हितोउपदेश
Gmail
COMPOSE
Move to Inbox
More
1 of 694
हितोउपदेश
गोस्वामी तुलसी दास जी नेमानस में जीव के धर्म के बारे में कहाँ है कि इस संसार में अगर जीव का कोई धर्म है तो सत्य बोलना तथा सत्य के राह पर चलना है जिस से प्राणी ओ को लाभ मिल सके अगर इस संसार में सबसे बड़ा पाप और अत्या चार है तो झूट असत्य तथा हिंसा है जहाँ हिंसा शब्द जुड़ता है तो मानब शास्त्रों से करी गयी हत्या को ही हिंसा मानता है ये एक बिदावना है इस संसार में हिसा दो प्रकार से शास्त्र द्वरा दूसरी बचन द्वरा बचन की हिंसा शाश्त्र की हिंसा से बड़ी होती है शास्त्र एसा मानते है यानि जीव को शास्त्र से नहीं वाणी से भी किसी का अहित नहीं करना चाहिए
यानि मानब को मन कर्म बचन सभी से प्रोउपकारीहोना अति अबस्क है अगर किसीप्रकार की टूर्तीजीव को माया दवरा त्रासतथा बंधन पैदा करती है शास्त्र एसा मानते है |
जिस समय मुथरा पर यवन सम्राट कालयवन का आक्रमण हूआ था तब भगवान श्री क्रष्ण ने युध से भाग कर अपना नया नाम रन छोद्ब्स्थापित कराया इसे आप सभी लोग भालीभात जानते है उस समय उनकी भेटमहाराजा मुच्कंद से हूई जिन्हें श्री क्रष्ण द्वरा दुप्ता उड़ादिया तथा कालयवन के जगाने पर इनकी द्रष्टि से उसका नास हूया तथा कालयवन को भगवान श्री क्रष्ण के दर्शन हूए तब मुच्कंद जी ने श्री क्रष्ण से कहा कि प्रभु आपकी माया बड़ी बिच्त्र है इस संसार में आप की बिना क्रपा इस से कोई नहीं बच सका इस माया का प्रभाव एसा है कि जब जीव चतुराई करतब है तो माया हसती जीव सोचता है की मनाब मै सफल हो रहा हूँ जब की मनाब सही मायने में निरंतर घिरता जा रहा है वह उसकी सबसे बड़ी भूल है किसी के साथ छल बल प्रयोग कर सफल हो जायेगा ये मनाब की भूल है क्यों की प्रक्रति नैतिक मूल्यों की रक्षक है तथा नैतिक मूल्यों की रक्षा करना प्रकति का कम है इस लिए जीव को छोटी सोच रखकर किसी का बुरा कर कभी किसी का हित नहीं होता है |इस संदर्भ में मुझे महाभारत काल का एक उधाहरण स्मरण आता है माहा भारत का युध कुल १८ दिन चला जब १६ दिन के बाद दर्योधन का भाईयो का नास हो गाया तब दर्योधन को अपने प्राण कैसे बचे यह सोचने लगा तथा अपने प्राण रक्षा हेतु धर्मराज युधिष्ठर जिन को अजात शास्त्रू कहा जाता के पास गया तथा अपने प्राण रक्षा हेतु गुहार करने लगा तब धर्मराज ने कहा की दर्योधन अब काफी समय हो गया है इस लिए देरी के चलते मै अपने भाईयो के बल को तो रोंक नहीं सकता हूँ |लेकिन आप को एक उपाय बतलाता हूँ की आप माँ गांधारी के सामने नग्न अबस्था में सुबहसुबहपहुचना अगर माँ आप को देखेगी तो निश्य ही आप बज्र के हो जायगे तथा आप को कोई न तो भीम की गदा से मारा जा सकेगा नहीं अर्जुन के गांडीव से यह सुन दर्योधन को बड़ा हर्ष हूआ जब यह समाचार अर्जुन को पता चला तो युध के प्रणाम को देख काफी चिन्ता हूई और उस नेभगवन श्री क्रष्ण की शरण ली पांड्वो के दुःख को देख भगवन श्री क्रष्ण नेकहा की अत्याचारअधरम प्रबल तो हो सकते है लेकिन अमर नहीं इस लिए दर्योधन को मरना ही होगा उस के कर्म उसे म्रत्यु देंगे अमरता नहीं अंत में भगवान् श्री क्रष्ण की माया से प्ररेतहोकर केले के पत्ते अपने कम अंगो से बांध कर माँ के पास गया तब माँ नेभी यही खा की दर्योधन तू अमर हो नेनहीं म्रत्यु को निमत्रं देने आया है |अत जब भीम की गदा का प्रहार तेरी जंगा पर होगा तू मारा जायेगा ये निश्य है और एसा ही हूआ | ये था प्रकति द्वरा रचित न्याय का प्रभाव जिसे भूलाया नहीं जा सकता है |
0.5 GB (3%) of 15 GB used
©2014 Google - Terms & Privacy
Last account activity: 13 minutes ago
Details |
Comments