प्रतिशोध हेतु पुनर जन्म
ज्योतिष पूरब जन्म को प्राचीन समय से मानती आई है |हमारे शास्त्रों में भी इस का वरण है पदम् पुराण में इसे ऋण अदि बंधन के नाम से जाना जाता है |वैसे तो हमारे पुराणों में अनेक उदारण इस के है |लेकिन महाभारत के सिखंडी का उदारहण सर्वो उपर है |महाभारत के शिखंडी का दूसरा जन्म द्रोपत पुत्र यानि द्रोपती के भाई के रूप में भीष्म पितामहा से अपने पूरब जन्म के प्रति शोध का बदला लेने हेतु हूआ था |जो भीष्म की म्रत्यु का कारण बना |तथा भीषम जिन को इच्छा म्रत्यु का बरदान था उस शिखंडी के कारण उनकी म्रत्यु हूई |यानि ज्योतिष पूरब जन्म के इस सिधांत को मान्यता देता है |जिस में कोई जीव अपना ऋण पूरा करने हेतु सबंध स्थापित कर बदला लें सकता है |चाहे यह सबंध मित्र का हो स्त्री का हो या पिता पुत्र का हो |
केई बार यह देखा गया है मनुष्य की आत्मा म्रत्यु के बाद कारण सरीर को धारण कर जिसे प्रेत भुत आदि योनी कहाँ जाता है अपना प्रतिशोध का बदला लेती है |इस में कोई संदेह नहीं है |जिन जातको पर प्रेत आदि की बाधा बनती है उन का सबंध पूरब जन्म के ऋण से है जो कारण सरीर प्रेत द्वरा पूरा किया जाता है |
वैसे 05 -06 साल के ८० प्रति शत बच्चो को अपनी पूरब जन्म की घटना याद रहती है लेकिन बाल अवस्था के कारण समाज उनका विश्वास नहीं करता है |ज्योतिष शास्त्र का यह भी मान ना है कि पूरब जन्म के शरीरो चिन्ह जातको के अगले सरीर पर होते है जो धीरे धीरे गायब होते है |
एक बच्चा जिस की आयु 05 वर्ष जिस के सरीर पर सर्प योनी का चिन्ह था मै उस का पूरब जन्म का सबंध सर्प योनी से मानता था |लेकिन समाज के अधिकतर लोग भ्रम बस उसे शिव मानकर उसकी पूजा करते थे यह बात अश्रय करने बाली थी |लोग भ्रम बस सत्य बात को भूलकर अंध विश्वासों का सहारा लेते है यह बड़े देख की बात है |
कोहू न काहू क़र सुख दुःख दाता |निज कृत कर्म भोग फल पाता||
गरल सुधा रिपु करें मिताई ,गोपद सिन्धु अनिल सितलाई .
गरुण सुमेर रैन सम ताहि ,राम कृपा कर चितवें जाहि ..
Pt.Shriniwas Sharma
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