dsha dwra badlti sarirak avstha

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इस ब्रह्मांड के सौरमंडल में स्थित ग्रह प्रथ्वी पर जो अपनी ऊष्मा द्वरा जो प्रभाव डालते है उस से कोई अछूता नही बच सकता है चाहे वह व्रक्ष हो त्रियक जीव या चोपये पशु पक्षी सभी पर ब्रह्मांड में स्थित ग्रह अपना प्रभाव छोड़ ते है जिससे उनके जीवन में गहराप्रभाव पड़ता है |अगर ग्रह की ऊष्मा अनकूल है जो कुंडली में दशा के माध्यम से देखि जाति है तो सरीर को बल प्राप्त होगा अगर ग्रह की ऊष्मा प्रतकूल है तो सरीर के बिकास में गीरबत आगेगी जिस का आकलन चलने बालीदशा त्तथा तत्काल प्रभाव डालने बाले गोचर से लगाया जाता है लेकिन प्रतकूल एवं अनकूल समय की पहचान जीव के सरीर पर स्वयं झलकती है |
जैसे की जातक को जन्म समय शनि की दशा प्राप्त हूई जो जातक की कुंडली के ६ ,८ ,12 घर का स्वमी है या अपनी नीच राशी नीच नवांश में है या प्राप्त दशा का सबंध पंचम से ६,८ 12 तो जातक शारीर से अतियंत कमजोर तथा रोगी होगा एवं रोग उस ग्रह की प्रवर्ती के अनुसार होगा इतना ही नहीं अगर जन्म समय अगर प्राप्त दशा कमजोर है तो उसका प्रभाव सम्पुरण जीवन पर पड़ेगा अर्थात उस के जीवन का विकाश कमजोर ही रहेगा अगर जन्म समय ग्रह दशा ५ ,9 या लग्न की है तथा दशा स्वामी को वर्गो में उतम बल प्राप्त है तो जातक सरीर से सुंदर तन्दुर्स्थ बुद्धिमान होगा तथा उसकी निरोगता का प्रभाव सम्पुरण जीवन में रहेगा |
प्राचीन समय की एक हिंदी की कहावत है कि -होनहार बीरबानके  होतचिकने गात या फीर एक और कहाबत है जो ओस प्रकार है कि बालक के पैर पलने में दीखते है  यानि कोई जातक जीवन में कितना विकाश करेगा उस के लक्षण जन्म समय में ही दिखलाई दे जाते है यानि जिसे जन्म समय अंकुल दशा मिल गयी है सफलता उस के कदम चूमती है अगर जन्म समय दशा प्रतकूल है तू जीवन में उसे भयानक कष्टों का सामना करना होगा जिस का असर शारीर पर देखा जाता है 
एक समय एक हस्त रेखा के विद्यानका राजस्थान से देनिक निकलने बाले पेपर में सरीरक लक्ष्ण के बारे में एक लेख क्षपा था की जो जातक चलते समय अपना वाया पैर अधिक घिसते है वह अपने जीवन में पितकी रो अर्जित सम्पति भी गामा देते है |जो जातक चलते समय अपना दायापैर अधिक घिसते है वह दिनों दिन सपति एवं भोग सुख पाते है अर्थात सरीर के द्वरा भी जीवन के यश अपयश के बारे में गिनती करी जा सकती है इस मै कोई संदेह नहीं है 

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कोहू न काहू क़र सुख दुःख दाता |निज कृत कर्म भोग फल पाता||  
गरल सुधा रिपु करें  मिताई ,गोपद सिन्धु अनिल सितलाई .
गरुण सुमेर रैन सम  ताहि ,राम कृपा कर चितवें जाहि  ..
Pt.Shriniwas Sharma
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