दीपावली पूजन

                           दीपावली पूजन 
ॐ महलक्ष्म्ये च विद्माही विष्णु पत्नी च धीमहि 
         तन्नो लक्ष्मी प्र चोदयात ||
दीपावली को ज्ञान ,सुख ,समृद्धि का पर्व माना गया है|वैसे तो विजयादशमी ,राम नवमी ,वसंत पंचमी और दीपावली किसी काम को शुरू करनें के अभिजत महूरत माने गाये हैं ज्योतिष अनुसार इस दिन शुरू किया गया काम सुख कारी एवं सफल होता है तथा निर्विघन पूरण होता है| दिवाली के दिन से राम राज्य की अखंडता का ज्योतिष ये ही कारण मानती है |
वैसे  दिवाली पर्व के पीछे अनेक पौराणिक कथाओं तथा मान्यताओं का प्रश्न है रामराज्य की कथा के साथ साथ लक्ष्मी का जन्म भगवन श्री कृषण द्वारा भामसुर का वध ,कर पृथ्वी का भार उतारनाके साथ साथ अनेक पौराणिक कथा हैं जो इस पर्व से जुडी हुई हैं |
कहा जाता है की धन वा गुणों की देवी लक्ष्मी  का जन्म दिवाली के दिन ही समुद्र मंथन के समय हुआ था. जो नारायणी स्वरुप में जन कल्याण हेतु मानी गयी हैं ल

लक्ष्मी की  बडी बहन कुलक्ष्मी का जन्म : कहा जाता है की समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी की बडी बहन कुलक्ष्मी का जन्म लक्ष्मी से पहले हुआ शास्त्र अनुसार कुलक्ष्मी को १४ स्थान समाज में निर्धारित किये हैं जिसमें जुआ ,मदिरा, पर स्त्री गमन.झूठ ,पाखण्ड ,देशद्रोह, बेईमानी, मुख्य हैं कुछ लोग धन को ही लक्ष्मी का रूप मानते हैं जब की ऐसा नहीं है ,लक्ष्मी गुण और संस्कार की देवी हैं तथा भगवन विष्णु की पत्नी हैं जो जगत के पालनहार तो हैं लेकिन शांति प्रिये हैं. इसी लिए धन लक्ष्मी का  एक स्वरुप हो सकता है लेकिन धन ही लक्ष्मी नहीं है. अर्थात लक्ष्मी उन घरों में चिर काल तक निर्वास करती है जहाँ संकार नैतिक मर्यादा इश्वर भक्ति ,देश प्रेम तथा परोपकार की भावना है. 
लक्ष्मी वर्णन की कथा : कहा जाता है समुद्र मंथन के समय जिस समय लक्ष्मी जी का जन्म हुआ वो अपनी सखियों के साथ थी तथा लक्ष्मी को प्राप्त करनें हेतु इंद्र आदि मुख्य देवता वा कपिल मुनि  जैसे योगी पुरुष भी इस आशय से एकत्रित हुए थे की लक्ष्मी हमारा वर्ण कर ले और हम लक्ष्मी पति कहलाएं| इन में भगवान् शिव ,प्रजापति ब्रह्मा तथा पालनहार विष्णु भी उपस्थित थे जो लक्ष्मी की ओर लक्ष्मी की ओर निहार रहे थे एवं लक्ष्मी सखियों के साथ निरक्षण कर रही थी .निरक्षण करती हुई लक्ष्मी नें देवराज इंद्र तथा योगिराज कपिल वा प्रजापति ब्रह्मा को भी अपनें योग्य उपयुक्त नहीं पाया तब सखियों नें भगवन की शिव की महिमा वा गुणों के बारे में बतलाया जिसे सुन क़र लक्ष्मी नें कहा की इनके चरित्र में सभी बातें ठीक है लेकिन इनके अंदर होने वाला क्रोध जिस के कारण संसार का संघार करते  हैं  को लेकर में नहीं रह सकती हूँ मुझे शांति चाहिए अतः मुझे अन्यत्र कहीं ले चलिए तब सखियों नें उन्हें भगवान् विष्णु का वर्णन किया और बताया की ये शांति प्रिये हैं तथा सदेव शांत रहते हैं सुनते ही लक्ष्मी नें अपनी वरमाला भगवान् विष्णु के गले में पहना दी .फलस्वरूप भगवान् विष्णु लाक्स्मिपति कहलाये .कहनें का तात्पर्य ये हैं लक्ष्मी उन्हीं घरों में चिर काल के लिए निवास करती है जहाँ शांति, मर्यादा तथा सांस्कारिक बल है.
यह लोगों की भूल है की धन को ही लक्ष्मी का स्वरुप समझ लेते हैं.  
लक्ष्मी के विभिन्न स्वरुप :
शास्त्रोनुसार लक्ष्मी सृष्टि के पालनहार भगवान् विष्णु की पत्नी है जिस की उत्पत्ति समुद्र से हुई अर्थात प्रत्येक जीव की माँ है जो ममतामयी है ,हेर माँ का ध्यय होता है की उसकी संतान समृद्धि और परिश्रम के बल पर लोक और परलोक में नाम रोशन करे. जब कोई संतान अपनी माँ के बताये हुए आदर्श पर नहीं चलती तो माँ को बड़ा दुःख होता है अर्थात दीपावली पर्व पे जुआ खेलना,मदिरा सेवन एवं अन्य क्रिया कलाप जिसका ज्ञान से सम्बन्ध नहीं है वर्जित हैं जिसके करनें से ममतामयी लक्ष्मी की ममता को ठेस पहुँचती है कमल पे विराजमान नारायणी लक्ष्मी के अनेक स्वरुप हैं जो सुख और समृद्धि तथा राष्ट्रीय गौरव को बढानें वाले हैं भगवान् विष्णु की पत्नी ईश्वरीय रूप में सब का पालन करनें वाली है जिसके स्वरुप इस प्रकार हैं.
अश्वदायी : घोड़े आदि का सुख देने वाली.
गोदायी: गायें आदि से दूध का सुख देने वाली
धन दाई और महाधन दा : धन का सुख देने वाली और सभी प्रकार का सुख देने वाली
पुत्र का सुख देने वाली
हाथी-वाहन आदि का सुख देने वाली
आयु तथा निरोगता सुख देने वाली
वायु धन और सूर्य धन को देने वाली
तथा सोमरस (अमृत) प्रदान करनें वाली
ऋण रोग तथा संतापों का नाश करनें वाली
आनंदायी : सभी प्रकार के आनंद देने वाली
संख्य और योगों का सुख देनेवाली|
गणेश लक्ष्मी का पूजन क्यूँ  ?
वैसे तो प्रतेक सनातानिये पूजा में ज्ञान के देवता गणेश जी का पूजन सभापति के रूप में सबसे पहले होता है . किसी काम को पूरा करनें के लिए विवेक और धन दोनों की आवश्यकता होती है दिवाली किसी काम को शुभारम्भ  करनें का सबसे श्रेष्ठ महूरत माना गया है इसीलिए दिवालिवाले दिन कार्य की निर्विघंता तथा सम्पन्नता के लिए गणेश लक्ष्मी का पूजन किया जाता है पूजा के समय लक्ष्मी जी को गणेश जी के दायनी तरफ रखना चाहिए उसके बाद पूजन करना चाहिए .कलश,शिव और पालन हार विष्णु  के पूजन परम आवश्यक हैं दिवाली पर लक्ष्मी का पूजन दो रूप में होता है गणेश जी के साथ में सिद्धि देनेवाली तथा भगवान् विष्णु के साथ में धन देने वाली.इसके बाद नियम अनुसार देहली पूजन ,तुला पूजन झारू और तिजोरी पूजन,कुबेर पूजन   तथा रोकर पूजन ,जो लक्ष्मी के स्वरुप माने गाये हैं परम आवश्यक हैं पूजन के बाद कन्याओं को दक्षिणा देना तथा महिलाओं से अच्छे वयवहार कार्य सफलता के लिए आवश्यक हैं. 

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