क्रष्ण अबतार एवं भारत की आधुनिक दशा






श्री क्रष्ण नम गोविन्दाय नम  श्री क्रष्ण शरणम मम  .
भगवान् श्री क्रष्ण का जन्म भद्र क्रष्ण पक्ष अष्टमी की अर्ध रात्रि यानि रात्रि अभिजित में हूआ |हमारें देश में दो अबतार अतियत प्रभावशाली माने गये है जिन में प्रथम राम दूसरा क्रष्ण इन दोनों अबतारो का जन्म अभिजित महूर्त में ही हूआ श्री राम का जन्म नोवी तिथि को दिन के अभिजित में हूआ एवं श्री क्रष्ण का जन्म रात्रि के अभिजित काल में हूआ |ये दोनों ही अबतार विश्व अलोकिक माने जाते है श्री राम विश्व में मारदिया स्थापना के लिए प्रसिद्ध हूए तो भगवान् श्री क्रष्ण लीला प्रुसोतम यानि अपनी लिलायो के लिए प्रशिध हूए |
दोनों ही अबतार के समय सामाजिक प्रस्थति बड़ी भयानक थी श्री राम के समय सुबाहु मारीच रावण का विश्व व्यापी आतंक था तो क्रष्ण के समय मथुरा नरेश कंश  ज्रासिधू तथा काशी नरेश  शिशुपाल काशी नरेश एवं पुर बंशियो का आतंक कुछ कम नहीं था |लेकिन श्री क्रष्ण एक एसा अलोकिक अबतार हूया की जन्म हूते ही कंश के जेल पर परहरे दार सो गए वासुदेव एवं माँ देवकी को जो कानून हथकड़ी लगी थी सभी खुल गयी  जेल में पड़े ताले टूट गये ये सभी भगवानश्री कर्षण के प्रगटन के प्रभाव से हूआ लोग भलेही इसे अश्रय चकित माने लेकिन हकीकत यही है जहाँ ब्रह्म का प्रकटन हो वहा माया का प्रभाव ख़तम हो जाता है जैसे सूर्य के उदय होने से रात्रि का नाश हो जाता है |यही कारण है कि माया के प्रभाव को कम करने या उस का नाश करने के लिए लोग इश्वर ब्रह्म की पूजा करते है |इस संसार में दुखो का मूल कारण अज्ञान रुपी माया है तथा ब्रह्म सत्य एवं कभी नास न होने बाला तत्व है अत माया दुखो का हेतु मानी गयी है एवं इश्वर क्रपा स्वरूप सुखो का साधन कहा गया है |
यही कारण है भगवान श्री क्रष्ण के जन्म होते ही माया के सभी जंजाल टूट गए लोकिक संसार की व्यवस्था भंग हो गयी जो निर्दोष वासुदेव देवकी सजा काट रहे थे उन्हें बंधन से मुक्ति मिली एक क्रष्ण अबतार ही एसा अबतार हूआ जिस के जन्म के समय इतना प्रभाव देखने को मिला |
इस के साथ साथ सभी भक्तजन यह भी विचार करे कि भगवान् श्री क्रष्ण की उड़ घोषणा के बाद जैसे बासुदेव भगवान श्री क्रष्ण को गोकुल पंहुचा कर आये राज्य व्यवस्था जैसी थी वैसी हो गयी वासुदेव देबकी को हथकड़ी बड़ीलग गयी पहरेदार जाग गए ये प्रभाव जब हूआ जब बासुदेव माया रुपी कन्या को लेकर आये एवं कन्या का रोना सुरु हूआ और पहरेदार जाग गए |मेरा कहने का तात्त्पर्य यह की ब्रह्म के जाने से माया के प्रभाव बडजाता है जहा माया है वही अज्ञान है जहाँ अज्ञान है वही अहिंकारजहाँ अहिकार है वही नाश है |इस में कोई संदेह नहीं है |

लेकिन मुझे उस समय बहुत बड़ा आश्चर्य होता है जब लोग गोपी एवं क्रष्ण के आलोकि प्रेम भरे चरित्र पर अंगुली उठते है या संदेह करते है |उस समय मेरे मन में विचार आता है कि मै क्रष्ण शब्द की व्याख्या करू अगर हम क्रष्ण शब्द की व्यख्या करे तो शब्दों के अर्थ को समझने मात्र से ही सभी भ्रान्ति दूर हो जाती है जिस को समझना भी बहुत सरल है संस्क्रत में कर्ष शब्द का अर्थ खीचना होता है |अर्थात क्रष्ण वह जो दुनियां को अपनी ओरआकर्षित किये हूए है या खीचे हूए है |अब आप सभी बिचार करे जो सम्पूर्ण संसार को खीचे हूए है वह उस मदारी के सामान होता है जो अपनी डुग डुगी पर सम्पुरण संसार को नाचता है और उस के अक्र्ष्ण पर सम्पुरण संसार नाचता है |एसे अक्र्ष्ण बिंदु से कोई भी प्रेम करेगा स्त्री हो पुरुष |वैसे गोपी शब्द का अर्थ करे तो और भी भ्रान्ति दूर होती है  हिंदी या संस्क्रत में गो शब्द का अर्थ माया होता है पी  शब्द का अर्थ ग्रहण करना होता है |यानि गोपी वह अनुभवी चरित्र है जो जो माया से विरक्त है |अब आप विचार करे जिस की विरक्ति माया से हो चुकी हो उस की आशक्ति व्रह्म में ही होगी |अत गोपी एवं क्रष्ण का प्रेम अलोकिक है जिसे समझना कठिन तो है लेकिन परम आनन्द दाई है |
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कोहू न काहू क़र सुख दुःख दाता |निज कृत कर्म भोग फल पाता||  
गरल सुधा रिपु करें  मिताई ,गोपद सिन्धु अनिल सितलाई .
गरुण सुमेर रैन सम  ताहि ,राम कृपा कर चितवें जाहि  ..
Pt.Shriniwas Sharma
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