धर्म की ओट में पनपता आडंबर






इन दोनों हिन्दू समाज में संत बाबा ओ के नए नए  साड़ीयन्त्र  निरंतर लम्बे समय से उजागर हो रहे है जिस से हिन्दू संतान धर्म के प्रति लोगो की आस्था कभी कमजोर हुई है |
हिन्दू संतान धर्म  काफी पुराना धर्म है | जिसमे नित नए आडंबर  उजागर हो रहे है  आधुनिक समय में  सनियासियो का पनपता  चहरा जिस में वह  भगवान् की जगह  अपने को पूजने लगे है  इन आड़म वारी संतो को  भटके हिये समाज को सदमार्ग दिखलाना था | वाही सयम नरक गामी होकर अपने अनुयायी यो को भी चौराहे पर खड़ा कर दिया है 
भागवत के ११ वे स्कन्द में काशी नरेश पुंडरिक की कथा आती है  जिस ने अपना स्वरूप श्री क्रष्ण के समान बनाकर  अपने को क्रष्ण घोषित कर दिया था एवं अपने को पूजने लगा था | उस ने अपना स्वरूप  चतुर्भुजा करी रूप  शंख , पद्म सुदर्शन चक्र पिताम्वर धरण कर  वह दुनियां में अपने को  श्री क्रष्ण के नाम से पूजने लगा  समाज के श्रद्धावान लोग  श्री क्रष्ण एवं कशी नरेश  पुंडरिक में अंतर  भूल गए एवं  पुंडरिक की पूजा करने लगे | लेकिन यह आडंबर लंबे समय तक नहीं चल सका एवं भगवान श्री क्रष्ण ने  उस का बध कर यह सिद्ध किया की ईश्वर सामान दुनियां में  न कोई है  न होगा एवं जीव जो ईश्वर का अंश है  उसे ईश्वर से जायदा किसी भी बस्तु को  कभी  महत्व  नहीं देना  चाहिए |
आज इस कलिकाल में  गुरुओ की चमक दमक को देख कर ईश्वरीय तत्व को भूल जाते है  लोग  कहते है  कि गुरु के बिना गति नहीं होती है |
में सभी साधको से जानना चाहता हूँ की  महाभारत में  युद्ध क्षेत्र में जब  अर्जुन को मोह हुआ जिसे श्रीक्रष्ण द्वरा  गीता का उपदेश  देकर दूर किया  उस समय अर्जुन किस  गुरु सन्यासी की शरण में गए थे ? 
जब गज को जल के अंदर  हूँ हूँ  नामक ग्रहा द्वरा पकड़ा गया  उस समय गज ने कोण से गुरु की शरण ली  किस गुरु मन्त्र का जप किया ?
जब द्रोपती का सभी बीच चीर हरण  हो रहा था  उस के पांचो पति एवं महबली  पितामहा  क्रपा चार्य सभी की गर्दन नीचे  झुकी हुई नारी सम्मान दाव पर लगा था | दर्योधन का अत्यचार  सभी पर भारी था  उस समय द्रोपती किस  गुरु की शरण गयी ? 
यह संसार  भगवान के संकल्प से उत्पन्न है  वाही इस स्रष्टि के कार्य  कारण आदि एवं अंत है | जीव उस ईश्वर का अंस है | एवं ईश्वर को ही ढूढता  है | जीव ईश्वर को जान कर माया को खूब जनता है | पैसे लम्बी गाड़ी एवं बंगाल के लिए  दिन रत एक  करता है  एवं उस परमात्मा को भूल जाता है |
आज पुंडरिक की तरह ही कुछ सन्यासी का रूप  बना कर  अपने को गुरु के रूप में पूजने लगे है जो एक आडंबर है  जिसका  अंत होना अति अबस्यक है  चाहे वह  राम रहीम हो . चाहे आशाराम हो  चाहे  रामपाल हो  जो अपने को ईश्वर से श्रेष्ठ सिद्ध करेगा उस की अंतत  यही गति  होनी है | विश्व गुरु परमात्मा है  मानव को  उसी के कार्य एवं पूजन करने चाहिए |
     पंडित -श्रीनिवास शर्मा 
              ज्योतिष विद एवं वास्तु सलहाकार एवं कथा वाचक                                                                                         

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मंगल भवन  अमंगल  हारी, द्र्वयु सो  दशरथ  अजर बिहारी |
दीन दयाल  विरद  सम भारी,   हरयो  नाथ  मम शंकट भारी .||.
Pt.Shriniwas Sharma
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