हिन्दू ओ का सोलहवा संस्कार म्रत्यु पर अपव्य





हिन्दू में मरत्यु अपरांत पनपने बाली अनेक कुरीतियाँ हिन्दुओ के सोलह संस्कारओ में एक म्रत्यु कर्म संस्कार भी है जो जन्मसंस्कारसेकईगुना पुन्य कारी माना जातारहाहै| गरुण पुराण केअनुसार जो पुत्र अपनेमातापिता के म्रत्युकेबाद उन को यम के त्राश से छुड़ाता सही मायनेमें वाही पुत्र कहलानेकाअधिकारी है| इस साथ साथअगर हमएकबात परऔरगंभीरतासेबीचार करे जनेऊसंस्कार केसमयव्यक्ति को तीनप्रकार के ऋणों से प्रभाबीतकियाजाता है इसमें सबसे अन्तं ऋण माता पिताका है अत म्रत्यु केसमय सहीमायनेमें पुत्रधर्मकीपरीक्षा शुरू हो जाती है | लेकिन इससमयसमाज में फैली कुरीतियों केचलते पुत्रधर्म कानिरंतर पतन हो रहाहै



















>

समाज में फेली कुरीतिया जिनका शास्त्र गत कोई परिणाम नहीं है  जीवन पर दिन प्रति दिन बोझ बनती जा रही है |इतना ही इन कुर्तियो के चलते शास्त्रों के निर्देशन पर जो कर्म होने चाहिए वह नहीं हो पाते है और लोग बिना सोचे समझे उन परम परायो को अपनाने में जौर देते है  जिनका कोई महत्व नहीं है  जिस से मानब अपने सही कर्तव्य से भटक जाता है और समाज में बदनामी के भय से वह सभी करता है  जिसे वह करना नहीं चाहता है एवं करना भी नहीं चाहिए |
मै यह सभी बाते इस लिए स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मेरी माँ जो ०१-०५-२०१६ को ब्रेन हेमरेज से पीड़ित हूई एवं ०८ --०५-२०१६  उन्होंने रात्रि १२.२८ पर अंतिम शास ली  एक सप्ताह उनका मेडिकल में उनका इलाज चलता रहा  मेरा पूरा परिवार शोक में रहा क्योकि जीवन में माँ की महत्वपूरण भूमिका होती है | वह माँ होती है की उसकी किसी भी संतान को कोई परेशानी हो  उस का दिल रोने लगता है |वह माँ होती है जो स्वयम गीले में सोती है लेकिन बच्चे को शुखे में सुलाती है | वह माँ होती है  जो स्वयम भूखी रहती है  लेकिन अपनी संतान को खिलाती है |जब किसी संतान को कोई चोट लगती है  उस का दर्द सीधा माँ को होता है |
इस संसार में पिता केवल एकवार रोता है  जब अपनी बेटी की डोली बिदा करता है  लेकिन माँ अपनी संतान की हर एक पीड़ा पर अश्रु बहती है |इस संसार  कोई जीव जब कष्ट में होता है तो उस के मुख से एक ही शव्द निकलता है  माँ  एवं उस के साथ ही चीखना शुरू करदेता है  माँ  माँ तो हे ही  बच्चे की प्रथम गुरु भी है  जो सभी बुराई से बचा कर अपने  बच्चे के जीवन में आदर्श स्थापित करती  है | अब आप बिचार कर सकते हो माँ के जाने पर किसी संतान को कितना दुःख होता है | एसे में उस संतान  जो अपने माता के शोक में माँ की अंतम शांति हेतु सभी कार्य  न कर समाज वह सभी कार्य जिनके करने से न उसका हित होना  नहीं दिबंगत आत्मायो को शांति मिलनी है  जिस के लिए हमारे शास्त्र निर्देशन देते है  समाज के भय लोक  लाज  के कारन सामाजिक बुराई से बचने के लिए करता है | जिस के कारन वह सभी कार्य जो उसे करने चाहिए  जिन के लिए शास्त्रों का निर्देशन है  रह जाते है |आज समाज में इतना मिथ्याचार है  है स्वतिक कर्मो को कोई जानना तक नहीं चाहता है  एवं मिथ्याचार आडंबर ओ का डंका खूब बजता है |

माँ की म्रत्यु के बाद कुछ एसी परम्परा मेरे सामने आई  जिन्हें मै पंडित होने के बाद भी नहीं जनता हूँ तथा गरुण पूरण या गीता जैसे पावन ग्रथ में जिनका कोई नहीं है  अब प्रश्न यह भी उठता है कि इन परम परायो को क्या नाम दिया जाये  एवं किस ग्रन्थ में कैसे जाना जाये | मेने जब इन प्रम्परयो के बारे में जानना चाहा  तो मुझे केवल एक ही उत्तर मिला  हम लोग तो एसे ही करते आये है आप की कोई नई परम्परा है आप जानो   जिन लोगो से हम बात कर रहे थे  उनमे एक पंडित जी थे जो गावं में रह कर कर्म कांड करते थे  उन्होंने मुझे उत्तर दिया की यह प्रथा मुरिया पूरण की है | वैसे १८ पुराणों में जंहा तक मेरा विचार है  मुरिया पुराण के नाम से कोई पूरण है लगता नहीं  न मेरी जानकारी में है  लेकिन एसे अपवाद जिनका वैदिक मूल्यांकन उनको आज भी खूब  परम्पराओ के नाम पर निभ्या जाता है  जबकि हम रोज शिक्षित समाज  एवं बदले हूए समाज की बात करते है | इन परम्पराओ के साथ  इन महत्वहीन परम्पराओ पर होने बाले खर्चो की बात करे  तो ग्रामीण स्थर के ८० प्रतिशित लोग  जिनकी आर्थिक स्थति कमजोर है  उच्च ब्याज दर पर कर्जा लेकर  इन परम्पराओ को ढोते है  तथा लम्बे समय तक साहुकारो का गाडी कमाई का भुगतान करते रहते है | वैसे ग्रामो की हालत यह बुनयादी सुवधयो के लिए भी लोग रोते नजर आते है एवं सरकारों की दया के भरोशे  जीवित रहते है |अगर राज् नेतायो की बात करे तो वह  वर्षाती मेढ़क की तरह  उस समय तो टर्र टर्र करते नजर आते जब वर्ष चुनाबी हो |लेकिन फिर भी जन समस्या जैसी की तेसी बनी रहती है |एसे में अगर परम्पराओ पर व्यय होने बाला धन काश ग्राम के किसी विकाश कार्य पर लगया गया होता तो कुछ तो विकाश होता | महगे म्रत्यु भोजो में लोग खाना खाकर चलेजाते है तथा दो दिन बाद मजा कर्किरा हो जाता है अगर यह धन विकाश कार्य में लगाया जाये तो पीढ़ी दर पीढ़ी आने बाले लोग आप के धन एवं धर्म दोनों को यद् रख सकते है |लेकिन आज की २१ बी शादी में भी इनके बारे में कोई नहीं सोचता है   न सोचा है |अगर कोई विरला व्यक्ति इस पर कार्य करना चाहे तो  धर्म के ठेकेदार वहुबली  एसा कुछ करने से भरपूर प्रयास कर रोकते है | ग्रामीण स्थर पर यह समस्या पहले भी थी आज भी है|









-- 
कोहू न काहू क़र सुख दुःख दाता |निज कृत कर्म भोग फल पाता||  
गरल सुधा रिपु करें  मिताई ,गोपद सिन्धु अनिल सितलाई .
गरुण सुमेर रैन सम  ताहि ,राम कृपा कर चितवें जाहि  ..
Pt.Shriniwas Sharma
Mo:9811352415                                                    
http://vedicastrologyandvaastu.blogspot.com/
www.aryanastrology.com
Professional charges :Rs1100/Patri,...Prashan  Rs 500
Central bank a/c: SB no: CBIN0280314/3066728613







Comments

Popular posts from this blog

विवाहिक बिलब को दूर करता है जानकी मंगल या पारवती मंगल का पाठ

दत्तक पुत्र

uch nivas nich kartuti