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NAV VARSH 2015

Subject: सरकार को नई चिनोतिया देगा वर्ष २०१५ > वर्ष २०१५ का सुभ अराभ बुध बार की रात्रि में ०० .३० am पर हो रहा है अगर उस समय उदय होने बाले ग्रहों की बात करें तो इस प्रकार है - नव वर्ष के प्रवेश के समय क्रतिका नक्षत्र का प्रथम चरण होगा तथा लग्न कुंडली कन्या लग्न का है एवं स्पष्ट ग्रहों की स्थति इस प्रकार है - लग्न में राहू  शनि वरशिक राशी में  सूर्य एवं वुध की स्थति धनु राशी में होगा |मगल अपनी उच्च राशी शुक्र के साथ होगा  इस कुंडली के सपतम भाव केतु है अत इस वर्ष में आतंकबाद एक नई चिनोति होगी शुक्र का मंगल के साथ होने के कारण बलात्कार की घटना जन्म लेगी एवं पुलिस का अत्याचार कानून रहत होगा |आतंकबाद एवं यातायात के असुवधासरकार की समय समय पर नीद हराम कर देगी है | लेकिन नवांश का उदय दशम भाव से होने के कारण जो प्रस्थति उत्पन्न होगी प्रवर्तित होगी उस पर नियन्त्र कर लिया जायेगा | लेकिन वुध का गुरु के नावशमें होने के कारण देश में रोजगार के नए आयामखुलेंगे |जिस से युवायो को रोजगार मिलेंगे |बाज़ार में दिल्हन के तथा तिलहन के भाव महगे होगे | देश मेंसरकार के सामने उत्पन्न होगी लेकिन उनका स

panchamrt shahi snan

Subject: पञ्चामृत शाही स्नान प्रतेक जीव के सरीर के संरचना प्रक्रति के पांच महाभूतो द्वरा हूई है जो इस प्रकार है  मिटटी ,जल ,अग्नि ,वायु ,आकाश  इन पाच महाभूतो में से किसी एक तत्व की कमी होने पर प्राणी के सरीर पर विपरीत असर पड़ता है लेकिन इस स्रष्टि में ८४ लाख  प्रकार के जीव है है जिस में 04 हजार प्रकार के मानव है |मनुष्य का सरीर ही एक एसा है जिस को स्वस्थ रखने हेतु सबसे अधिक सुविधा चाहिए लहज मनाब द्वरा समय समय पर अनेक प्रकार के अविष्कार भी किये गए है |आप सभी जानते है अवस्कता अभिस्कार की जननी है इस लिए इस लिए आधुनिक विज्ञानं द्वरा द्वरा अनेक सुविधा भी दी गयी है | वैसे हिन्दू सनातन साकार पद्धति में जब हम पूजा करते है तो उस में दो चीजो का विशेष महत्व  है  चर्नाम्रत  पंचाम्रत चर्नाम्र्त भगवन के चरणों को धोने से बनता है जो सभी प्रकार की व्याधो का नास करता है तथा अकाल म्रत्यु का हरण करता है |लेकिन पंचाम्रत स्वस्थ कामना हेतु देवों को प्रदान किया जाता है | पंचाम्रत पांच चीजो  से मिलकर बनता है जो प्रक्रति के पांच महाभूतो का प्रतीक है जिस से मानवीय सरीर की रचना हूई है जो इस प्रकार है - [१]-

imandari kee saja

Subject: ईमानदरी की सजा भारतीय कानून सत्यमेव जयते का नारा १९४७ से देता रहा है लेकिन अंदर की व्यवस्था कुछ और ही है |सरकारी तंत्र का इतना करप्ट है |जब तक किसी को कुछ दो गे नहीं तब तक कुछ होगा नहीं |जिस में पुलिस की बात करे तो नजारा ही अलग है |जब तक उन्हें कुछ मिले नहीं तब तक किसी कानून का पालन नहीं करते भले ही उनके उपर कितने ही कानून बने हो या फिर कितने ही अधिकारी बैठे हो |लेकिन काम आपका जब होगा जब उनको कुछ मिलेगा |अगर इस में उत्तर प्रदेश पुलिस की बात करे तो नजारा कुछ अलग ही बनता है जिस को देखते हूए एक बात याद आती है जो इस प्रकार है  अंधेर नगरी  चौपट राजा |ताका सेर भाजी  ताका सेर खाजा | वैसे राज नेता जनता को न्याय की लाख दुहाये देते हो लेकिन व्यवस्था का हाल है की इस देश की गरीब जनता को लिखा ही नहीं |पार्टी कोई हो अधिकारी कोई हो कानून कैसा भी हो |लेकिन सफलता उस को है जिस के पास पैसा है |आज देश में मोदी जी की लहर है तथा भ्रष्टाचार को ख़तम करने की लाख दुहाई देते है लेकिन हकीकत कुछ अलग है की गरीब व्यक्ति को कोई सफलता नहीं |केबल पार्टी बदलती है समय समय पर ससक बदलते है लेकिन देश की प्रस्थति

dsha dwra badlti sarirak avstha

: इस ब्रह्मांड के सौरमंडल में स्थित ग्रह प्रथ्वी पर जो अपनी ऊष्मा द्वरा जो प्रभाव डालते है उस से कोई अछूता नही बच सकता है चाहे वह व्रक्ष हो त्रियक जीव या चोपये पशु पक्षी सभी पर ब्रह्मांड में स्थित ग्रह अपना प्रभाव छोड़ ते है जिससे उनके जीवन में गहराप्रभाव पड़ता है |अगर ग्रह की ऊष्मा अनकूल है जो कुंडली में दशा के माध्यम से देखि जाति है तो सरीर को बल प्राप्त होगा अगर ग्रह की ऊष्मा प्रतकूल है तो सरीर के बिकास में गीरबत आगेगी जिस का आकलन चलने बालीदशा त्तथा तत्काल प्रभाव डालने बाले गोचर से लगाया जाता है लेकिन प्रतकूल एवं अनकूल समय की पहचान जीव के सरीर पर स्वयं झलकती है | जैसे की जातक को जन्म समय शनि की दशा प्राप्त हूई जो जातक की कुंडली के ६ ,८ ,12 घर का स्वमी है या अपनी नीच राशी नीच नवांश में है या प्राप्त दशा का सबंध पंचम से ६,८ 12 तो जातक शारीर से अतियंत कमजोर तथा रोगी होगा एवं रोग उस ग्रह की प्रवर्ती के अनुसार होगा इतना ही नहीं अगर जन्म समय अगर प्राप्त दशा कमजोर है तो उसका प्रभाव सम्पुरण जीवन पर पड़ेगा अर्थात उस के जीवन का विकाश कमजोर ही रहेगा अगर जन्म समय ग्रह दशा ५ ,9 या लग्न की

vastu men utpann bhirantiya

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आज मनाब समाज में वास्तु का भारी प्रचलन है वास्तु बसने की एक अनोखी कला है कोयोकिकी मनाब सरीर की राचन पांच भोतिक तत्वों से हूई है जो इस प्रकार है क्षित [प्रथ्वी  ,जल ,पावक [अग्नि ] समीरा  [वायु ] एवं आकाश से मिलकर हूई है |इन पांच तत्वों में कोई कमी होने पर मनाब को बीमारी उत्पन्न हो जाती  है |वैसे इन पांच तत्वों का बिकाश मानब के साथ साथ सभी के सरीर में होना चाहिए लेकिन प्रकतिक रचना अनुसार मनाब का सरीर अधीक कोमल होता है |इस लिए मानब को अधिक शुभ्दयो की अबस्कता होती है अत मानब की रहने बसने की कलम प्रकति के अनुसार आनी चाहिए अत इस कारण हमरे ऋषि मुनियों द्वरा वास्तु यानि बसने की कला की खोज करी जिस से मानब जाति का चहुमुखी विकाश में प्राकतिक योग दान मिल सके इस रहने  ठहरने की कला को वास्तु कहते है और मनाब को अपने रहन सहन के तौर तरीके आने भी चाहिए अब प्रश्न ये उठता है की की जब प्रकति के नियम सिधांत समय तथा स्थान के साथ बदलते रहते है तो क्या नानब को वास्तु के नियमो यानि रहने की परम्परा स्थान समय के अनुसार नही बदलनी चाहिए जैसे अमेरिका एवं भारत दोनों की प्राकतिक व्यवस्था भिन्न है  चीनतथा भारत की प

हितोउपदेश

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Skip to content Using Gmail with screen readers +Shriniwas 2 Search Gmail COMPOSE Labels Inbox (329) Move to Inbox More 1  of  694     o हितोउपदेश गोस्वामी तुलसी दास जी नेमानस में जीव के धर्म के बारे में कहाँ है कि इस संसार में अगर जीव का कोई धर्म है तो सत्य बोलना तथा सत्य के राह पर चलना है जिस से प्राणी ओ को लाभ मिल सके अगर इस संसार में सबसे बड़ा पाप और अत्या चार है तो झूट असत्य तथा हिंसा है जहाँ हिंसा शब्द जुड़ता है तो मानब शास्त्रों से करी गयी हत्या को ही हिंसा मानता है ये एक बिदावना है इस संसार में हिसा दो प्र

mans marm

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मानस का प्रभावशाली पात्ररावण जिसे हिदू समाज दसहरा बाले दिन एक बुराई के रूप में जलता है तथा भगवन श्री राम की जैय धोश करता है  उस रावण के दलबल के बारे में चर्चा करे तो प्रतापी रावण बीस भूजयो बाला था यानि उस का बल इतना अधीक था की शास्त्रों ने उसे बीस भुजयो द्वरा पकटकिया है |इस के साथ साथ दश शीशो द्वरा उस के विवेक का प्रतीक माना जाता है |यानि रावण बल शाली तथा वुधमान माना जाता है रावण के बारें में हिदी साहितिक कवि मैथली शरण गुप्त ne लिखा है की रावण इतना बलवान था कि  ब्रह्मा सो वैद पड़े जाकेद्वारे ,महामीच दासी सदा पैर धोये  यानि बल शैली रावण इतना प्रभवशाली था लवेकिन इस संशार में बुराई का कारण बना  तथा मर्यदा पुसोत्तम भगवन श्रीराम के हाथो मारा गया ।कवि मैथलीशरण के अनुसार विदवान रावण पैरो को सदा मृत्यु धोती थी जो काल समय दुनिया को खता है वह उस के चरणो में था लेकिन रावण अभागा होगया और समय को बस में रखने बाला होकर समय के हाथो मारा गया इतना ही नहीं सीता की शीत लहर गण गण लंका में ऐसी चली कि जल कर राख हो गयी तह दशानन रावण जिसे दसो दशयो का ज्ञान था दशा विहीन हुआ तथा पुत्र पौत्र सभी का नास कराकर

uch nivas nich kartuti

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 उच निवास नीच करतूती |  देख न सकए परायी बिभूति | आज देश में चल रहे राजनेतिक प्रभाव जिस में सभी को अपना पद लाभ दिख लायी दे रहा बहलेही वह कोई भी दलहो प्रत दिन जनता के हितो की दुहाई देते हो लेकिन हकीकत यह की सभी राजनेताओ को अपने ही हितो की चिन्ता है |आज तक सभी राजनेताओ को भले ही जनता के हितो की दुहाई देते हो लेकिन यथार्थ यह है जनता के हितो की इस प्रकार की सपने में चिन्ता नहीं देखी गयी है जिस में अपना स्वार्थ न हो यह इतहास स्वतंत्र भारत का आज तक रहा है यही कारण हर राजनेतिक दलमें दल बदल टिकटअदि के झगरे हर साल देखे जाते है एसी स्थति में जहाँ अपना स्वार्थ इतना प्रबल हो जन हित का प्रश्न ही नहीं उठता है और रजोगुण में स्वार्थ न हो एसा संभव नहीं है ये परम्परा पुराणिक है इसे देख मुझे राम के बनोवास कालकी वह बात याद आती है जहाँ राम के राज तिलक की तयारी जोरो पर नगर के चौहराएसजे हूए है नित प्रत पूजन अदि हो रहे है जिसे देख देवो को चिन्ता है की अगर राम को राज्य हो गया तो हमारा क्या होगा  रावणका वध कैसे होगा ?अपने स्वर्थ को लेकर देवो नेमाँ सरवती का सहारा लिया लिया जिस पर माँ सरसती ने देवो के इस

jyotish men pub janm sanskar

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ज्योतिष एक एसी विधा है जो मानब के कर्मो के फल को प्रबल मान्यता देती है मानस मर्मग्य गोस्वामी जी ne तो इतना तक लिख दिया है तथा ये चोपाई भगवान श्री राम के मुख से कहलवाई है जो इस प्रकार है - कर्म प्रधान विश्व रच राखा | जो जस करय , तस फल चाखा || हंस बोले रघुवंस कुमारा |    विधि के  लिखे को  मटन  हरा  || -- यानि इस संसार में सुख और दुःख का हेतु जीव के कर्म है ज्योतिष भी पूर्व जन्म के मान्यता देती है तथा आगामी जन्म को भी मानती है कुंडली का पंचम भाव जातक के पूरब जन्म को दर्शाता है जिस के परिणाम दशा अनुसार जीव इस जन्म में भोगता है अगर पंचम भाव पर अशुभ प्रभाव हो तो उस कुंडली को शापित [अभिशाप] बालीकुंडली माना जाता है जिसे ज्योतिष में ऋण अदि बंधन के नाम से भी जाना जाता है यानि जातक के वर्तमान जीवन की सफलता काफी हद तक उसके पुबजन्मके कर्मो पर निभर करती है |इस जीवन में प्रणय सब्न्धो की सफलता असफलता  अछी संतान ,शिक्षा अच्छा ज्ञान  हानी लाभ जीवन और मरणकी व्यवस्था काफी हद तक जातक के पूबजन्म के शुभ अवं अशुभ कर्मो पर निहित होती है | इस संसार में प्रतेक मानब अपने कर्म के बल पर जीवन में अछी सफलत