शुभकामनाएं सहयोग वा आशीर्वाद

शुभकामनाएं सहयोग वा आशीर्वा
मनुष्य जीवन में परोपकार की भावनाएं उअके जीवन की सफलता के आधार को सरल और सहज बनाती हैं .अगर मानव अपना कर्तव्य समझ क़र किसी कमजोर ,असहाय और वृद्ध व्यक्ति की सेवा वा सहयोग करता है तो उसके बदले में उसे मिलनें वाले आशिर वचन भविष्य में सफलता की सीडी बन जाते हैं इस लिए भारतीय दर्शन नें परोपकार को सबसे बड़ा धर्म कहा है तथा दूसरों को पीड़ा या कष्ट देने को सबसे बड़ा अन्याय माना है .
ज्योतिष शास्त्र में भी कुंडली के पंचम घर से पूर्व जन्म का लेखा जोखा प्रकट होता है जो नावें घर से सम्बंधित दशा आनें पर मनुष्य को भोगना पड़ता है अर्थात कुंडली का पंचम घर पर अगर शुभ प्रभाव है तो पूर्व में किये हुए कर्मों के आशिर वचन या वरदान के कारण मनुष्य को जीवन में सफलता मिलती है अगर पंचम घर पर अशुभ और पाप प्रभाव है तो पूर्व में किये हुए कर्म का सम्बन्ध किसी को कष्ट पीड़ा (श्राप ) होनें के कारण जीवन में अड़चन आती हैं तथा असफलता मिलती है.
अगर गहनता के साथ किसी कुंडली का अध्यन्न गम्भीरता के साथ किया जाये और देखा जाये की उसका नवांश का सम्बन्ध पंचम और पंचमेश से है तो वर्तमान जीवन की साड़ी सफलता और असफलता पूर्व जन्म में किये हुए पाप और पुन्य पर निर्भर करती है. ऐसी स्तिथि में अगर जातक की कुंडली के पंचम घर पर ग्रहों का शुभ प्रभाव  है  तो वर्तमान जीवन की सभी सफलताएं पूर्व पुन्य कर्मों के कारण आसानी से मिल जाती हैं इसलिए मनुष्य को ये नहीं मानना चाहिए की उसके द्वारा किया गया कोई कर्म निरर्थक है या उसका परिणाम नहीं है समय अनुसार जिनका आंकलन दशाओं के माध्यम से किया जाता है सभी शुभ और अशुभ कर्मों का फल मानव को भोगना पड़ता है .इसी लिए जातक को कर्म करनें से पूर्व उसके परिणाम के बारे में सोचना वा चिंतन करना चाहिए ,क्यूँ की शुभ कर्मों के फल शुभ वा अशुभ कर्मों के फल अशुभ होते हैं 
ग्रहों के माध्यम से वरदान और सहयाग का आंकलन 
कुंडली के पंचम घर से जातक के पूर्व जन्म के शुभ और अशुभ कर्मों का आंकलन होता है.अगर पंचम घर में ग्रह शुभ प्रभाव में हैं तो वरदान के कारण जीवन में सफलता मिलती है जिसका सम्बन्ध इस प्रकार है :
पंचम घर शुभ प्रभाव :-
सूर्य : पिता की सेवा या राष्ट्रिय धर्म के आचरण के कारण 
चन्द्र: माँ के आशिर वचन से या किसी पीड़ित महिला की सेवा से 
मंगल: भाई के सहयाग के कारण 
बुध : मामा के सहयोग से, किसी लेखक या कवि  की सेवा से      
गुरु : इश्वर की भक्ति ,धर्म का आचरण ,पंडित  वर्ग तथा गुरु की सेवा तथा गो सेवा एवं नैतिक मूल्यों के रक्षण के कारण 
शुक्र : पीड़ित महिला वर्ग के सहयोग ,पत्नी के सहयाग या प्रसन्नता के कारण लक्ष्मी वा गायत्री उपासना के कारण
शनि: दरिद्र, कोडी तथा मलेछ लोगों की सेवा के कारण 
राहू : पितरों की प्रसन्नता और सेवा के कारण 
केतु : प्रेत पिशाच  की सहयोग सेवा      
अगर किसी साधक की कुंडली का नवांश कुंडली के ६,८,१२ के भाव से बनता है तो उसका सम्बन्ध भी पूर्व जनम के पाप कर्मों के कारण होता है इस से जातक को कठिनाई से सफलता मिलती है लेकिन यदि नवां घर जातक का शुभ प्रभाव आयर शुभ नवांश में है तो अपनें ही कर्मों से तथा ईश्वरीय आशीर्वाद के कारण एक समय के बाद जीवन फलीभूत होता है .     

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