पूर्व जन्म सिद्धांत ऋणआध बंधन (श्राप)

पूर्व जन्म  सिद्धांत ऋणआध बंधन  (श्राप) 
मानव को अपनें जीवन के दुःख एवं दर्द को जाननें एवं उसके निवारण हेतु उपाय करनें के सदैव चेष्टा रहती है. ज्योतिषीय मान्यता अनुसार प्रत्येक जीव को अपनें पूर्व जन्म में किये कर्मों के फल भोगनें पड़ते हैं जिसके परिणाम स्वरुप वो सुख-दुःख की अनुभूति करता है. साधारण तय  लोग समाज में पूर्व जन्म के ऋण  संताप की कहानी कहते सुनते देखे जाते हैं अर्थात भारतीय वैदिक सिद्धांत तथा दर्शन दोनों ही इस बात पर बल देते हैं के पूर्व जन्म में किये कर्म के द्वारा ही वर्तमान जीवन में सुख-दुःख उत्त्पन्न होते हैं
ज्योतिष की मान्यता के अनुसार कुंडली का पंचम घर तथा पंचमेश पूर्व जन्म के अच्छे वा बुरे कर्म एवं उनके परिणाम की ओंर संकेत करता है अगर पंचम घर पर शुभ प्रभाव है तथा पंचमेश भी शुभ प्रभाव में है तो पूर्व जन्म के अच्छे कर्म एवं उनके प्रभाव के कारण जिन्हें वरदान कहा गया है अनायास ही जीवन में सफलता मिलती है.अगर पंचमेश और पंचम घर पर अशुभ प्रभाव है तो जीवन को श्रापित समझना चाहिए जिसके कारण कर्म फल अनुकूल नहीं मिलता है एवं अनेक परेशानी झेलनी पड़ती है.
ज्योतिषीय सिद्धांत के अनुसार जीवन को सुखी बनाने के आधार माता-पिता ,भाई-बहन ,पत्नी, मामा एवं अन्य पूर्वज,इश्वर तथा ब्रह्मण को माना गया है.वैसे तो हमें अपनें कर्म के द्वारा किसी को दुःख-दर्द नहीं देना चाहिए लेकिन वर्णित अवस्था वाले सभी सम्बन्धियों द्वारा जीवन में दुःख और सुख के संकेत खुले रूप से कुंडली में देखे जा सकते हैं अर्थात इन में से कोई हमारी भावना और कर्म के द्वारा बाधित है तो जीवन श्रापित होगा अगर इन में से कोई हमारे कर्म के सहयोग से सुखी रहा है तो हमारा जीवन आनंदमय होगा और इनका वरदान सफलता का आधार बनेगा.
कुंडली में विभिन्न ग्रहों के द्वारा पंचम और पंचमेश के साथ उत्पन्न स्थिति से श्राप की गणना निम्न नियमानुसार करते हैं :-
१) पिता का श्राप : पंचम स्थान में सूर्य शनि के अंश में हो और अपनी नीच राशी में हो तथा पंचमेश पाप प्रभाव में हो तो पिता वा राजा के श्राप के कारण जीवन को कास्ट होता है.
२) माता का श्राप: अगर  कुंडली में चद्रमा नीच राशी में पाप ग्रह से युक्त हो तथा एकादश भाव में शनि हो एवं चौथे भाव में पाप प्रभाव हो तथा च्तुर्तेश पीड़ित हो तो माता के श्राप के कारण जीवन में परेशानी वा अडचनें होती हैं .
३) भाई या बहन का साथ : अगर मंगल राहू और शनि के साथ तीसरे स्थान में हो या पंचम स्थान में राहू हो और भ्रत्रिकारक ग्रह लगन से अष्टम स्थान में हो तो बहन -भाई के श्राप के कारण जीवन प्रभावित होता है.
४)मातुलय मामा का श्राप: कुंडली के पंचम भाव में बुद्ध और गुरु ,मंगल और राहू (चारों) ग्रह हों वा लगन में शनि  हो . दूसरी स्थिति ये है लगनेश वा  पंचमेश  शनि बुद्ध के साथ हों तो मामा के श्राप से जीवन में पीड़ा होती है.
५) गोब्राह्मण वा इश्वार तथा गुरु का श्राप: अगर कुंडली में गुरुर की राशी ९-१२ होती है,९-१२ में राहू हो और गुरु धर्मेश शनि के साथ अष्टम भाव में हो तो स्थिति बनती है.दूसरी स्थिति: धर्मेश पंचम में हो तथा पंचमेश धरम्स्थान में हो लेकिन गुरु मंगल और राहू के साथ आठवें भाव में हो,२२वेइन द्रेश्कोने में हो तो भ्रह्मन,गुरु,इश्वर एवं गो के श्राप से जीवन श्रापित होताहै.
६) पत्नी का श्राप: कुंडली में पंचमेश पंचम भाव में लेकिन सप्तमेश के नवांश के साथ हो एवं उस नांश का स्वामी शनि हो .दूसरी स्थिति सप्तमेश अष्टम भाव में हो और व्ययेश पंचम भाव में हो तथास्त्री का कारक ग्रह शुक्र पीड़ित या पाप प्रभाव में हो तो पत्नी के श्राप सेपरेशानी होती है.
अगर इन सभी परिस्थितियों में गुरु पीड़ित वा पाप प्रभाव में हो तो पति के श्राप के कारण पत्नी को परेशानी होती है.
७) पितरों का श्राप : अगर्पंचम भाव में शनिऔर सूर्य हो तह सप्तम भाव में क्षीण चर्म हो एवं लगन से १२वेइन भाव में राहू और गुरु हों तो पितरों इ श्राप के कारण परेशानी होती है.
पंचमेश शनि आठवें बव में हो तथा संतान का कारक ग्रह भी आठवें  घर में हो तो जीवन में पितरों के ऋण वा श्राप के कारण संतान वा जीवन की अन्य परेशानी होती है.
उपाय :-
यद्यपि जीवन संतुलन बनानें केलिए ज्योतिष अनुसार यह आवश्यक है की हम अपनें कर्मों के द्वारा किसी को कष्ट ना दें अन्यथा समय आनें पर हमें ही भोगना पड़ेगा . लेकिन श्रापित कुंडली में शास्त्र अनुसार निम्न उपाय करें से जीवन में सुगमता होती है.
पिता का श्राप:पिता की सेवा ,विष्णुशास्त्र नाम का पाठ सूर्य की उपासना तथा आदित्य हृदय्स्त्रोत्र का पाठ
माता का श्राप: माता की सेवा, गायत्री देवी की उपासना तथा गायत्री मन्त्र ला सवा लाख जाप वा कन्याओं की सेवा
बहन-भाई का श्राप:भगवान् वराह का स्त्रोत्र गायन तथा परशुराम च्तित्र का पठान पाठन एवं भगवान् शिव की उपासना ,भाई-बहन का सम्मान .
मामा का श्राप: मामा का सम्मान गणेश की उपासना एवं विष्णुशास्त्र नाम का पाठ
गोब्राह्मण तथा घुरू का श्राप : गो की सेवा, धरम स्थानों का रखरखाव ,विष्णुशास्त्र का पाठ,भगवत पुराण का पठान पाठन एवं पिता वा ब्रह्मण की सेवा.
पत्नी का श्राप: गायत्री देवी की उपासना कन्याओं का पूजन चंडी का पाठ तथा नवरात्री वरत
पितरों का श्राप: गया/कुरुक्षेत्र पिंड दान पितृ पक्ष का श्राद्ध ,अमावस्या को ब्रह्मण भोजन एवं गोदान करें.

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