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Showing posts from 2011

निरंतर बढेंगी नरेंद्र मोदी की समस्याएं .......................

निरंतर बढेंगी नरेंद्र मोदी  की समस्याएं ....................... ज्योतिष के अनुसार २८ अक्तूबर से मंगल काक गोचर परिवर्तन ; जो सूर्य की राशी सिंह में हुआ है .मोदी जी की छवि को ख़राब करें में सहायक सिद्ध होगा .१५ नवम्बर से बदला शनि का गोचर जो कन्या से तुला राशी में परिवर्तित हुआ है कुंडली में सादे साती का योग बनाता है फलस्वरूप भविष्य में राहत देने के आसार सिद्ध नहीं कर रहा है .अतः मंगल का गोचर मई २०१२ तक सिंह राशी में रहेगा मोदी जी की कुंडली तुला लगन तथा वृश्चक राशी में होने के कारण वर्तमान मंगल का गोचर उनकी कुंडली के १०वेइन घर जहाँ पैर शाक्नी और शुक्र स्थित हैं पर ग्रहण पैदा करेगा.फलस्वरूप मोदी जी की कार्यशैली पर प्रशन उठने लगेंगे .ज्योतिष में मंगल को बल का कारक माना गया है अतः मोदी राज्य के ऐसे मामले जिसमे बल या पुलिस का सम्बन्ध है.इनके दुरूपयोग के कारण छवि को समय समय पर धूमिल करते रहेंगे. दूसरी बात शनि का साढ़े साती का गोचर मोदी को मानसिक तनाव देगा. अन्य नई मुसीबतें अकस्मात ही पैदा करेगा फलस्वरूप राजनैतिक संकट पैदा होने की सम्भावना है. मई २०१२ के बाद जब गुरु राशी परिवर्तन कर मेष से वर
जन अधिकारों का अनदेखा करेंगी सभी वर्तमान  सरकारें ज्योतिष के अनुसार इन दिनों शनि अपनी उच्च राशी तुला में गोचर कर रहे हैं. मंगल का गोचर सूर्य की राशी सिंह में है जो मई अंत तक रहेगा दूसरी ओर गुरु एवं शनि के परस्पर दृष्टि भी है . ज्योतिष में गुरु को कानून और ज्ञान का कारक मन जाता है तथा शनि को जनता एवं राज्य के संसाधनों का कारक माना गया है गुरु एवं शनि की परस्पर द्रष्टि इस बात का प्रतीक है की शनि की उच्चता के कारण जनता के पास जो संसाधन बढेंगे उस पर कानून की पैनी द्रष्टि होगी और जनता से हरण कर लिए जायेंगे. यद्यपि यह बात पूर्णतया सत्य है की गुरु के उच्च राशी में आनें के कारण समाज की उपभोग प्रवृति बढ़ेगी जिसे देखते हुए सरकारें अपनी नई कर नीति के तहत समय समय पर जनता के धन का हरण भी करती रहेगी जिस से जनता त्राहि त्राहि कर उठेगी.दूसरी ओर मंगल जो ज्योतिष में बल का कारक है का लम्बे समय के लिए सूर्य की राशी सिंह में आनें के कारण सरकारें निरंकुश  होंगी  तथा जनता के अधिकारों की पूर्ण रूप से अनदेखी करेंगी अर्थात सरकारों की अराजकता इस कदर बढ़ेगी की जनता विरोध प्रदर्शनों के द्वारा  अंकुश कायम नहीं क

शनि का तुला राशी में गोचर

शनि का तुला राशी में गोचर  १४ नबम्बर २०११ की अर्ध रात्री को  शनि गोचर वश  कन्या  राशी  का  त्याग  कर  अपनी  उच्च राशी  तुला  में  प्रवेश  करेगा |फल स्वरुप्  सिह राशी से शनि  के  साढ़े साती  का  प्रभाव  समाप्त  होना  शुरू   होगा | जिस  से उन्हे   धीरे  धीरे मानसिक  तनाब  से  शांति  मिलेगी तथा उन्हें धीरे  जीवन में रुके  कामो में सफलता  मिलने  लगेगी |इस के साथ  साथ कन्या राशी पर  शनि  के  साढ़े  साती  का  गोचर  आरंभ  होने के  कारण जीवन  में  तनाब  बढ़ने लगेगा | इस के साथ  साथ तुला राशी वृश्चक  राशी  पर शनि की  साढ़े  साती  का अंतिम  तथा माध्यम  दौर  शु रू  हो जायेगा | ज्योतिष के अनुसार  शनि  भौगोलिक  शुभदायोसंसाधन  आदि  का  कारक  माना गया  है इस लिए अत शनि  के  साढ़े साती का प्रभाव अगर नकारात्मक है है जो निश्चय ही  अत्यनत   दुख  दाई  बन  जाता है |अगर शनि  योग कारक है  तो  शनि  की  साढ़े साती सभी प्रकार  की सफल दाई  बन  जाती है |इसी  लिए  शनि  की  साढ़े साती दोने  प्रकार फल देने बाली होती है  | इसी लिए शनि  के  प्रभाव  को बिना जाने भय भीत होने  की आवश्यकता  नहीं  है | अगर शनि  की साढ़े

नरकासुर चौदस (छोटी दिवाली) का इतिहास

नरकासुर चौदस (छोटी दिवाली) का इतिहास  दिवाली तम अन्धकार का नाश केर प्रकाश देने का नाम है जिसके माध्यम से मानव मात्र का ही नहीं समस्त प्राणी जगत का कल्याण हो दिवाली पर्व धनतेरस से लेकर अमावस्या तक मनाया जाता है .जिस पर प्रत्येक दिन का अपना अलग इतिहास है नरकासुर चौदस जिसे लोग छोटी दिवाली के नाम से जानते हैं ,का इतिहास भगवान् श्रीकृष्ण के चरित्र से जुड़ा हुआ है     .भगवत के मतानुसार द्वापर के अंतिम चरण  में भामसुर नाम का असुर हुआ जिसनें अपनी वासनाओं की शांति हेतु १६१०० ऋषि एवं ब्रहम कन्याओं को अपनें कारवास में दल दिया था .पृथ्वी के जागृत मनुष्य तथा भूपति आदि भामासुर को हरानें में नतमस्तक हो गए .इसके बाद देवताओं के राजा इंद्र को भारी चिंता हुई भामासुर के अत्याचार से पृथ्वी पर भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर था जिसको नष्ट करना देवेन्द्र को भी कड़ी चुनौती थी देवेन्द्र नें भगवान् श्रीकृष्ण से भामासुर के अत्याचार को समाप्त करने तथा ब्रह्मण एवं ऋषि कन्याओं को मुक्त करने हेतु द्वारका पहुँच के निवेदन किया ,देवेन्द्र के प्रस्ताव को स्वीकार कर भगवान् श्रीकृष्ण नें भामासुर पर आक्रमण किया लम्बी लड़ाई तथा

आराध्य शक्ति महामाया दुर्गा

आराध्य शक्ति महामाया दुर्गा नवरात्री नौ निधि प्राप्त करनें की योगीजन का एक विशेष पर्व है. इस पर्व पर महामाया देवी की उपासना का योगी योग को प्राप्त करते हैं तथा भोगीजन सांसारिक भोगों की कामना करते हैं इस सृष्टि में महामाया शक्ति के रूप में दो तरह के कार्य करती है  १) संसार में भ्रम पैदा करना तथा आसक्ति में फ़साये रखना, दो अदृशय है जिसको जाना नहीं जा सकता  २) सांसारिक जीवों का पालन करना तथा ज्ञान एवं भक्ति द्वारा शक्ति संचार कर उन्हें जागृत करना एवं सांसारिक बन्धनों से मुक्ति देना अर्थार्त जीव को सांसारिक बन्धनों में बांधे रखना तथा बन्धनों से मुक्त करना दोनों ही कारण महामाया शक्ति के हैं.  गीता में भगवान् श्री कृषण नें अर्जुन को उपदेश करते हूए यह बात कही थी की संसार में मैं कुछ भी नहीं करता हूँ फिर भी तू मुझे सभी कार्यों का करता मान तथा किसी वास्तु का भोग न करते हूए भी मुझे सभी वस्तुओं का भोगता मान अर्थार्त में कुछ न करते हूए भी संसार के प्रत्येक कार्य को करता हूँ मेरी माया मेरे संकेत पर इस संसार के सभी कार्य पूरण करती है इसलिए तू अपना कर्तव्य मेरी इच्छा को स्रोधार्य कर मैं तुझे सफलता द

देश का संकटकालीन समय १० सितम्बर से ३० अक्तूबर तक

देश  का  संकटकालीन समय १० सितम्बर से ३० अक्तूबर तक  ज्योतिष अनुसार इन दिनों मंगल का गोचरीय संचार १० सितम्बर से अपनी नीच  राशी कर्क में संचार कर रहे हैं . मंगल स्वतंत्र भारत की कुंडली में चन्द्र कुंडली के अनुसार राजयोग कारक है तथा लगन कुंडली के अनुसार सप्तम और द्वादश भाव का भी स्वामी है.मंगल का कर्क राशी में गोचर लगन एवं चन्द्र कुंडली के अनुसार शुभ संकेत नहीं है.इस गोचर से देश की सरकार को,देश का सुरक्षातंत्र ,पडोसी देश एवं मित्र राजनेता ,मंत्री आदि से धोखा होने की सम्भावना हैगुरु के १२वे घर में गोचर के कारण कानून व्यवस्था पहले ही सरकारी नियंत्रण से बाहर है.यह समस्या भविष्य में तब और वृद्ध हो सकती है जब १५ नवेम्बर २०११ को सायें ४.३० शनि कन्या राशी को त्याग कर तुला में गोचर करेंगे .परिणाम स्वरुप गुरु व शनि की परस्पर दृष्टि होगी .फलस्वरूप सरकार को भ्रष्टाचारी अधिकारी और राजनेता के विरुद्ध कारवाही को लेकर अपमानित होना होगा..अतः वर्तमान सरकारके कारण देश की छवि धूमिल होगी. इस वर्ष का नया आलम गुरु के १२वे घर में गोचेर के कारण देश की कानूनी व्यवस्था साधू,संत व त्यागिजनो के हाथों में जाने के कार

**श्राद्ध विघ्ने पुन: श्राद्धम**

**श्राद्ध विघ्ने पुन: श्राद्धम** जिन लोगों ने आज [१२-९-२०११] को पूर्णमासी का श्राद्ध किया है, उनके श्राद्ध में विघ्न आ गया है---- क्योंकि जो पूर्णमासी का श्राद्ध था, वह तो ११-९-२०११ को था, जो आज [१२-९-२०११] श्राद्ध कर रहे हैं या जिन्होंने किया है वह सब शास्त्र विरुद्ध है------- अब ऐसे में क्या किया जाये या करना चाहिये ?--- इसका उत्तर यह है कि अब इसकी शुद्धि के लिये, अर्थात आये विघ्न के लिये पुन: श्राद्ध करना होगा------ और यह श्राद्ध २७-९-२०१२ होगा! वैसे कई प्रकार के शास्त्र में श्राद्ध विघ्न कहे गये हैं! विघ्न आने पर पुन: श्राद्ध करने को शास्त्र में कहा गया है! प्रतिपदा का श्राद्ध १३-९-२०११ को है और इसी दिन से श्राद्ध पक्ष शुरू हो रहा है! -------------------- श्राद्ध--निर्णय --------------------- ------ पूर्णिमा का श्राद्ध----- तिथि----------निर्णय------ - ----- एकादशी का श्राद्ध तिथि समय------ निर्णय------- कई पंडितजन, मंदिरों में बैठे पंडित वा ज्योतिषी पूर्णिमा का श्राद्ध १२-९-२००११ को कह रहे हैं! क्या यह शुद्ध तिथि है? पूर्णिमा श्राद्ध निर्णय------ यह पार्वण श्राद्ध है,

तीन ग्रहणों के प्रभाव

तीन  ग्रहणों  के  प्रभाव  ज्योतिष में ग्रहणों को प्राकृत घटनाओं का कारक तथा मानव तत्वों को प्रभावित करने वाला माना जाता है |ज्योतिषी आधार पर यह माना गया है की ग्रहण के समय खगोलीय मंडल से आनें वाली किरणें विकृतिक तथा विनाश कारी हो जाती हैं जिस से की मनुष्य पशु पक्षी एवं अन्य प्राकृतिक तत्वों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. कई बार ग्रहणों के दुष्प्रभाव इतनें भयानक हो जाते हैं की पृथ्वी का गर्भाशय फटने या भूकंप आदि आने तथा सुनामी आदि का पूरा खतरा रहता है |ज्योतिष में यह माना गया है की जब एक ही पक्ष में दो ग्रहण लगें तो राजा तथा प्रजा दोनों के लिए खतरनाक होते हैं अगर यह पक्ष १३ दिन का हो तो दो देशों के युद्ध की पूरी सम्भावना हो जाती है कहा जाता है की महाभारत का विनाशकारी युद्ध जिस वर्ष में हुआ उस वर्ष में २ ग्रहण १३ दिन के पाख के अन्दर ही लगे थे, ज्योतिषी आधार पर इस हगात्ना को टालना असंभव था फलस्वरूप भयानक युद्ध हुआ और पुर्वन्शी जो इस धरती पर सब से शक्तिशाली वंश था का १८ दिन के अन्दर पांडवों के हाथ पूर्णतया सफाया हो गया | इस वर्ष में ग्रहणों की कुल संख्या पांच है जिसमे से ३ ग्रहण सूर्य ,चन्द्र

बाबा रामदेव : निकटतम व्यक्तियों से सावधान रहें

बाबा  रामदेव : निकटतम  व्यक्तियों से सावधान रहें ज्योतिष के आधार पर बाबा रामदेव की कुंडली जन्म दिनांक २५ दिसम्बर १९६५ 20.२४  सायं काल  जिला महेंद्र गढ़ जैसा की बताया जाता है  के आधार पर कर्क लगन और मकर राशी की बनती है लगन कुंडली के आधार पर सप्तम घर में चतुर्तेश शुक्र और दशमेश मंगल का लग्नेश चंद्रमा के साथ योग है चतुर्तेश शुक्र का दशमेश मंगल के साथ होना इस बात का प्रतीक है की ऐसे जातक अपने कर्म के बल पर जीवन में ख्याति प्राप्त करते हैं तथा कई धर्मस्थानो  वा संस्थाओं के मालिक भी होते हैं अगर चन्द्र कुंडली के अनुसार देखा जाये तो पंचम घर में स्थित राहु पूर्व जन्मों के कर्मों को लेकर अचानक उठनें वाली अड़चन और परेशानियों  का संकेत देता है .अर्थात ऐसे जातकों के जीवन में लोकप्रिय होते है भी ऐसा समय आता है की अपनें लोग ही साथ छोड़ जाते हैं या विश्वास घात  होता है चन्द्र  और लगन कुं-डली में चंद्रमा का मंगल और शुक्र के साथ होना तथा लगन कुंडली में चंद्रमा का सप्तम घर में होना इस बात का प्रतीक है की ऐसे जातकों को परेशानी के समय सदमा या मानसिक रोग होनें में देर नहीं लगती . ऐसे जातक जैसे जनता को

INDIA AGAINST CORRUPTION: ANNA HAZARE KI JEET HOGI

INDIA AGAINST CORRUPTION: अन्ना  हजारे की जीत लम्बी लड़ाई के बाद  इन दिनों देश के अन्दर भ्रष्टाचार  के खिलाफ जन लोक पाल  बिल को लेकर केंद्र सरकार एवं जन प्रिय  नेता माननिय   अन्ना हजारे जी के बीच सिद्धान्तिक रूप से काफी हद तक तनातनी है अर्थात सरकार अपने एवं आधिकारिक वर्ग के स्वार्थों  को लेकर इतनी गिर चुकी है  की जनता के हितों की पूरी तरह से अनदेखी कर रही है ज्योतिषीय आधार पर अन्ना जी की कुंडली १५ अगस्त १९४० समय ७.१४ सुबह भींगा महाराष्ट्र को लेकर बनती है| जिसके आधार पर यह कुंडली सिंह लगन तथा धनु राशी की है लगनेश सूर्य का १२ वें घर में बुध के साथ होना सरकार के खिलाफ जन हित को लेकर लम्बी लड़ाई की ओर संकेत दे रहे हैं ज्योतिष के आधार पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी की सफलता १२वे भाव में बननें वाले सूर्य के साथ योग के कारण ही थी इस योग के चलते ही दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद आन्दोलन में सफल है थे ऐसी ही स्थिति अन्ना जी के १२वे भाव में है जो इस बात का संकेत देती है की अन्ना जी समय समय पर सरकारों के खिलाफ अहिंसात्मक आन्दोलन चलते रहे हैं . अन्ना जी की कुंडली में ९वे घर में नीच का शनि जो पंचमेश

हँसी के द्वारा भाग्य के लक्षण

हँसी के द्वारा भाग्य के लक्षण  मनुष्य का भाग विधाता के द्वारा पूर्व ही निर्धारित होता है जिसका प्रगटन शारीर के अंग प्रत्यंग तथा मनोवृति द्वारा प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है यही कारण है की ज्योतिषियों नें होनी को बड़ा प्रबल माना है .मनुष्य के शारीर के लक्षण तथा शारीरिक हावभाव जो उसके प्रारब्ध के ही कारण है .भाग्य के निर्माण एवं पतन में काफी हद तक सिद्ध होते हैं . शास्त्रों के अनुसार हँसी को तीन भागों में बांटा  गया है. १) अट्टाहास- हँसतें समय अन्यंत जोर से आवाज़ करना   २) खिलखिलाहट - तेज़ आवाज़ के साथ हाथों से तालियाँ बजनें की आवाज़ होना ३) मुस्कराहट-हँसते समय केवल अधरों का ही खुलना -दांत आदि दिखाई न देना   तीनों प्रकार की हँसियाँ मनुष्य के मानसिक बल को प्रकट करती हैं तथा मनुष्य की मनोवृति को बताती हैं जिस के सहारे समाज में वह सफल या असफल होता है. अट्टहास हँसी: मनुष्य की एक बड़ी विकृत का भी प्रतीक है ऐसी परिस्थिति में मनुष्य अपने मन की कमजोरी के कारण दुःख या सुख के समय भावनाओं को रोक नहीं पाता है तथा हँसी के माध्यम से तीव्रता  के साथ प्रकट  करता है फलस्वरूप उसके समाज में मटर कम

मनुष्य शारीर से ही प्रगट होते हैं ग्रहों के लक्षण

मनुष्य शारीर से ही प्रगट होते हैं ग्रहों के लक्षण  ज्योतिष के अनुसार मनुष्य का बदलता हुआ समय उसके भाग्य को शुभता या अशुभता प्रदान करता है जिसके सहारे समाज में रह कर मानव विकास या विनाश का रास्ता तय करता है अर्थात इस संसार में मनुष्य साधन है तो समाज साध्य है .ज्योतिष में जब किसी कुंडली का विवेचन किया जाता है तो उस समय लगन में बननें वाले योग लगन पर शुभ व अशुभ ग्रहों का प्रभाव लगन की डिग्री तथा उसके नवांश का सर्वाधिक मायना होता है . लगन क्यूंकि मनुष्य स्वयं ही है और स्थित कुंडली में ग्रह उसकी शुभता और अशुभता है जिस पर चल कर वो अपना भाग्य तय करता है. यही कारण है की संसार में कर्म के सहारे एक व्यक्ति कर्म के बल पर भिखारी से राजा बनता है और दुसरा अपनें ही कर्म के द्वारा राजा से रंक हो जाता है  |भावी प्रबल होती है उसी के अनुसार मनुष्य के मन और बुद्धि बन जाते हैं जिसके कारण मनुष्य शुभ या अशुभ कर्म करता है अर्थात खराब समय में मनुष्य खराब कर्म करता है तथा अच्छे समय में अच्छे कर्म करता है . इस संसार में समय परिवर्तनशील है जो कुंडली में ग्रहों के माध्यम से दिखलाई देता है ग्रह परिवर्तन का सीधा असर

मनुष्य शारीर से ही प्रगट होते हैं ग्रहों के लक्षण

मनुष्य शारीर से ही प्रगट होते हैं ग्रहों के लक्षण  ज्योतिष के अनुसार मनुष्य का बदलता हुआ समय उसके भाग्य को शुभता या अशुभता प्रदान करता है जिसके सहारे समाज में रह कर मानव विकास या विनाश का रास्ता तय करता है अर्थात इस संसार में मनुष्य साधन है तो समाज साध्य है .ज्योतिष में जब किसी कुंडली का विवेचन किया जाता है तो उस समय लगन में बननें वाले योग लगन पर शुभ व अशुभ ग्रहों का प्रभाव लगन की डिग्री तथा उसके नवांश का सर्वाधिक मायना होता है . लगन क्यूंकि मनुष्य स्वयं ही है और स्थित कुंडली में ग्रह उसकी शुभता और अशुभता है जिस पर चल कर वो अपना भाग्य तय करता है. यही कारण है की संसार में कर्म के सहारे एक व्यक्ति कर्म के बल पर भिखारी से राजा बनता है और दुसरा अपनें ही कर्म के द्वारा राजा से रंक हो जाता है  |भावी प्रबल होती है उसी के अनुसार मनुष्य के मन और बुद्धि बन जाते हैं जिसके कारण मनुष्य शुभ या अशुभ कर्म करता है अर्थात खराब समय में मनुष्य खराब कर्म करता है तथा अच्छे समय में अच्छे कर्म करता है . इस संसार में समय परिवर्तनशील है जो कुंडली में ग्रहों के माध्यम से दिखलाई देता है ग्रह परिवर्तन का सीधा असर

अरिष्ट्कारी ग्रहों के राजनैतिक प्रभाव

अरिष्ट्कारी ग्रहों के राजनैतिक प्रभाव  देश के अन्दर इन दिनों हर क्षेत्र में हलचल मची हुई है.  कहीं पैर पुलिस द्वारा निस्सहाय लोगों पर बरबस लाठी चार्ज एवं मानवीय अधिकारों का हनन है तो दूसरी ओरे राज नेताओं का आपस में शीत युद्ध.बाबा रामदेव व माननीय अन्ना हजारे जी का आमरण अनशन और धरना प्रदर्शन का सिलसला जोरों पर है जिस से देश के अन्दर हलचल मची हुई है | ज्योतिष के अनुसार देश की कुंडली वरिश लगन तथा कर्क राशी की है ९ मई २०११ से गुरु जो इस कुंडली का अष्टमेश तथा एकादशेश है का गोचर १२ वें भाव (संन्यास भाव ) में है जिससे देश के अन्दर कानून व्यवस्थ कमजोर पड़ गयी है  एवं जन समस्याएं निरंतर बदती जा रही है लेकिन शनि का गोचर कन्या राशी तथा शुक्र के नवांश में होने के कारण देश की नयायपालिका अपनें अंकुशों के द्वारा राज नेताओं की जन विरोधी नीतिओं का दमन करनें में सफल होगी.  १३ जून २०११ से मंगल का गोचर वरिश राशी में ही है .मंगल देश की कुंडली का सप्मेश व द्वादशेश है जो पालिक बल एवं सैनिक कारवाही का प्रतीक है १५ जून को जब चंद्रमा रहू के साथ वृश्चक राशी में होगा फलस्वरूप देश में राजनैतिक संकट तथा सैनिक दलों

मेष राशी में ग्रहगोचर : सरकार पर प्रभाव

मेष राशी में ग्रहगोचर : सरकार पर प्रभाव  इस समय बुद्ध ,शुक्र,मगल व् गुरु का गोचर मेष राशी में है जिसका स्वामी मंगल है नवांश में मंगल और शनि के बुद्ध के नवांश में स्थित होने के कारण तथा गुरु के मंगल के नवांश में होने से यह समय जनता के लिए कष्ट दाई तथा प्राकृत आपदा से युक्त सिद्ध हो सकता है जिसमें भूकंप आदि के झटके या सुनामी जैसी आपदा संभव है. अगर हम देश की कुंडली की बात करें तो देश की कुंडली में यह गोचर कुंडली के दसवें घर को जागृत करता है. जो केंद्र व राज्य सरकार की कार्य क्षेत्र कही जाती है .कुंडली का सप्तमेश शनि जो जनता के भाव को प्रकट करता है अपनें से नवं घर में है तथा मंगल के साथ बुद्ध के नवांश में है अर्थात इन दिनों केंद्र सरकार कीकुछ ख़राब नीतिओं के चलते देश के अन्दर आंतरिक कलह हो सकती है.जिसका कारण केंद्र सरकार का पूर्व इतिहास होगी. देश की कुंडली में वर्तमान समय में चलनें वाली दशा(१५ अगस्त २००९ से १५ अगस्त २०१५ तक) में अन्तर्दशा राहू जो ३ फ़रवरी २०११ तक रहेगा ही,तथा  गुरु का प्रत्यंतर  ११ अक्टूबर २०११ तक होने के कारण राजनीती में महिलाओं के बढते कदम संकट प्रदान करेंगे. अर्थात महिल

दत्तक पुत्र

दत्तक   पुत्र  संसार के हर प्राणी की इच्छा संतान उत्त्पन्न करने तथा उसका पालन पोषण कर बड़े  करने की होती है. जो इस सृष्टि के शुभ्रम्भ से ही चली आ रही है. लेकिन इसमें मनुष्य एक ऐसा प्राणी है की वो अपनी संतान को अपनें ही हाथों पाल पोस कर बड़ा करने की प्रबल इच्छा रखता है. हिन्दू दर्शन के अनुसार पुत्र को माता पिता के सुंदर कर्मों का फल माना गया है. जो वंश वृद्धि में सहायक होता है. इसीलिए मनुष्य की प्रबल इच्छा होती है की उस से उत्त्पन्न संतान में एक पुत्र हो.  ज्योतिष अनुसार संतान की उत्पत्ति मनुष्य के पूर्व जन्मों का फल है. अर्थात पूर्वजन्मों के कर्मों का फल संतान देने में सहायक सिद्ध होता है जब की मुर्ख जन उसे अपने मैथुनी कर्ण का प्रभाव और फल समझते हैं मैथुनी कर्ण ब्रह्मा की मैथुनी सृष्टि के अनुसार मनुष्य का स्वाभाविक कर्म बन गया है. लेकिन उसका साधन संतान या पुत्र उत्त्पति हो आवश्यक नहीं है. अगर कुंडली का पंचम और पंचमेश पाप प्रभाव में है.तथा संतान का कारक गुरु पीड़ित अवस्था में है तो मनुष्य को संतान का सुख मिलना असंभव होगा लेकिन अगर गुरु ही पीड़ित अवस्था में है और उसका पंचम और पंचमेश से स

हिन्दू सौर बैशाख मास

हिन्दू सौर बैशाख  मास  का आरंभ १५-४-२०११ बैशाखी  तथा  चन्द्र  मास  का  आरम्भ  दिन  सोमवार  पूरण मा से  हो  रहा  है |  इस  मास  में पांच मंगल  वार होने  के  कारण प्राक्रतिक  आपदा  तेज  आधी  भूकंप  की  यदा  कदासंभावना  जब  मंगल  मीन  राशी  से  अपनी  राशी  मेष  में  प्रवेश  करेगा  गुरु  के मेष  राशी  में  ९ माई  को  प्रवेश  करेगा  एवं  शुक्र  का  पीड़ित  नवांश  में  जाने  के  कारण भूमि  सम्बन्धी  घटना  होने  की  पूरी  संभाबना  है | इस  मास  में  रेल  यतायात  पर  भी  प्रभाव  पड़ेगा  साथ  ही  साथ  पेट्रोलियम  पदारथ  गैशआदि  अतियंत  महगी  होने  के  कारण  जनता  के  बीच  हाय  तोबा  होगी  | इस  के  साथ  साथ  सरकार  से  दूरी  बढनी  तैय    है | समाज  के  अंदर  जन  हितो  की  अनदेखी  होगी  पुलिस  के  अत्याचार  बढ़ेगे | राज नेता  एवं  अधिकारी  वर्ग  अपना  स्वार्थ  पूरा  करने  जनता  का  भरपूरण  शोषण  करेगे | दिल्ली  के आसपास  हलके  फुल्के  भूकंप  आदि  के   झटके  हो  सकते  है  जिस  से  धन  जन  हनिकी  कोई  सम्भावना  नहीं  है  |  लेकिन  तेज  हवा  तथा  अग्नि  सम्बन्धी  घटना  धन  जन  की  हनि  कर  सकती  है

गुरु का मेष राशी में संचार

गुरु का मेष राशी में संचार ९ मई २०११ को गुरु मीन राशी से मेष राशी में संचार करेंगे .काल पुरुष की कुंडली में मेष राशी सिर पर उदय होने वाली तथा  प्रथम  राशी है |राशी अधिपति  मंगल है जो अग्नि कारक ग्रह है. गुरु के मेष राशी में संचार के समय गुरु देश की कुंडली के नवं घर से दसवें घर में संचार करेंगे दसवां घर कानून ,संसद का होने के कारण वैधानिक तरीकों में कुछ बदलाव की सम्भावना है. जो जनता के हित के लिए होगा . गुरु का मेष राशी संचार सूर्य तथा मंगल के साथ होने के कारण भारत के लिए अंत्यंत शुभ फली सिद्ध होगा लेकिन मंगल का शुक्र के नवांश में जाने के कारण महिला वर्ग का शोषण बढ जायेगा अतः क़ानूनी व्यवस्था मजबूत होने के बाबत भी समय समय पर महिला शोषण की शिकार होती रहेंगी. व्यापारिक दृष्टिकोण से गुरु के राशी परिवर्तन के बाद गुरु के कारक तत्व जैसे सोना ,पीतल,ताम्बा के भाव अत्यंत महंगे होंगे इसके साथ साथ मंगल के शुक्र के नवांश में जाने के कारण पेट्रोलियम पदार्थ महंगे होंगे तथा पेयजल के साधनों में कमी होगी जिसको लेकर समाज में अव्यवस्था तथा जनता का कानून से भरोसा और कम हो जायेगा. इसके साथ जब शुक्र अपनी उ

हिन्दु नव वर्ष के प्रभाव

नब सम्बत २०६८ का देश की जनता पर शुभ अशुभ प्रभाव  हिन्दू परम्परा के  अनुसार  विक्रमी  सम्बत २०६८ का  शुभ  आरंभ  चेत्र शुक्ल प्रत पदादिन  सोमबार  से  हो रहा  है | इस  सम्बत  को  विक्रमी  सम्बत  अनुसार  क्रोधी  सम्बत  के  नाम  से  जाना  जायेगा | जो स्रष्टि  के  आरम्भ १९५५८८११२ के  अंतर  गत तथा  विक्रमी  सम्बत २०६८तथ  महावीर  निर्माण  सम्बत ५११२ व  क्र्षण  सम्बत ५२४६  तथा  सप्त ऋषि सम्बत ५०८७ श्री वुध  सम्बत  अनुसार २६३४\३५ एवं  इगल  सम्बत सन  २०११-२०१२ होगा  इस  की गढ़ना  खालसा  सम्बत  अनुसार ३१२-३१३ एवं  नानक  शाही  सम्बत  अनुसार ५४२-४३ होगी | सम्बत  के  अनुसार  सतयुग  की गढ़ना १७२८०० तथा त्रेता  युग  की  गढ़ना १२९६००० एवं द्वापरकी  गढ़ना ६८४००० कलिकाल  को ४३२००० प्रमाण बर्षो  का  माना  गया  है | विक्रमी  सम्बत  अनुसार विष्णु विशति  का १८ वाँसम्बत क्रोधी  नामक  सम्बत  होगा  | जिस  का  सुबह  आरंभ  ४अप्रैल  २०११  दिन  सोमबार  से  हो  रहा  है अत  इस  सम्बत राजा  सोम [चन्द्र ]होगा |जोतिष  अनुसार  क्रोधी  नामक  सम्बत  होने  पर लोग  क्रोधी  तथा  अधिकारी  स्वार्थ  पूर्ति  की  चरम  सीमा  पर  हो
प्रसव का महूर्त :एक मिथ्यापूर्ण विचार  आधुनिक समय में प्रसव के समय (जिस समय बच्चा पैदा होता है ) का ज्योतिषय आंकलन का प्रचलन बड़े पैमाने पर है | लोगों का ऐसा मानना है की शुभ महूर्त में कराय गाये माध्यम से उत्त्पन्न होने वाला बच्चा गुण वां तथा होन हार होता है |फलस्वरूप गर्भवती महिलाएं नूतन बच्चे को जन्म देने हेतु ज्योतिषय माध्यम से शुभ महूर्त का निर्धारण करा ओपरेशन के माध्यम से गर्भ की अवधि से पूर्व ही प्रसव करवा लेती हैं जिस से नवजात शिशु के शरीर पर प्रतिकूल असर पड़ता है तथा आँख वा कान कमजोर होने की पूर्ण सम्भावना होती है दूसरी ओंर प्रसव क्रिया में जबरदस्ती करनें के कारण गर्भवती महिला को भी मृत्युतुल्य कष्ट या अन्य अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ज्योतिष में प्रसव करने का कोई महूर्त नहीं होता है .प्रसव क्रिया गर्भाधान की प्रक्रिया पर स्वतंत्र निर्भर है अतः गर्भाधान के काफी महूर्त हमारे ज्योतिषशास्त्र में ज्योतिषविदों द्वारा कहे गए हैं ,अगर किसी महिला का गर्भाधान शुभ महूर्त में होता है तो प्रसव स्वयं ही शुभ महूर्त में होगा उसके लिए किसी भी प्रक्रिया की ज़रूरत नहीं है. अगर गर्भा