आराध्य शक्ति महामाया दुर्गा

आराध्य शक्ति महामाया दुर्गा

नवरात्री नौ निधि प्राप्त करनें की योगीजन का एक विशेष पर्व है. इस पर्व पर महामाया देवी की उपासना का योगी योग को प्राप्त करते हैं तथा भोगीजन सांसारिक भोगों की कामना करते हैं इस सृष्टि में महामाया शक्ति के रूप में दो तरह के कार्य करती है 
१) संसार में भ्रम पैदा करना तथा आसक्ति में फ़साये रखना, दो अदृशय है जिसको जाना नहीं जा सकता 
२) सांसारिक जीवों का पालन करना तथा ज्ञान एवं भक्ति द्वारा शक्ति संचार कर उन्हें जागृत करना एवं सांसारिक बन्धनों से मुक्ति देना अर्थार्त जीव को सांसारिक बन्धनों में बांधे रखना तथा बन्धनों से मुक्त करना दोनों ही कारण महामाया शक्ति के हैं. 
गीता में भगवान् श्री कृषण नें अर्जुन को उपदेश करते हूए यह बात कही थी की संसार में मैं कुछ भी नहीं करता हूँ फिर भी तू मुझे सभी कार्यों का करता मान तथा किसी वास्तु का भोग न करते हूए भी मुझे सभी वस्तुओं का भोगता मान अर्थार्त में कुछ न करते हूए भी संसार के प्रत्येक कार्य को करता हूँ मेरी माया मेरे संकेत पर इस संसार के सभी कार्य पूरण करती है इसलिए तू अपना कर्तव्य मेरी इच्छा को स्रोधार्य कर मैं तुझे सफलता दूंगा .
भगवान् श्री कृषण नें जिस माया का ,शक्ति का वर्णन किया है व ही देवी है. जो अपर्तक्ष्य रूप से जनम पालन ज्ञान तथा संघार कार्य करती है .इस सृष्टि के तीन अराध्य देव: उत्पत्ति करनें वाले ब्रह्मा ,पालन करनें वाले विष्णु तथा संघार करने वाले शिव ,के अन्दर जो शक्ति काम करती है वो ही महा माया है .
दुर्गा सप्तशती : मार्कंडेय  पुराण के अनुसार संसार को भ्रमित और सम्मोहित करने वाली देवी को महाकाली कहा गया है जिसका स्वरुप योग्निन्द्रा भी कहा गया है ,जो पालन में सहयोग करती है उस शक्ति को लक्ष्मी का रूप कहा गया है संसार को ज्ञान देना अनैतिक भ्रांतियों को दूर करना तथा भ्रष्टाचार का अंत करने का जो कार्य इस सृष्टि में करती है उसी का नाम सरस्वती है इसी लिए सरस्वती के चरित्र जिसे उत्तम चरित्र कहा जता है का गान पठन पाठन सेवा एवं पूजन विशेष सुफल दाई माना गया है अतः साधकों को इसका पाठ नित्य प्रतिदिन करना चाहिए.
नवरात्री में जिन नौ देविओं की आराधना होती है उसमें प्रथम शैलपुत्री है ,माँ शैलपुत्री -प्रकृति की गोद से उत्पन्न महामाया है इनका यह स्वरुप इस बात का संकेत है की सम्पूरण प्रकृति का सञ्चालन मेरे द्वारा है और में प्रकृति के स्वरुप में हूँ ,दुसरे दिन दिन जिस देवी की उपासना होती है उस शक्ति का नाम ब्रह्मचारनी है. आचरण के कारण इनका रूप आलौकिक है ,पुराणों के अनुसार देवी की द्वारा भगवान् शिव की कठोर अराधना करनें के कारण इनका शारीर सूख गया था एस अभी कहा जाता है की इन्ही के नाम से भगवान् शिव की उत्पत्ति हुई देवी के हाथ में जप की माला तहत कमंडल है तीसरे दिन की आराध्य देवी को चंद्रघंटा कहा जाता है जो साधको को सिद्धि देने वाली है इनके आलौकिक दर्शन से साधक की सभी कामनाएं पूरण होती हैं इनके दरबार में शंख और घंटों की ध्वनि सुने देने के कारण देवी का नाम चंद्रघंटा है. असुर वृत्तियों का नाश करना देव वृत्तियों का विकास करना एवं अपने भक्त की कामनाओं को पुराण करना माँ का विशेष प्रयोजन है इनके मस्तक पर घंटे की आकृति का अर्ध चन्द्र है. चौथी शक्ति आराध्य देवी का नाम कुष्मांडा  है .देवी शिव दूती है जिसके कारण संसार में जीवों के तीनो प्रकार के दुःख ;
!) दैविक 
२) दैहिक
३) भौतिक
को दूर करनें में सक्षम है .कहा जाता  है जब सृष्टि नहीं थी,जब चरों ओर अँधेरा था कुष्मांडा देवी के द्वारा ही इस सृष्टि की रचना हुई .कमंडल,धनुष,कमल,अमृत कलश चक्र तथा गदा को देवी धारण करनें वाली है.मैं ही ब्रह्माण्डी यानि सृष्टि की रचना करने वाली हूँ.इस कारण देवी का नाम कुश्मुंडा  है . नवरात्री की पांचवें आराध्य देवी को स्कंदमाता कहते हैं .देवी के स्वरुप में संतान के प्रति ममता तथा माँ का स्नेह झलकता देखी देता है. इस सृष्टि में संतान उत्पन्न करनें की क्षमता माँ के अंदर है ,माँ का सही स्वरुप आराध्य देवी स्कंदमाता में दिखलाई देता है. पुरानों के अनुसार देवताओं के इस अहंकार को तद्नें के लिए की वो माँ का दायित्व निभा सकते है .देवी नें उन्हें धर्म संकट में ड़ाल दिया था  अतः देवता पञ्च माह का गर्भ धारण करनें के बाद धबरा गए थे और उन्होनें भगवान शिव की शरण ली. शिव जी से सहयोग न मिलनें पर देवी स्कंध्माता की आराधना करनें लगे .देवी की करुना पानें के बाद ही वह इस संकट से दूर हूए . तभी से देवी स्कंद्ध माता को  सम्पुरण सृष्टि की माँ कहा जाता है. 
नवरात्री की छठी आराध्य देवी कात्यानी है .ऋषि कत्यान के आश्रम में प्रकट होनें के कारण देवी का नाम कात्यानी पडा. कहा जाता है इस रूप में देवी नें पुत्र धरम को निभाया है फलस्वरूप देवी को अजन्मा माना गया है. ब्रज की गोपिओं नें तथा रामावतार में माँ जानकी नें राम को प्राप्त करनें के लिए गोपिओं नें क्रिशन को प्राप्त करने के लिए देवी कात्यानी की उपासना की. 
नवरात्री की सातवीं देवी माँ कलि है.देवी शिवदूती है एवं कालरात्रि के नाम से जानी जाती है. आराधकों को मृत्यु जैसे भय से गति प्रदान करनें वाली है तथा आध्यात्म व भक्ति प्रदान करने वाली है. देवी के सर के बाल बिखरे है नेत्र तीन हैं महासुर रक्तबीज का वद्ध करने के कारण देवी का दूसरानाम रक्तदंतिका भी है. 
आठवीं आराध्य देवी को दुर्गा कहते हैं जिनका नाम महा गौरी भी है जो पारवती जी का ही स्वरुप है. देवी नें भगवान् शिव को प्राप्त करनें हेतु हिमालय पर रह के कठोर तपकिया एवं भगवान् शिव को वर रूप में प्राप्त किया. देवसंकट के समय इसी रूप नें महिषासुर जैसे दानवों का वद्ध कर देवताओं को अनेक वरदान दे कर भय मुक्त किया. नवरात्रों की नवी  देवी सिद्धिदात्री है योगी जनों को सिद्धि देने वाली व भक्तों की सभी कामनाएं पूरी करनेवाली है. देवी का स्वरुप लक्ष्मी का है मार्कंदय पुराण के अनुसार भगवान् शिव को सभी सिद्धियाँ इन्हीं की कृपा से प्राप्त हुई .इस संसार में आठों सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी लक्ष्मी ही है. सिद्धिदात्री देवी नें अपनी माया के बल पर  मधु और कैटव जैसे दानव का वद्ध कराया आवश्यकता पड़ने पर पीड़ा में देवताओं नें जब भी मा को पुकारा आवश्यकता अनुसार अनेक रूप धारण कर असुरों का वद्ध कर देव कार्यों की सहायता की तथा सृष्टि के नैतिक मूल्यों की रक्षा की. एवं देवताओं को निर्भय रखनें के लिए अपनें वरदान के रूप में उन्हें अनेक अधिकार और शक्तियां प्रदान की अतः सिद्धात्री देवी सभी कामनाएं पूरण करनें वाली है. 
नवरात्री में प्रथम दिन देवी को घी से दुसरे दिन शक्कर से तीसरे दिन  फल से चौथे दिन मेवा पांचवें दिन दूध छठे दिन मधु सातवें दिन नारियल आठवें व नावें दिन हलवा भंडारे से अरोगना चाहिए.

Comments

Popular posts from this blog

विवाहिक बिलब को दूर करता है जानकी मंगल या पारवती मंगल का पाठ

दत्तक पुत्र

uch nivas nich kartuti