दीपावली पर लक्ष्मी पूजन (विधि सूक्षम पञ्च उपचार )

दीपावली पर लक्ष्मी पूजन (विधि सूक्षम पञ्च उपचार )

प्रस्तावना :- धन की देवी लक्ष्मी का पूजन सभी कामनाओं को पूरण करनें वाला है। देवी लक्ष्मी जिस घर में वास करती है उनकी सम्पूरण कामनाएं पूरण होती हैं तथा परिवार में शांति रहती है इसमें कोई संदेह नहीं है। इसीलिए दीवाली के दिन धन की देवी लक्ष्मी का पूजन बड़ी धूम धाम से करते हैं। 
लक्ष्मी पूजन दीपावली पर  ही विशेष क्यों ?

वैसे शरद पूर्णिमा वर्ष में आनें वाले नवरात्रे महीनें के दोनों पक्षों की तिथी  अष्टमी अमावस्या और पूर्णिमा इन सभी तिथियों माँ भगवती लक्ष्मी की पूजा कर आशीर्वाद द्वारा सफलता प्राप्त की जा सकती है। इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन दीवाली के दिन ही लक्ष्मी पूजन विशेष फलदायी सिद्ध होता है इसके दो कारन हैं .
नम्बर -1 रामराज की स्थापना 
कहा जाता है की अत्याचारी रावन पर विजय प्राप्त करनें वाले जन जन के प्रिय भगवान् श्री राम का राज्य तिलक दीवाली वाले दिन ही हुआ था .जिस से भूलोक पर जन मानस में ख़ुशी की लहर थी। देवता भी अत्यंत प्रसन्न थे। गोस्वामी तुलसी दस जी के अनुसार भगवान् शिव देवराज इंद्र व नारद नें स्वयं पृथ्वी लोक में पधार कर राम दरबार में राम का गुण गान किया तथा उन्हें सहयोग देने का पूरा वचन दिया ऐसा भी माना  जाता है की धन की देवी लक्ष्मी रामराज्य के समय दिवाली की रात घर घर में भ्रमण कर लोगों के दुखों को दूर करती थी .लोगों नें धर्म स्थापना के शुभ अबसर पर घी के दीप जलाये  तथा शांति  सद भावना  के लिए  लक्ष्मी का  पूजन  किया  तभी से लोग इसे ज्ञान  का विजय  पर्व  मानकर इस  दिन को इसी रूप में मनाते हैं। 

नम्बर-2 लक्ष्मी का समुद्र से  प्रादभाव 
दीवाली के दिन ही समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी का अष्ट सखियों के साथ प्रादभाव  हुआ था। इन अष्ट सखियों का लक्ष्मी के साथ ही दीवाली की रात को पूजन होता है। जिनको अष्ट लक्ष्मी के नाम से जाना जाता है। जिन के नाम इस प्रकार हैं 
1. ॐ आध्य लक्ष्मी 
2. ॐ विद्यालक्ष्मी 
3.ॐ सौभाग्यलक्ष्मी 
4. ॐ अमृत्लक्ष्मी 
5.ॐ कमललक्ष्मी 
6. ॐ सत्य लक्ष्मी 
7. ॐ भोग लक्ष्मी 
8. ॐ योग लक्ष्मी

पूजन विधि:

शास्त्रों में पूजन की तीन विधियाँ कही गयी हैं।जिनको उपचार के नाम से जाना जाता है। जो इस प्रकार है।
1.षोडश  उपचार विधि :16 वस्तुओं से अर्राध्य की पूजा या अराधना करना।
2. पंच उपचार विधि : पांच वस्तुओं से पूजा करना 
3. यथा  लभ्दोउपचार विधि : साधक के पास जो भी सामग्री हो उस से पूजन करना है। 

अब मैं लक्ष्मी पूजन के पञ्च उपचार की चर्चा सूक्ष्म में कर रहा हूँ। जो इस प्रकार है। दीपावली की शुभ वेला में रात्री के समय साधक को भगवती की नूतन प्रतिमा उत्तर दिशा में गणेश और नारायण के साथ स्थापित करनी चाहिए।
स्थापना के समय यह ध्यान रहे की लक्ष्मी की स्थापना गणेश जी के दायें तरफ हो तथा उसके बाद नारायण की प्रतिमा स्थापित हो .यह सभी प्रतिमाएं 6 इंच से छोटी एवं 9 इंच से बड़ी न हों। यदि श्री यंत्र की स्थापना करनी हो तो यंत्र के ऊपर लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें एवं उत्तर पूर्व दिशा में कलश की स्थापना करें। पूजा में प्रथम आचमन आदि की क्रिया कर अपनें को शारीरिक एवं मानसिक रूप से शुद्ध करें .पूजा के लिए उचित आसन पर उत्तर की तरफ मुह कर के बैठ जायें .तत्पश्चात लाल फुल एवं अक्षत हाथ में ले कर भगवान् का ध्यान करते हुए ,लक्ष्मी-गणेश का आवाहन करें इसके बाद पूजा का संकल्प लें। 

संकल्प:


मैं( ..........) पिता का नाम (........... ) गोत्र (...........) सम्वत 2068-69 शाक 1933-34 कार्तिक मास क्रिशन पक्ष अमावस्या तिथी दिन मंगलवार विशाखा नक्षत्र सिद्धि योग स्थिर लगन में धनदायी लक्ष्मी का नारायण सहित पूजन का संकल्प लेता हूँ तथा गणेश पूजा का संकल्प भी करता हूँ।
इसके बाद गणेश लक्ष्मी का आवाहन करें तथा उन्हें अर्ध प्रदान करें .अर्ध के बाद पेर धोनें के लिए जल दे  फिर प्रतिमा पर आचमन के लिए जल दे ,इसके बाद बारी बारी से गणेश लक्ष्मी व नारायण को दूध से स्नान से तथा उस के बाद  दही  से  दही  के  बाद घी से  घी के शहद  से तथा  शहद  के बाद  सकरा  से  ॐ  श्री लक्ष्मी  नम ,ॐ चपलाये नाम ,ॐ चंचलाये नम आदि मंत्रो का  उचारण करता रहे ।
पंचाम्रत स्नान के बाद देवी भगवती को तथा  गणेश व नारायण को शुद्ध जल  गंगाजल  से स्नान कराये इस के बाद शुद्ध कपडे से प्रतमा ओ को साफ करे तत पश्च्यात मोली का  बना उप वस्त्र देवी नारायणी लक्ष्मी को  भेट करे एवं रोली अक्षत से तिलक करे एवं देवी  के अनेक  नमो  का  उचारण  करते  हुए अक्षत पुष्प एवंचंदन को मिलाकर  देवी की मानसी  सेवा  करे एवं देवी दूर्वा भेट करे ,दूर्वा के बाद इत्र ,सिदूर अक्षत बरी बरी  से भेट करे तथा ऋतुफल भेट करने  के बाद मिष्टान  भेट  करे ,एवं मिष्टान भेट  के  बाद गणेश लक्ष्मी तथा नारायण  को पुष्प हार भेट करे ।
देवी का अंग पूजन --इस के बाद लक्ष्मी का अंग पूजन करे तथा रोली  कुमकुम अक्षत मिलाकर लक्ष्मी देवी के अंगो  का पूजन  यथा वत करे -[1]-ॐ चपलाये नम [पैरो पर अक्षत पुष्प कुमकुम मिलाकर छोड़े }
[2]-ॐ चंचलाये नम [जागनी पूजन करे ]
[3]-ॐ कमलाये नम [कटी का पूजन करे ]
[4]ॐ कत्याये नम [नाभि का पूजन करे ]
[5]-ॐ जग मत रै नम [जठर का पूजन करे ]
[6]-ॐ विश्व वलभा ये नम [स्तनों का पूजन करे ]
[7]ॐ कमल वासिन्ये नम [हाथो का पूजन करे
[8]-ॐ पद्ध नाभाये नम [मुख का पूजन करे ]
[9]ॐ कमल पत्रा ये नम [नेत्र पूजन करे ]
[10]ॐ श्र्ये नम [शिर का पूजन  करे ]
[11]ॐ महा लक्षामिये नम [सर्वंगो पर रोली कुमकुम अक्षत का मिश्रण छोड़े ]
अष्ट सिद्धियों का पूजन -इस के बाद  अष्ट सिद्धियों का  पूजन कुमकुम अक्षत रोली लेकर आठो दिशायो में इस प्रकार करे -
[क]-ॐ अणि म्न नम [पूर्व दिशा ]
[ख ]ॐ महि म्ने नम [अग्नि कोण ]
[ग ]ॐ गरि मणे नम [दक्षिण ]
[घ ]ॐ लघिम्ने नम [नैरत्य दिशा  दक्षिण पशिम बाला कोण ]
[च ]ॐ प्रात्ये नम [पशिम दिशा ]
[छ ]ॐ ॐ प्रमम्ये नम [वव्य य दिशा ]
[ज ]ॐ इशी ताये नम [उत्तर दिशा ]
[झ ]ॐ वाशिताये नम [इशान कोण उतर पूर्व दिशा ]
इस के बाद अष्ट लक्ष्मी का पूजन नैवेध अदि  चदा क्र करे  तथा बरी  बरी  से  आठ  बार अक्षत अष्ट  गंम्ध  छोड़े  अष्ट लक्ष्मी  पूजन  के बाद देवी की चार प्रतीक्षा करे ,इस  के बाद देहली पर ॐ एवं शुभ  लाभ  लिख  कर उस का पूजन  करे  देहली पूजन के देवी सरस्वती का अवाहन  करे  तथा दावत कलम एवं  वाही का पूजन  करे  इस केबाद तिजौरी के अंदर  कूवर जी का अवाहन  करते अक्षत हल्दी कुमकुम पुष्प नैबेध से पूजन  करे ।इसके बाद तुला का पूजन करें।

क्षमा यचना - सभी पूजन  के बाद  साधक  को  माँ भगवती  से गलतियों  को क्षमा करने  तथा  नारायण के  साथ  स्थर रूप से घर में बसने की प्रार्थना करनी  चाहिए

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