ज्योतिष्य चिकित्सा एवं उसके मानवीय जीवन पर प्रभाव

ज्योतिष्य चिकित्सा एवं उसके मानवीय जीवन पर प्रभाव



ज्योतिष के द्वारा मानवीय जीवन पर होने वाले प्रभाव तथा उस से उत्पन्न गंभीर बिमारियों का विश्लेषण ज्योतिष्यचिकित्सा के मध्यम से किया जाता है.ग्रहों द्वारा मानवीय शरीर पे पड़ने वाले प्रभाव तथा उनसे उत्पन्नित रोग का समय एवं समापन का आंकलन करने की ज्योतिष्यचिकित्सा की एक अनोखी विधा है.मानवीय जीवन पर समय समय पर ग्रहों के द्वारा पड़ने वाले प्रभावों से केवल व्यवसाय आदि पर ही नहीं पड़ता है, बलिक मानवीय जीवन में शारीरिक अवस्थाओं पर भी पड़ता है
.जिस से समय समय पर ग्रहों के मध्यम से अनेक विकार उत्पन्न होते रहते हैं.जिन का अध्ययन ज्योतिष विज्ञानं में हम ज्योतिष्य चिकित्सा के अंतर्गत करते हैं.
अगर हम ज्योतिषी शिक्षा के माध्यम से बात करें तो शरीर के विभिन्न अन्गोप्न पर ग्रहों के पड़ने वाल्व प्रभाव की बात स्पष्ट
करनी होगी.जिसके लिए हमें काल पुरूष की कुंडली का अध्ययन करना अत्यन्त आवश्यक है. काल पुरूष की कुंडली के अनुसार शरीर के विभिन्न अंग व् उन पर पड़ने वाली राशीयाँ निम्नवत इस प्रकार हैं.

एतः काल पुरूष की कुंडली अनुसार मेष राशि द्वारा मानवीय शरीर की बनावट सिर , बाल ,खोपरी,सम्पूरण शरीर का ढांचे की रचना मानी गयी है. मेष राशिः का स्वामी मंगल है. एतः कुंडली में मंगल के कमजोर होने से तथा लगन में अशुभ प्रभाव होने से सिर सम्बन्धी विकार गंजापन आदि होने की सम्भावना रहती है इसके साथ साथ खोपरी का बड़ा या छोटा होना तथा चेहरे का सुंदर या विकृत दिखाई देना मंगल के सुभ या अशुभ प्रभाव तथा लगन पात्र शुभता अशुभता के कारण होता है .शरीरिक गठन का विचार लगन की देग्रियन तथा लगन में बैठे हुए ग्रहों की अवस्था एवं उस पर दृष्टि देने वाले शुभ अशुभ ग्रहों के प्रभाव के द्वारा जनि जाती है. इसके साथ साथ लगन का स्वामी लग्नेश पर भी ग्रहों के शुभ अशुभ प्रभावों को जानना
चाहिए .मन की एकक्गर्ता व् मन की चंचलता पर भी लगन और लग्नेश का प्रभाव के द्वारा जन जाता है.एतः पुरंतेह स्वस्थ रहने के लिए तथा अच्छे व्यक्तित्व के लिए लगन तथा लग्नेश पर दोनों पर शुभ प्रभाव का होना आवश्येक है .
काल पुरूष के दुसरे हिस्से में पड़नेवाली राशिः वृषभ है. इस राशी का स्वामी शुक्र है.काल पुरूष की कुंडली में दुसरे घर में पड़ने वाले अंग मुख ,वाणी ,शब्द, कंठ .गला ,आदि पड़ते हैं.एतः शुक्र के पीड़ित होने एवं पाप प्रभाव में होने से तथा दुसरे घर पर अशुभ्ज प्रभाव होने से जातक को वाणी की कमजोरी तोतलापन दंत विकार गूंगापन तथा बाएं कान से सम्बंधित परेशानियाँ होती हैं. फलस्वरूप दुसरे घर से सम्बंधित अंगों का विकार मुख से वाणी से शब्द से संगीत से हास्य व् विनोद कला से गहरा सम्बन्ध होता है.
काल पुरूष की कुंडली में तीसरे घर में पड़ने वाले मानवीय अंग गर्दन कन्धा तथा छाती के समकक्ष एवं उसके उपर के अंग आते है. तीसरे घर पर पाप प्रभाव होने तथा तीसरे घर का स्वामी बुध के अशुभ प्रभाव में जाने से जातक को कन्धों से सम्बंधित विकार,कन्धों का उभरा सा दबापन होना एवं गर्दन सम्बंधित विकारों की गणना इसी भावः से की जाती है .यद्यपि ज्योतियों का यह भी मानना है की जातक की भुजाओं का विश्लेषण भी इसी भाग से करना चाहिए.इस भाग में पड़ने वाली राशी मिथुन है जिसका स्वामी बुध है ,जिसका हमारे शरीर से गहरा सम्बन्ध है .

काल पुरूष की कुंडली के अनुसार चौथे घर में उत्पन्न होने वाली राशी कर्क है जिसका स्वामी चंद्रमा है.चौथे घर में पड़ने वाले मानवीय अंग हृदय छाती स्तन (चेष्ट -वेरेष्ट ) व् नाभि से उपर का सभी हिस्सा इस भाग के अनतेरगत आत्ता है. एतः कुंडली के चौथे घर पर पाप प्रभाव होना तथा चतुर्तेश व् चंदर के अशुभ प्रभाव में जाने से इस भाग की बीमारियाँ जैसे ह्रदय रोग, स्तनों का उभरा होना या दबा होना तथा महिला वर्ग में स्तनों की सुन्दरता या विकृत होना तथ्जा स्तनों के रोगों का विचार इस भाग से किया जाता है. इस भाग पर पाप प्रभाव होने से तथा ग्रहण योग या अशुभ योग बनने से जातक अशांत तथा ह्रदय रोगी एवं कमजोर संयम वाला होता है चौथे घर पर पाप प्रभाव व् चंदेर्मा की कमजोर स्तिथि से एवं चंदर पर मंगल के प्रभाव होने से जातक को उन्माद जैसी बीमारी भी होती है.
काल पुरूष की कुंडली के अनुसार पंचम घर में पड़ने वाली राशी सिंह है. जिसका स्वामी सूर्य है तथा पंचम घर में पड़ने वाले मानव शरीर के अंग नाभि पेटआंतों से उपर का सम्पूरण हिस्सा इस भाग के अनतेरगत आता है एतः पंचम घर में ग्रहों का अशुभ प्रभाव होना शनि या शुक्र का होना एवं सूर्य का नीच या पाप प्रभाव में जाना जातक को पेट का रोगी बनाता है. पेट का शरीर के हिस्से से उभरा पण वायु विकार तथा पाचनतंत्र में की जठराग्नि कमजोरी जिस सेअपचयजैसे विकार होते हैं .इसके साथ साथ नाभि से सम्बंधित विकार तथा पेट के अन्दर आंतों से उपर के हिस्से के विकार जातक के पंचम घर , पंचमेश पर पाप प्रभाव तथा पीड़ित होने के कारण होता हैं.
काल पुरूष की कुंडली के छठे घर में पड़ने वाली राशी कन्या है. जिसका स्वामी बुध है.मानवीय शरीर में छठे घर में पड़ने वाले अंग आंत पाचनतंत्र किडनी तथा गुप्तांगों से उपर का भाग आते हैं. एतः पाचन तंत्र को ठीक रखने के लिए यह अन्यन्त आवश्यक है की बुध तथा छठे घर में बैठे ग्रेह तथा छठे घर के स्वामी पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो. बुध या छठे घर पर तथा स्तिथ ग्रहों पर अशुभ प्रभाव होने से जातक को आंत सम्बन्धी विकार पाचनतंत्र की कमजोरी मॉल के सूख जाने के कारण होनेवाली परेशानी हर्निया और गुप्तांग के उपर के हिस्से से सम्बंधित बिमरियन होती हैं. इसी लिए यह अन्यन्त आवश्यक है कली बुध कुंडली में शुभ प्रभाव में हो तठे छठे घर पर भी शुभ प्रभाव हो. ज्योतिष में बुध को नशों का कारक भी ममना गया है.जिस से शरीर की सारी व्यवस्था संचालित होती है.अतः यह आवश्यक है के शरीर को ठीक ढंग से संचालित करने के लिए बुध एवं छठा घर तथा उस से सम्बंधित ग्रेह सभी पर शुभ प्रभाव हो.
काल पुरूष की कुंडली में सप्तम घरमें पड़ने वाली राशी तुला होती है. जिसका स्वामी शुक्र होता हैतथा सप्तम घर में मानवीय शरीर में पड़ने वाले अंग गुप्तांग तथा गुहा से उपेत्र का हिस्सा आता है. इस्सी लिए सप्तम घर से गुप्तांग की बनावट, कामुक्त क्षमता काम से सम्बंधित विकार आदि आते है. अगर सप्तम घर पर अशुभ प्रभाव हो तथा शुक्र पाप प्रभाव में हो तो गुप्तांगों से सम्बंधित रोग शुक्राणुओं की कमी एवं नापुन्संगता जैसी भयानक बिमरियन होती हैं . सप्तम सप्तमेश पर अशुभ प्रभाव होने से जातक के अंदर पर्जनन क्षमता की कमी होती है. इसी लिए वैवाहिक जीवन की सफलता तथा पर्जनन क्षमता एवं नपुंसकता जैसी बिमारिओं से बचाव के लिए शुक्र एवं सप्तमेश तथा सप्तम घर पैर शुभ प्रभाव होना आवश्यक है.अशुभ प्रभाव होने से पर्जनन क्षमता की कमी के कारण जातक को वैवाहिक जीवन में तनाव झलने पड़ते है.

काल पुरूष की कुंडली में अष्टम घर में उत्पन्न होने वाली राशी वरिश्चक जिसका स्वामी मंगल है. अष्टम घर में मानवीय शरीर के पड़ने वाले अंग गुहा तथा उसके आस पास का हिस्सा जो जांघों से उपर है,के भाग आते हैं.इसीलिए मंगल के कमजोर होने से तथा पाप प्रभाव होने से एवं अष्टम घर में अशुभ प्रभाव के कारण गुहा सम्बन्धी विकार होते है जैसे बवासीर आदि.इसीलिए अष्टम घर पर शुभ प्रभाव एवं मंगल की मजबूत स्तिथी से शरीर में रक्त का संचार ठीक होता है तथा बवासीर जैसे विकारों से मुक्ति मिलती है.

काल पुरूष की कुंडली में नोवेँ घर में पड़ने वाली राशी धनु है जिसका स्वामी गुरु होता है.नवें घर में मानवीय जीवन में पड़ने वाले अंग जांघ एवं घुटनों से उपर का सभी हिस्सा इस भाग के अनतेरगत आता है.दायें हाथ की कोहनी से नीचे का हिस्सा तथा पंजे से उपर का हिस्सा भी इसी भाग के अनतेरगत माना गया है.एतः गुरु के कमजोर होने पाप प्रभाव में होने से तथा नावें घर में अशुभ प्रभाव होने से जातक को जांघों से सम्बंधित विकार होते हैं इसलिए गुरु के सुभ प्रभाव के कारण एवं नवें घर पर शुभ प्रभाव से व्यक्ति अच्छा गतिशील तिव्र्चालने की क्षमता वाला तथा अच्छा शारीरिक परिश्रम करने वालामानव होता है.
काल पुरूष की कुंडली में पड़ने वाली राशी मकर है,इस का स्वामी शनि होता है।दसवें घर में मानवीय शरीर के पड़ने वाले अंग घुटने दायाँ हाथ एवं उसके अस पास का हिस्सा तथा घुटने के आस पास का हिस्सा आता है. अगर जातक की कुंडली में शनि कमजोर अवस्था में है या दसवें घर पर अशुभ प्रभाव है या ग्रहण योग है तो जातक को घुटनों से सम्बंधित रोग होगा. दायें हाथ से सम्बंधित विकार भी हो सकते हैं. घुटनों में वायु विकार एवं गठिया वाई के रोग दसवें घर पर पाप प्रभाव या शनि के अशुभ प्रभाव से होते हैं. इसलिए इन विकारों से मुक्ति के लिए शनि व दसवें घर का शुभ प्रभाव में होना अति आवश्यक है.

काल पुरूष की कुंडली में ग्यारहवा घर का स्वामी भी शनि होता है,इस घर में पड़ने वाला मानवीय शरीर का हिस्सा घुटने से नीचे व टखनों से उपर का भाग आता है.अतः शनि के अशुभ प्रभाव के कारण या नीच राशी में जाने के कारण तथा ग्यारहवें घर में अशुभ प्रभाव होने या ग्रहण योग होने से तथा सूर्य या चंद्रमा की स्तिथि होने से घुटने के नीचे एवं टखनों से उपर के भाग में परेशानी होती है.
अतः इस भाग के रोग विकार के लिए शनि का शुभ प्रभाव में होना एवं एकादश भावः का सभी स्तिथियों में मजबूत होना आव्श्येक है.

काल पुरूष की कुंडली में बाहरवें घर में उत्पन्न होनेवाली राशी मीन है.जिसका स्वामी गुरु है बह्वें घर को काल पुरूष का अन्तिम घर व्यय भावः कहा जाता है. इस भाग के अनतेरगत पड़ने वाले शरीर के अंग पैरतलवा नाखून दायाँ कान दायीं आँख आदि सभी अंग आते है.
अतःइस भाग के अशुभ प्रभाव में होने से तथा गुरु के नीच राशी नीच नवांश व पाप प्रभाव में होने से पैरों के तलवे तथा कान व आंखों से संभावित रोग होते हैं बहरापन लंगरापन अंधापन एवं अन्य सभी रोग जिनका मानवीय शरीर में भयानक योग बनता है. इसी भावः से जानी जाती है.इस लिए जीवन की सफलता के लिए एवं स्वस्थ रहने के लिए द्वादश भावः में शुभ प्रभाव तथा इस भावः के स्वामी का शुभता के साथ स्थित होना अत्यन्त आवश्यक है .

जीवन की होने वाली प्रत्येक गंभीर बीमारी का आंकलन इसी भावः से होता है .गर्भ से उत्पन्न समस्याएँ व रोग जैसे जन्मान्धपन्न ,बेहरापन्न,तुत्लापन्नएवं अन्य गर्भ से उत्पन्न बीमारियाँ इसिभाव से जानी जाती है.

ग्रह तथा उससे उत्पन्न बीमारियाँ :-
ग्रहों से उत्पन्न बीमारियाँ सम्पूरण जीवन में तो होती ही हैं लेकिन उनका विशेष प्रभाव उनसे सम्बंधित नकारात्मक दशा तथा नकारात्मक गोचरके समय उत्पन्न होती है.जो इस प्रकार हैं.

सूर्य ---
बुखार,उच् या निम्न रक्तचाप,रक्तविकार ,फूधा,फुंसी,काम्विकर,रक्त की कमी तथाश्त्रीर में रक्त संचार ठीक न होना.
स्त्रियों में मासिक धर्मनियमित न होना,एवं गर्भपात जैसी सम्सायें इसी ग्रह के कारण होती हैं.



चंद्रमा
जल संभी विकार, दंत विकार ,फेंफडों का विकार जुकाम और मधुमेह ,काम की पर्बलताया कमी ,पागलंपन वा अन्य मानसिक विकार.
स्मरण शक्ति का कम होना,नाखूनों व छाती सम्बन्धी विकार का आंकलन चंद्रमा के द्वारा होता है.

मंगल:-
हड्डियों की कमजोरी,उत्साह व सहस की कमी हड्डी सम्बन्धी विकार रक्त विकार,jathragni का कमजोर होना.गंजापन आदि,बालों का झड़ना, महिलाओं में गर्भपात जैसी सम्सायें,मासिकधर्म की कमजोरी,कमजोर शुक्राणुओं का होना,शरीर में बैचैनी एवं लाल रंग के च्क्कते होना तथा अन्य अग्नि सम्बन्धी विकार जैसे जल जन या अग्नि से दुर्घटना होना.आदि.
बुधः:-
बुधः से नसों का कमजोर होना आंतों की कमजोर स्तिथि होना नपुंसकता जैसी बीमारी का होना,रक्त विकार होना,खून ख़राब),स्मृति की कमी होना ,तुतला या हकलापन होना,शरीर में कम्पन होना,मिर्गी आदि के दौरे पड़ना,शरीर का सुननहोना अन्य वाणी सम्बन्धी विकार बुधः के कारण होते हैं.
गुरु:
पेट सम्बन्धी विकार,आंतों की कमजोर स्तिथि हर्निया जैसी बीमारी,पीलिया,अंडकोष का बढाया छोटा होना,जंघा से सम्बंधित विकार,पैरों के विकार एवं मन सम्बन्धी विकार शरीर में प्रोटीन आदि की कमी होना, टुबेर्कुलोसिस व अधरंग इसी के कारण होते हैं इसके साथ साथ कारन विकार,तलवे के विकार गुरु के कारण ही होते हैं.
शुक्र:
पानी की कमी होना,वीर्य का कम बनाना शुक्राणुओं का नील या कमजोर होना मधुमेह,गुप्तांगों सम्बन्धी विकार प्रजनन सम्बन्धी विकार ,नत्रों में ज्योति सम्बन्धी विकार,मज्जा की कमी कंठ सम्बन्धी विकार वाणी में स्वर का न होना उत्साह,बल की कमजोरीइसी ग्रह के कारण होते हैं.

शनि:
स्लोरोसिस (चर्म रोग),आंतों में मॉल सम्बन्धी विकार,वायु विकार,गठिया वायु ,देरी से प्रजनन की समस्याएँ ,गुप्तांगों का ढीला या कमजोर होना. बालों के सम्बंधित विकार घुटनों की समस्याएँ एवं दायें हाथ का विकार.शरीर पैर बालों का अधिक या कम होना.आयु का अधिक नज़र आना शरीर में बल की कमजोरी होना तथा समय से पहले बालों का सफ़ेद होना. गंद या मॉल से होने वाले विकार ,संक्रमण से होने वाले रोग.
राहू:
राहू के कारण शरीर पर काले चक्कते होना विषैले कीटाणुओं द्वारा कटे जाने से उत्पन्न रोग ज़हर से सम्बंधित विकार ,पेट में उफ्रापन्न होना, वायु विकार , मंदबुध्ही होना, दाद खुजली का होना ,कानों के अंदर मैल का अधिक बनना,कानों से सम्बंधित विकार.तथा नाक के नथुनों में बने मैल से सम्बंधित विकटर ,नाखूनों का खराब होना
केतु:
उन्माद ,शरीर के हिस्सों में दर्द होना ,शक संदेह करना,अनावश्यक सोचना, बुद्धि से भ्रमित होना ,समय समय पैर घबरा जाना एवं हवा ,प्रेत तथा पितरों के कारण उत्पन्न विकार इसी के द्वारा देखे जाते हैं .
उपाय:
जातक को ग्रहों के द्वारा उत्पन्न रोग के समय अपने सम्बंधित चिकित्सक की सलाह पर दवा का सेवन करना चाहिए एवं अपने विश्वसनिये ज्योतिषी की सलाह पर सम्बंधित भावः जिस से बीमारी उत्पन्न है के स्वामी की तथा कारक ग्रह से सम्बंधित उपाय करना चाहिए.

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