प्रसव का महूर्त :एक मिथ्यापूर्ण विचार 
आधुनिक समय में प्रसव के समय (जिस समय बच्चा पैदा होता है ) का ज्योतिषय आंकलन का प्रचलन बड़े पैमाने पर है | लोगों का ऐसा मानना है की शुभ महूर्त में कराय गाये माध्यम से उत्त्पन्न होने वाला बच्चा गुण वां तथा होन हार होता है |फलस्वरूप गर्भवती महिलाएं नूतन बच्चे को जन्म देने हेतु ज्योतिषय माध्यम से शुभ महूर्त का निर्धारण करा ओपरेशन के माध्यम से गर्भ की अवधि से पूर्व ही प्रसव करवा लेती हैं जिस से नवजात शिशु के शरीर पर प्रतिकूल असर पड़ता है तथा आँख वा कान कमजोर होने की पूर्ण सम्भावना होती है दूसरी ओंर प्रसव क्रिया में जबरदस्ती करनें के कारण गर्भवती महिला को भी मृत्युतुल्य कष्ट या अन्य अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
ज्योतिष में प्रसव करने का कोई महूर्त नहीं होता है .प्रसव क्रिया गर्भाधान की प्रक्रिया पर स्वतंत्र निर्भर है अतः गर्भाधान के काफी महूर्त हमारे ज्योतिषशास्त्र में ज्योतिषविदों द्वारा कहे गए हैं ,अगर किसी महिला का गर्भाधान शुभ महूर्त में होता है तो प्रसव स्वयं ही शुभ महूर्त में होगा उसके लिए किसी भी प्रक्रिया की ज़रूरत नहीं है. अगर गर्भाधान अशुभ महूर्त या अशुभ काल का है तो प्रसव भी अशुभ समय में ही होगा वा पीड़ा दाई होगा. अतः अच्छी संतान चाहनें वाले जातकों को प्रसव महूर्त की बजाये गर्भाधान महूर्त का चिंतन करना चाहिए इसका प्रमाण भगवत महापुराण में हरनाक्ष की कथा से मिलता है.
कश्यप मुनि वा दिति के गर्भ से उत्त्पन्न ये दैत्य अपनी माँ के गर्भ में १३ महीनें रहा भागवत के अनुसार इसका गर्भधान संध्या काल जिसे भगवान् शिव का समय कहा जाता है तथा ऋषि मुनि भगवान् शिव की उपासना करते हैं .दिति की  कामुक आतुरता के कारण हुआ . जो एक भावीवश घटना थी .उसके गर्भवती हो जाने के कुछ समय बाद कश्यप मुनि जी नें यह घोषणा की की  गर्भ में पालनें वाला बच्चा भयानक दैत्य होगा वा धरती एवं देव लोक दोनों के लिए भारी होगा .इस बच्चे का गर्भाधान संध्या के समय भगवान् शिव के काल में होने के कारण यह नॉन महीनें से अधिक गर्भ में रहेगा वा प्रसव के समय धरती पर अनेक प्रकार के शोक उत्त्पन्न करेगा .फलस्वरूप उत्त्पन्न होने वाला हरनाक्ष शरीर से इतना विशाल था की उसके चलनें पर धरती हिलती थी तथा दहारने एवं हँसनें पर भू और आकाश लोक सभी कांप जाते थे यह अशुभ महूर्त में गर्भाधान होने के कारण था.
अतः ज्योतिष शास्त्र में सुंदर संतान हेतु अनेक व्रत एवं पूजन का विधान कहा गया है इसके साथ साथ गर्भाधान की ऋतू ,महीना ,पहर,तिथि,नक्षत्र,योग आदि सभी का विवेचन है जिस पर चल क़र सुंदर गुणवान संतान की प्राप्ति तो होगी ही साथ ही साथ प्रसव क्रिया साधारण और सरल होगी.    

Comments

Popular posts from this blog

विवाहिक बिलब को दूर करता है जानकी मंगल या पारवती मंगल का पाठ

दत्तक पुत्र

uch nivas nich kartuti