नारायण बाली पूजन







नारायण बाली एक एसी पूजा है जो मरण अपरांत मानव को बंधन से मुक्त करती है | जीव की मरने के बाद दो प्रकार के स्वरूप होते है  १- प्रेत स्वरूप २ पितृ स्वरूप 
जब मरने के बाद आत्मा सूक्ष्म सरीर धारण कर लेती है  तब उसे शांति हेतु पूजा एवं ज्ञान दोनों की अबस्य्कता होती है जिसे सव या प्रेत कंहा जाता है | हिन्दुओ में कपाल क्रिया होने के कारन  मरत आत्माओ को शांति तब तक नहीं मिलती जब तक  उस की गति हेतु उधम न किया जाये | जब जीव की शांति एवं गति हेतु कोई उधम नहीं किया जाता है तो वह भटक जाता है है एवं उस की गति रूक जाती है  जिसे प्रेत कहते है | एसी स्थति में शांति न होने के कारन आत्मा का प्रेत स्वरूप संसार एवं पाने परिजनों को अपने भट्काब के कारन  कष्ट देने लगता है  जिस से संबधी लोगो पर अनेक कष्ट आने लगते है | शास्त्र अनुसार प्रेत की योनी काफी लम्बी होती है  जिस से जैसे जैसे समय बीतता जाता है  वैसे वैसे प्रेत योनी भयानक बनने लगती है  एवं अज्ञानता के कारन तराश एवं  भट्काब अधिक होता है | अगर म्रत्यु  शार्प के दशने से हुई हो , ब्रह्मण शाप से  या जल में डूब जाने से  अथवा दुर्घटना आदि से हुई हो तो भट्काब अधिक हो जाता है एवं गति  मिलना कठिन होता है |
एसी स्थति में नारायण बाली की पूजा  प्रेत आत्मा को शांति प्रदान कर  भगवान के चरणों में लगती है  जिस से पूजा एवं ज्ञान के माध्यम से उसे शांति मिलती है एवं पिंड के माध्यम आगे पितृ लोक की यात्रा होती है एवं जीव प्रेत योनी को छोड़ कर  पितृ लोक  चला जाता है |
पूजा विधि -यह पूजा अगर पितृ पक्ष में किसी नदी किनारे कराई तो अति उतम है | अगर पितृ पक्ष न मिले तो अम्ब्स्या तिथि पितरो की होती है उस दिन संभव है  अगर एसा न हो तो क्रष्ण पक्ष में किसी भी दिन संभव है | इस पूजा में साधक को नूतन वश्त्र धारण कर  भगवन विष्णु , भगवान शिव  एवं ब्रह्मा जी की विध वत पूजा होती है  इस पूजा में भगवान् विष्णु की सोने ,शिव की चांदी एवं प्रेत की कंशे की प्रतिमा होना अति अबस्यक पूजा की विधि लम्बी है  जिस में अतमें हवन होता है एवं संभव हो तो  ब्रह्मण को भोजन भी कराना चाहिए तभी यजन पूरण होता  है | यह अबस्यक है इस पूजा से  प्रेत योनी छुट जाती है एवं प्रेत योनी से प्रेत छुट जाता है  एवं पितृ लोक चला जाता है  है |
यह पूजा किसी तीर्थ , या गया क्षेत्र में कराई जाये तो विशेष  शुभ फल दाई सिद्ध होती है |
           पंडित -श्रीनिवास शर्मा 
                 वास्तु विद एवं ज्योतिष सलहाकार , कथा वाचक 
               
          

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मंगल भवन  अमंगल  हारी, द्र्वयु सो  दशरथ  अजर बिहारी |
दीन दयाल  विरद  सम भारी,   हरयो  नाथ  मम शंकट भारी .||.
Pt.Shriniwas Sharma
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