ईश्वरीय कृपा : जीवन सफलता

जीवन में सफलता के लिए इश्वारिए कृपा का होना आवश्यक है. चतुर मानव जीवन में मिलने वाली सफलताओं को मात्र अपने कर्म का फल ही मानता है और सर्वशक्तिमान प्रभु को भूल जाता है. सत्य तो यह है कि ईश्वरीय कृपा से ही मानव ऐसे सैट कर्म करता है जो सफल होते हैं अन्यथा अपने कर्मों के उद्देश्यों को लेकर भटकता ही रहता है. ज्योतिषीय मतानुसार भी ग्रह एवं दशाओं के माध्यम से जीवन में पनपनेवाली विषमता ईश्वरीय कृपा से एवं प्रार्थना से समता या अनुकूलता में बदल जाती है. इस लिए मानव को चाहिए विपरीत एवं प्रति कुल परिस्थितियों में सांसारिक विडंबनाओं को भूल कर विश्वास और लगन के साथ इश्वारिए प्रार्थना करे एवं उस प्रार्थना पर विश्वास करे .वैदिक शास्त्र एवं सभी पुराणों का मत है कि जीवन के हर क्षण पनपने वाली विषमता एवं ग्रहों कि प्रतिकूल परिस्थिति ईश्वरीय कृपा से अनुकूल बनती है फलस्वरूप जीवन में सरलता सुगमता और सफलता प्राप्त होती है इसीलिए मर्मग्य गोस्वामी तुलसीदास जी लोक हित के लिए एवं रावान के अत्याचार से मुक्ति हेतु पृथ्वी ,देवता ,ब्रह्मा ,शिव सभी से ईश्वर कि प्रार्थना करवाते हैं जिसका वर्णन राम चरित मानस के प्रथम सोपान बाल काण्ड के प्रारम्भ में इस प्रकार मिलता है कि :
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता ।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता ॥

पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई ।
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई ॥
जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा ।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा ॥
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगतमोह मुनिबृंदा ।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा ॥
जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा ।
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा ॥
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा ।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा ॥
सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहि जाना ।
जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना ॥
भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा ।
मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा ॥

दो॰ जानि सभय सुरभूमि सुनि बचन समेत सनेह ।
गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह ॥

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