भीष्म पंचक व्रत का महत्व


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कल दिनाक ०१-११-२०१७  दिन बुधवार तुलसी विवहा का महत्व है एवं आज दिनाक ३१-१०-२०१७ दिन मंगलवार  को देव उठावनी एकादशी है |इस दिन से कार्तिक मास की पूर्णमा भीष्म पंचक व्रत के नाम से जाने जाते है |एकादशी से  पूर्णमा  इन पाच दिनों का विशेष महत्व है |
कार्तिक पूरण के अनुसार एकादशी को मंदिर में दीप दान करने एवं गौमूत्र का सेवन  करना एवं रात्रि को कीर्तन  करने का विशेष महत्व है  इस दिन व्रत एवं  जागरण के प्रभाव से  पांडव श्रोमानी  अर्जुन का जन्म  हुआ | जिस से द्व्द्शी को गो के गौवर से शुद्धि कर के  कीर्तन किया वह  भीम बना एवं द्रोद्शी एवं चतुर्दशी को अमले के नीचे भोजन  करने एवं व्रत  करने के प्रभाव से  नकूल एवं सहदेव की उत्पन्न हुआ | जिस ने कार्तिक पूर्णमा को भगवान का व्रत पूजन व्रत एवं पीपल के व्रक्ष एवं मंदिर में ध्वज रोहन किया  वह धर्मराज युधिष्टर हुए एवं  इन पांचो के साथ  जिस महिला ने प्रथक प्रथक  नाच एवं कीर्तन किया  वह द्रोपती हुई| यह कथा जब भगवान श्री क्रष्ण शांति दूत बनकर  हस्थ्नापुर गए तब उनका रुकना  पितामहा के साथ हुआ एवं पितामहा ने वासुदेव श्री क्रष्ण से पांडवो का शांति दूत बनकर आने एवं पांड्वो के बस में होने का कारण पूछा | इस पर सारा वर्तन्त  जो में सूक्ष्म में कान्हा है बतलाया जिस के प्रभाव से पांडवो की उत्पति एवं भगवान श्री क्रष्ण की शरणागती हुई|  इस वर्तन्त को सुन ने के बाद  पितामहा भीष्म ने भी इस व्रत को किया  जिस से भगवान वासुदेव की उन पर क्रपा हुई एवं अत समय उन्हें के चतुभुजा काररूप के दर्शन हुए  तभी से इस व्रत का नाम भीष्म पंचक व्रत पड़ा | इन ०५ दिनों को पञ्च एकादशी के नाम से भी जानते है  एवं वैष्णो साधक  व्रत कर एवं भगवान कर्षण की भक्ति कर अपने जीवन उद्धार की कामना करते है |     ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 
        पंडित श्रीनिवास शर्मा 
     वैदिक अस्त्रोलोजर एवं वास्तु सलहाकार 

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मंगल भवन  अमंगल  हारी, द्र्वयु सो  दशरथ  अजर बिहारी |
दीन दयाल  विरद  सम भारी,   हरयो  नाथ  मम शंकट भारी .||.
Pt.Shriniwas Sharma
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