क्रष्ण अबतार की अबस्कता

भागवान श्रीक्रष्ण का अबतार जिस परस्थितियो में हूआ वे प्रस्थित यो में हूआ समाजिक अनोखा खेल था |जरासिंध कंस का अत्याचार तथा अन्य क्षत्रियो राजोयो का प्रजा के अधिकारों की अनदेखी करना निरतर बड़ते बल अपराध इस के साथ साथ भगवन राम द्वरा माँ कैकई  को वचन देना त्रेता युग संभव मनु की द्वरा करी गयी तपस्या कंस द्वरा देवकी वासुदेव पर अत्याचार के साथ साथ धर्म धुरंधर महराज अग्रसेन पर अत्याचार इस के साथ साथ ऋषी मुनियों द्वरा ब्रज गोपी रूप में ताप करना  कासी नरेस के साथ साथ अन्य सभी राजाओ का अत्याचारी होना भक्तो के हित के लिए अनेक लीलाए करना |वेसे भगवन को भक्त वत्सल कहा जाता है भगवान् को सर्व अधिक भक्तो का मानअधिक प्यारा होता है |भागवान को भक्तो के मानसे अधिक कोई माननहीं है इसी को तुलसी दासजी ne मानसमें दोहराया है -
सब मम प्रय ,सब मम उपजाए |सबसे अधिक मनुज मोय भाए||
मनुजो  में प्रय  मोह  ज्ञानी       |   ज्ञानी    से     प्रय     बिज्ञानी ||
इन   सब  प्रय  मोह निज  दसा   |  सत्य कहू छोड़  ना दुसरी असा |
गोस्वमी जी आगे लिखते है -
जब  जब  होय   धर्म के   हानि    | बड़े पाप  अधम  अभमानी   ||
कर  हे कुदर्स्त  धर बिवध सरीरा |  देय दुष्ट  साजन मन पीरा
तब    तब     धर  प्रभु विवध सरीरा |हरह सदा साजन मन पीरा ||
यानि भागवान को अपने भक्त से अधीक कुछ भी प्रयनहीं है जब अनेक प्रकार के अत्याचार प्रथ्वी पर होते है समाज में नैतिक पतन होता है इस दुस्प्रभाव से प्रक्रति का संतुलन बिगरने लगता है |स्रष्टि अपने नियम बदल देती है समय पर बर्षा नहीं होती रुतुओ के प्रभाव बदल जाते है  अन्न एवं जल की भरी कमी होती है |समाज में झूठ चरमसीमा पर होता है रजा जनता की परबा छोड़ अपनी चिन्ता में लगे रहते है बईमानी पाखंड  अत्यअधिक संखिया होते है |बालअपराध  वरदअपमान होने लगते है |गोसमी तुलसी दासजी मानसमें वरण किया है -
निश्चरसकल शेष मूनी खाए  |सुन रघबीर नेयनजल छाये ||
पंडित    - श्रीनिवास शर्मा { देवज्ञ }
 email ; shriniwas 73 @ gmail . com
मोब ; 9811352415 {whatsup } 8826731440
     
              

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