अछी संतान के लिए अबस्यक है शुभ महूर्त में गर्बाधान

गर्बाधान  के समय से होता है शिशु का जन्म समय का निर्धारण
आज के समय में लोग उतम गुण करी संतान हेतु ज्योतिष का सहारा लेते है |जिस के कारण समाज में अजीव सी प्रथा का प्रचलन हूआ है कि लोग ज्योत्षी से प्रसब यानि शिशु का जन्म समय का निर्धरण करबाते है तथा ज्योत्षी की सलहा पर शुभ महूर्त पर शेल्यचिकत्सा द्वरा मादा के सरीर से शीशु को प्रथक कर उस के उज्जवल भविष्य की कामना करते है |यह सिधांत ज्योत्शीय आधार पर अ माननीय है एवं निंदनीय है |अगर किसी माता पिता कु उत्तम संतान की आबस्य्कता है तो उन्ह प्रसब समय की जगह गर्बाधानज्योतिष का सहारा लेना चाहिए |हमारे ज्योतिष शास्त्र में उतम संतान के लिए अनेक महूर्त पूजा पाठ अदि प्रतेक पंचांग में है जो सरलता से उपलब्ध हो जाते है |लेकिन संतान के इच्छुक दम्पति उन नियमो का पालन न कर के प्रक्रति के सिधांत के खिलाप एसा जघन्य अपराध करते है |जिस से जननी एवं शिशु किसी का भी जीवन खतरे में पड़ सकता है |एवं जन्म जातशिशु का उतम भाग्य तो क्या उसका सरीरक विकाश रुक सकता है |एसा चिकत्सको का भी मानना है
मुझे श्रीमत भगवत पूरण का हरिराक्ष जो हरिना क्रशव के बड़े भाई के उत्पत्ति का उदाहरण याद है |मुनि क्स्यब की दो पत्नियां थी १ दिति २ अदिति दिति से सभी देत्य पैदा हूए एवं अदिति से सभी देवता ओ का जन्म हूआ |एक समय कश्यप मुनि शाम के समय जब सध्या बंदन की तैयारी करहोने से अशुभ समय के  रहे थे उसी समय दिति मुनि की ज्येष्ठ पत्नी काम विभोर होकर अपने पति के पास आई तथा अपनी वासनाये शांतकरने को कहा जिस पर मुनि द्वरा उसे काफी समझया गया कि संध्या काल है जिस के स्वमी भगवान शिव है इस समय मैथुनी कर्म करने से भगवानशिव रुष्ट होंगे एवं गर्बधारण के कारण अशुभ समय होने से अछी संतान उत्पन्न नहीं होगी |लेकिन बार बार आग्रह करने पर भी दिति नहीं मानी परिणाम स्वरूप अशुभ समय पर मैथुनी कर्म हूआ एवं दिति गर्बवती हूई वह गरब १६ मास यानि संन्य समय से 7 महा अधिक ठहरा जिस से देवतायो को भी चिन्ता होने लगी एवं उस गर्ब से भयानक देत्य पैदा हूआ जिसे दुनियां में हरिनाक्ष के नाम से जाना गया |

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