jyotish men pub janm sanskar




ज्योतिष एक एसी विधा है जो मानब के कर्मो के फल को प्रबल मान्यता देती है मानस मर्मग्य गोस्वामी जी ne तो इतना तक लिख दिया है तथा ये चोपाई भगवान श्री राम के मुख से कहलवाई है जो इस प्रकार है -
कर्म प्रधान विश्व रच राखा | जो जस करय , तस फल चाखा ||
हंस बोले रघुवंस कुमारा |    विधि के  लिखे को  मटन  हरा  ||

-- यानि इस संसार में सुख और दुःख का हेतु जीव के कर्म है ज्योतिष भी पूर्व जन्म के मान्यता देती है तथा आगामी जन्म को भी मानती है कुंडली का पंचम भाव जातक के पूरब जन्म को दर्शाता है जिस के परिणाम दशा अनुसार जीव इस जन्म में भोगता है अगर पंचम भाव पर अशुभ प्रभाव हो तो उस कुंडली को शापित [अभिशाप] बालीकुंडली माना जाता है जिसे ज्योतिष में ऋण अदि बंधन के नाम से भी जाना जाता है यानि जातक के वर्तमान जीवन की सफलता काफी हद तक उसके पुबजन्मके कर्मो पर निभर करती है |इस जीवन में प्रणय सब्न्धो की सफलता असफलता  अछी संतान ,शिक्षा अच्छा ज्ञान  हानी लाभ जीवन और मरणकी व्यवस्था काफी हद तक जातक के पूबजन्म के शुभ अवं अशुभ कर्मो पर निहित होती है |
इस संसार में प्रतेक मानब अपने कर्म के बल पर जीवन में अछी सफलता चाहता है लेकिन उस के पूरब जन्म के पाप कर्म उसे सफल होने में रोक देते है या पूरब जन्म के पुन्य कर्म उसे थोड़े प्रयास से अछी सफलता देते है ये दोनों ही बाटे पूरब जन्म के संचित कर्म पर निर्भर करती है |पर एसा भी ज्योतिष के मान्यता नहीं है वर्तमान जीवन के भुमका नगण्य हो लेकिन इतना अबस्य है की अगर पूरब जन्म के पाप कर्म संचित रूप से कार्य कर रहे है तो वर्तमान को सफल होने में सफल होने में वधा अबस्य आयेगी ये मेरा मानना है |
अभिशापित कुंडलियो का विवेचन किया जाये तो अगर उस में पंचम घर में गुरु पाप प्रभाव या पाप नवांश में हे हो उसे भगवान् या इश्वरी शाप माना जाता है एसी प्रस्थति में देविक प्रकोप के कारण बेठे बिठाये अनेक प्रकार की परशानी आ जाती जिस का आशानी से न तो हल दिख लायी देता है नहीं उस परेशानी का कारण समझ आता है |एसी स्थति में प्रभु क्रपा के अलावा और कोई सहारा नहीं होता है भगवानदया ही तारोंन तारणबन ती है |
मुझे इस भाग्य की चर्चा करते हूए एक बात याद आती है की एक बार मुझे श्री भागवतम कथा कहने किसी गावं में जाना था कथा में सायक कार्य हेतु कुछ पंडितो की जरूयत थी |उस समय मुझे एक विद्वान पंडित जी का नाम बतलाया में मिलने के लिए गया तो पता चला कि पंडित जी कुछ दिन पहले जेल से जमानत पर छुट कर आये है सारी कहनी सुनी तो एक बात सामने आई पंडित जी के खानदानी लोगो में झगरा हूआ था तथा प्रत्सोधके कारण पंडित जी का नाम लिखा दिया पंडित जी की आयु ८० वर्ष की थी जेल जाना पड़ा २० दिन बाद गोचर बदलने काफी यात्नायो के बाद उनकी जमानत इस आधार पर हूई की उनकी शरीक क्षमता सही रूप खड़े होने लायक नहीं थी बाद में उन्हें कोट से मुकदमे में रिहाई भी हूई लेकिन पूरब जन्म संस्कार या देविक प्रकोप ने अपना कार्य किया और पंडित जी को ये कलक व्रद्धअवस्था में भोगना पड़ा | मेरा मानना यह की पर्व जन्म संस्कार संचित कर्म जातक जातक के बर्तमान जन्म को सफल एवं असफल बनाते है
कोहू न काहू क़र सुख दुःख दाता |निज कृत कर्म भोग फल पाता||  
गरल सुधा रिपु करें  मिताई ,गोपद सिन्धु अनिल सितलाई .
गरुण सुमेर रैन सम  ताहि ,राम कृपा कर चितवें जाहि  ..
Pt.Shriniwas Sharma
Mo:9811352415                                                       Image by FlamingText.com
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