण बाली एक एसी पूजा है जो मरण अपरांत मानव को बंधन से मुक्त करती है | जीव की मरने के बाद दो प्रकार के स्वरूप होते है  १- प्रेत स्वरूप २ पितृ स्वरूप  जब मरने के बाद आत्मा सूक्ष्म सरीर धारण कर लेती है  तब उसे शांति हेतु पूजा एवं ज्ञान दोनों की अबस्य्कता होती है जिसे सव या प्रेत कंहा जाता है | हिन्दुओ में कपाल क्रिया होने के कारन  मरत आत्माओ को शांति तब तक नहीं मिलती जब तक  उस की गति हेतु उधम न किया जाये | जब जीव की शांति एवं गति हेतु कोई उधम नहीं किया जाता है तो वह भटक जाता है है एवं उस की गति रूक जाती है  जिसे प्रेत कहते है | एसी स्थति में शांति न होने के कारन आत्मा का प्रेत स्वरूप संसार एवं पाने परिजनों को अपने भट्काब के कारन  कष्ट देने लगता है  जिस से संबधी लोगो पर अनेक कष्ट आने लगते है | शास्त्र अनुसार प्रेत की योनी काफी लम्बी होती है  जिस से जैसे जैसे समय बीतता जाता है  वैसे वैसे प्रेत योनी भयानक बनने लगती है  एवं अज्ञानता के कारन तराश एवं  भट्काब अधिक होता है | अगर म्रत्यु  शार्प के दशने से हुई हो , ब्रह्मण शाप से  या जल में डूब जाने से  अथवा दुर्घटना आदि से हुई हो तो भट्का

वैदिक रीति द्वरा संतान प्राप्ति के उपाय

---------- Forwarded message ---------- From:  Shriniwas Sharma   Date: 2017-09-13 18:18 GMT+05:30 Subject: वैदिक रीति सन्तान प्राप्ति हेतु किया गया यज्ञ सफलता दायक To: shriniwas sharma ज्योतिष वेदों की आंख है  हमारे चारो वेदों में  अनेक प्रकार के यज्ञ  अनुष्ठान  आधुनिक चिक्स्था पद्धति से अधिक सफल करी सिद्ध होता है | युज्र्वेद में  प्राकतिक चिकसा का  विशेष महत्व है  जो वेद रीति से चिक्स्था करता है उसी को वेदों ने वेद कंहा है | हमारे वेदों में अनेक इसे  सधन है  जिस का प्रयोग कर अपने भाग्य के अंधकार को  मनाब दूर क्र सकता है | त्रेता युग में महाराजा दशरथ द्वरा  पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ कराया गया  था  जिस की अध्यक्षता लोमस मुनि द्वरा करी गयी थी  उसी के प्रभाव स्वरूप  महाराजा दशरथ के चार पुत्र पैदा हुए  जिनका नाम आज भी विश्व विख्यात है |  अगर हम वेदों की बात करे तो  नस्पुकता  संतान हीनता  कोई विषय ही नहीं  है  वह शर्ते की वैध्य हमारा वैदिक रीति को जानने बाला एवं चिक्स्था करने बाला हो  दूसरा अनुष्ठान में हमारे पंडित को भी वेदों उन सभी मंत्रो का  एवं हवन सामग्री  तैयार करने की सा

धर्म की ओट में पनपता आडंबर

इन दोनों हिन्दू समाज में संत बाबा ओ के नए नए  साड़ीयन्त्र  निरंतर लम्बे समय से उजागर हो रहे है जिस से हिन्दू संतान धर्म के प्रति लोगो की आस्था कभी कमजोर हुई है | हिन्दू संतान धर्म  काफी पुराना धर्म है | जिसमे नित नए आडंबर  उजागर हो रहे है  आधुनिक समय में  सनियासियो का पनपता  चहरा जिस में वह  भगवान् की जगह  अपने को पूजने लगे है  इन आड़म वारी संतो को  भटके हिये समाज को सदमार्ग दिखलाना था | वाही सयम नरक गामी होकर अपने अनुयायी यो को भी चौराहे पर खड़ा कर दिया है  भागवत के ११ वे स्कन्द में काशी नरेश पुंडरिक की कथा आती है  जिस ने अपना स्वरूप श्री क्रष्ण के समान बनाकर  अपने को क्रष्ण घोषित कर दिया था एवं अपने को पूजने लगा था | उस ने अपना स्वरूप  चतुर्भुजा करी रूप  शंख , पद्म सुदर्शन चक्र पिताम्वर धरण कर  वह दुनियां में अपने को  श्री क्रष्ण के नाम से पूजने लगा  समाज के श्रद्धावान लोग  श्री क्रष्ण एवं कशी नरेश  पुंडरिक में अंतर  भूल गए एवं  पुंडरिक की पूजा करने लगे | लेकिन यह आडंबर लंबे समय तक नहीं चल सका एवं भगवान श्री क्रष्ण ने  उस का बध कर यह सिद्ध किया की ईश्वर सामान दुनियां में  न क

गुरु का कन्या राशी में प्रबेश

१२ सितम्बर २०१७  दिन मंगलवार को  गुरु कन्या राशी को छोड़ कर  शुक्र की राशी तुला के नक्षत्र  चित्रा में प्रवेश करेंगा | जिस के चलते समाज में  अनेक प्रकार के परिवर्तन  आयेंगे | बाजारों की हालत  सुधरेंगी  विश्व से मंदी का माहौल दूर होंगा | मह्लायो का समाज में स्थर सुध्रेंगा  एवं  मुसिलम मह्लायो के  जीवन का विकास होगा  | गुरु कानून का कारक ग्रह होने  के कारण सरकार मह्लायो के हितो में  नए कानून लाएगी | देश की नयी कर निति से  व्यापारियों के व्यापार में सुधार होंगा | देश में दुधारू पशुओं की संख्या बड़ने दूध में व्यापर बढ़ेगा | क्रषि में  रश बाले फलो की पैदा बढ़ेंगी |इस के साथ साथ  निम्न राशी बाले जातको के जीवन में सुधार आयेंगा  मेष -इस राशी बाले जातक की जीवन दशा में सुधार होगा एवं काम काज की दशा सुधरेंगी  मिथुन -गुरु का गोचर  पंचम भाव में होने के कारन  शिक्ष्ण  व्यवस्था में सुधार होंगा स्वास्थ की समस्या  सुधरेंगी  आर्थिक स्थति में सुधार होंगा | कर्क - कर्क राशी बालो की कुंडली में गुरु योग कारक हो जाने के कारन  परिवारिक सुख  बाहन सुख  एवं धन  संपता का सुख मिलेंगा  जीवन के रुंके कार्य बनें

पितृ ऋण से मुक्ति हेतु उपाय

  पितृ पक्ष में पितृ पूजा कर पाए पितृ ऋण से मुक्ति मानव जीवन में तीन प्रकार के ऋणों का समावेश  है जो इस प्रकार है १ पितृ ऋण  जिस में माता पिता  गुरु ऋषि  के ऋण सामिल किये गए है |२  दूसरा ऋण देव ऋण कंहा जाता है  जिस में भगवान  देव एम् क्षेत्र पालो का ऋण सामिल होता है |३  तीसरा एवं अंतिम ऋण  मात्र भूमि  एवं राष्ट ऋण है  जिस जमीनएवं राष्ट में जातक का जन्म हुआ है  उस के प्रति सच्ची निष्ठा रखना एवं देश वाशियों से प्रेम  करना  सभी इसी ऋण में सामिल है | पितृ पक्ष  पितरो के ऋण से मुक्ति पाने का यह सबसे अच्छा अबसर होता है  अधपी पितृ ऋण का  भुगतान  मानव कभी  नही कर सकता है  लेकिन उसे मान लेना एवं उनके प्रति सद्भावना प्रकट करना ही मानव का परम कर्तव्य है | ऋण कोई भी हो जीने की व्यवस्था  में  बाधा पैदा ही करते है | जब इनका समय जीवन में प्रकट होता है तो मनाब का जीवन रुक जाता  है उसका हर प्रयास  निर्थक  जाता है | पितृ ऋण  इतना भयानक  होता है  मनाब को हर कार्य में असफलता  ही झेलनी  पड़ती  है | इस ऋण  के चलते परिवारिक  कलेश  संतान का न होना , कोट कचहरी  का के अर्चन  , आजीवका की परेशानी  भी  इ