देवी भगवती कत्यानी




दशेहरा बाले दिन माँ भगवती कत्यानी नेकिया था मसिससुर बध 
लोग दसहरा बाले दिन रावण का पुतला फूकते है |तथा राम रावण का युध दिखलाते है रावण के साथ साथ मेघनाथ एवं कुम्भकरण का पुतला भी जलाते है |इस में कोई संदेह नहीं है |लेकिन एक घटना जो इन नवरात्रियो में विशेष मायना रखती है |वह मसिससुर बध 
देवी कत्यानी जिन की उत्पति सभी देवो के तेज से अश्वन क्रष्ण पक्ष चौदश को हूई थी |इस देवी का प्रथम पूजन महर्षी कर्तके पुत्र कात्यान ने किया था |एवं माँ भगवती से बरदान माँगा था कि वह उनकी बेटी के रूप में स्थापित हो इसी कारण देवी भगवती कत्यानी कहलाई |देवी कत्यानी ही ब्र्जेस्वरी है |जिन की उपसना श्री क्रष्ण को अपने को अपने पति रूप में पाने के लिए किया था |दुर्गा सप्तसती के माध्यम चरित्र में लक्ष्मी के रूप में देवी कत्यानी की लीला का वरण है |माँ की यह कथा भक्तो को परमा आनन्द देने बाली है |महिसासुर मर्दनी देवी कत्यानी ने अश्वन शुक्ल पक्ष दसमी के दिन मायावी महिसासुर का बध कर असुर सम्राज समाप्त किया |जिस के बाद देवतायो ने जय घोष किया एवं शंख नाद किया एवं माँ भगवती की शुक्रादी क्षेत्र में स्तुति पूजा बंदन कर प्रशन्न किया |इस अलोकिक चरित्र के तीन अध्याय है जो भक्तो को परम आनंद देते है |माँ कत्यानी की उपसना भक्तो के सभी शंक्तो को दूर करने बाली है |
बोलिए साचे दरबार की जय 

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कोहू न काहू क़र सुख दुःख दाता |निज कृत कर्म भोग फल पाता||  
गरल सुधा रिपु करें  मिताई ,गोपद सिन्धु अनिल सितलाई .
गरुण सुमेर रैन सम  ताहि ,राम कृपा कर चितवें जाहि  ..
Pt.Shriniwas Sharma
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