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Showing posts from February, 2009

रुद्राभिषेक: शनि व् राहू की शान्ति हेतु

रुद्राभिषेक: शनि व् राहू की शान्ति हेतु प्राचीन काल से ही भगवान् शिव का रुद्र रूप में अभिषेक करने की परम्परा चली आ रही है। पौरंनिक मत के अनुसार भगवान् शिव को पृथ्वी के निकताकतम देव एवं आशुताश (शीघ्र प्रसन्न होने वाले ) के नाम से जाना जाता है। यही कारण है की मानस काल से लेकर महाभारत काल तथा आधुनिक काल में भगवान् शिव की पूजा के अनेक चमत्कारी प्रयोगों का प्र्च्ल्लन हुआ है । वैसे तो माना जाता है की सृष्टि के तीन देवता रजोगुण सतोगुण व् तमोगुण प्रधान ब्रह्मा विष्णु महेश हैं। इसीलिए भगवान् शिव को रुद्र - संघार करनेवाले देव कहा जाता है। जबतक भगवान् शिव की कृपा ना हो तब तक जीवन और समाज में पनपनेवाले दानवों का नाश नहीं हो सकता । भगवान् शिव की पूजा दो रूपों में होती है। मूर्ति रूप में व् लिंग रूप में। आधुनिक समाज में भगवान् शिव के ज्योति लिंग का ग़लत अर्थ लगाया जाने लगा है जिसको में स्पष्ट करना चाहूँगा शिव के ज्योति लिंग का अर्थ ज्ञान का लिंग या प्रतीक है अर्थार्त शिव की पूजा के दो रूप हुए आध्यात्म रूप जिसमें पूजा ज्योतिर्लिंग में होती है.सांसारिक रूप जिसमें पूजा मूर्ति रूप में होती है.किसी भी सम

अदिति ह्रदय स्त्रोत्र

.बाल्मीकि रामायण में अदितिह्रिदय स्त्रोत्र के बारे में यह कथा मिलती है किरावण से युद्ध करते भगवान् श्री राम निराश हो गए थे तथा उन्हें लगने लगा था कि रावण कि विशाल सेना पर विजय पाना कठिन ही नहीं असंभव है। . फलस्वरूप उन्हें मानव मर्यादा एवं नैतिकता के बारे में भरी चिंता होने लगी। इस चिंता के निवारण हेतु भगवान् श्री राम अगुस्त मुनि के आश्रम में गए और अपनी व्यथा को कहा जिस पर अगुस्त मुनि नें भगवान् श्री राम को सृष्टि के अधिदाता सूर्य की पूजा करने तथा अदितिह्रिदय स्त्रोत्र का पाठ करने को कहा .कहा जाता है इस पाठ के प्रभाव से प्रभु राम रावण पर विजय प्राप्त कर मानव मूल्यों के रक्षक एवं लोक विख्यात संप्रभु बने। ज्योतिष के मतानुसार भी सूर्य सभी ग्रहों का स्वामी है क्यूंकि सभी ग्रेह अपना शुभ और अशुभ प्रभाव सृष्टि में सूर्य के ही कारण देते हैं.इसीलिए जीव की हर अवस्था व् दशा में अदिति ह्रदय स्त्रोत्र रामबाण औषधि की तरह कार्य करता है..इसलिए हरेक को इसका पाठ करना चाहिए ...अथ अदिति ह्रदय स्त्रोत्रम : ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितं । . रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपसिथ्तम ॥ दैवातैश्चा स

लाल कृष्ण अडवाणी जी का कमजोर योग

लाल कृष्ण अडवाणी जी का कमजोर योग १ फ़रवरी २००९ के पंजाब केसरी दिल्ली के सम्पादकीय पृष्ट पर श्री त्रिदिब रमन की श्री अडवानी की जन्मपत्री पर मेरा अवलोकन कुछ भिन्न है. जिनका जन्म दिनांक ८ नवम्बर १९२७ समय ९.२० प्रातः स्थान ह्य्द्रबाद पाकिस्तान है. जिसके अनुसार इनकी कुंडली वृश्चक लगन तथा मेष राशि की बनती है.जो दशा शनि की दर्शाई गई है उसका राज योग मात्र जन्मकुंडली में ही बनता है. चन्द्र कुंडली में शनि का प्रबल राज योग नही है. नवांश में भी स्थिति सामान्य है. अतः यह कहना श्री अडवानी जी भविष्य में देश के प्रधानमंत्री बनेंगे दिखाए गए योग के अनुसार कठिन है. इस परिस्थिति पर पुर्विचार किया जाए मेरा यह मत है.