बल्रिष्ट तथा उसके परिणाम

 बल्रिष्ट तथा उसके परिणाम 
ज्योतिष में बलारिष्ट यानि बच्चे के जन्म से मता-पिता को होने वाली परेशानी को दर्शाता है. अर्थार्त पूर्व जन्म के योग अनुसार यह कष्ट मता पिता  को भोगना पड़ता है. अगर किसी जताक की  कुंडली में पिता का कारक  सूर्य तथा माता का कारक चन्द्र पीड़ित स्थिति में हो या फिर नवांश कुंडली में सूर्य शनि के साथ या राहू के साथ हो तथा चंद्रमा भी पाप प्रभाव में हो या फिर छे आठ बारह के साथ सूर्य चन्द्रमा की युति हो या उनके नवांश में हो तो प्रबल बलारिष्ट योग बनता है. अगर किसी जातक की कुंडली में कुंडली के चोथे वा नें घर पर पाप प्रभाव होने से जातक के जनम के बाद माता पिता को अरिष्ट भोगना पड़ेगा अर्तार्थ कष्ट होगा अगर   किसी  कुंडली में सूर्य भी पाप प्रभाव में हो या पाप नवांश में हो तथा नवें घर पर पाप प्रभाव हो एवं नोमेश कुंडली के छे आठ बहरह के स्वामी के साथ हो तो जातक के जनम समय पिता की मृत्यु हो जाती है. इसी प्रकार चंद्रमा पीड़ित होने पर तथा चोथे घ में पाप प्रभाव होने से मता को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है इसके साथ साथ बलारिष्ट के कारण माता पिता को बंधन कारावास ,भयानक बिमारी ,देश निकाला ,व्यवसाय में उत्तार चढ़ाव तथा घरेलू संपत्ति के नास के योग भी बनते हैं लेकिन दाम्पत्य जीवन में वैवाहिक सुख समृद्धि को लेकर जो बल्रिष्ट के परिणाम देखे जाते हैं उनमें देह काल वा पात्र के अनुसार अंतर मिलता है.जिस बाल्रिष्ट के परिणाम स्वरुप अमेरिका में जमेंजातक किकुंडली में तलाक की घोषणा की जाई है वहीँ भरत में पात्रता का अंतर अआने के कारण वैवाहिक जीवन में तनाव ,माता पिता को कष्ट की बात होती है तथ तलाक शब्द निकाल दिया जाता है. अतः बालारिष्ट की घोषणा करते समय जातक के माता  पिता की पात्रता तथा उन पर चलनें वाला समय एवं उनकी धार्मिक परम्परा वा देश का भी विचार कर लेना चाहिए अन्यथा भ्विशय्वानी गलत होने का पूर्ण खतरा रहता है       

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