पुनर जन्म प्रकिया में लिंग सरीर बदलना भी संभव





मनाब का सरीर पांच महाभूतो से मिलकर बना है जो इस प्रकार है  मिटटी पानी अग्नि आकाश  एवं वायु इस में चाहे कोई स्त्री हो या पुरुष सभी में तत्व सामान होते है |हमारे शाश्त्र एवं पूरण आत्मा को जो स्वरूप है जिसे अजर अमर माना गया है उसे लिंग भेद से रहित मानते है यानि आत्मा जो परमात्मा का अंश है वह न स्त्री है न पुरुष नहीं नापुन्सिक है  न कार्य है नहीं कारण है |उसे जिस अबस्था में जिस लिंग सरीर में जिस योनी में रखा जता है वही स्वरूप धारण करती है |म्रत्यु काल जब इस सरीर को ग्रषित कर लेता है तो स्थूल सरीर उन्ही पांच मह्भूतो में चला जाता है जिस से उनकी रचना हूई है |इस के साथ आत्मा सूक्ष्म सरीर धरण कर मन की प्रबल इच्छा अनुसार जन्म लेती है तथा बंधन में बंध जाति है |जिसे ऋण अदि बंधन भी कहते है |हमारे शास्त्रों अनुसार जीव की इछयो का तथा ऋण का बंधन कहते है |ऋण अदि बंधन के कारण पुनर जन्म में सरीर के जन्म सबंध जैसे माता पिता भाई स्त्री पुत्र अदि की व्यवस्था होती है |पूरब जन्म के ऋण या कर्म अनुसार वह अच्छे या बुरे बनते है |अगर ये सभे पूरब जन्म में आप के ऋणी तो आप की इच्छा अनुसार कार्य करेंगे अगर आप उनके ऋणी है तो आप की इच्छा के बिपरीत कार्य करेंगे और आप से प्रतिशोध का भाव रख कर आप को दुःख देंगे |यह कार्य आप के सबधी ही नहीं आप के नौकर मित्र या वह लोग भी कर सकते है जिन पर आप को भारी भरोशा है |इस संसार में हर जीव को अपने कर्मो का फल भोगना पड़ता है |पूरब जन्म के संचित पुन्य कर्म सुख एवं पूरब जन्म के संचित पाप कर्म दुःख देते है |जीव के पाप एवं पुन्य कर्मो को उसकी कुंडली द्वरा देखा जा सकता है |कुंडली का पंचम भाव पूरब जन्म के पाप एवं पुन्य कर्मो को दर्शता है |इस में कोई संदेह नहीं है |मानस मर्मग्य तुलसी दास जी नेभी मानस में कहा है  -कर्म प्रधान विश्व रच रखा |जो जस करत तस फल चाखा||


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कोहू न काहू क़र सुख दुःख दाता |निज कृत कर्म भोग फल पाता||  
गरल सुधा रिपु करें  मिताई ,गोपद सिन्धु अनिल सितलाई .
गरुण सुमेर रैन सम  ताहि ,राम कृपा कर चितवें जाहि  ..
Pt.Shriniwas Sharma
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