दत्तक पुत्र
दत्तक पुत्र
संसार के हर प्राणी की इच्छा संतान उत्त्पन्न करने तथा उसका पालन पोषण कर बड़े करने की होती है. जो इस सृष्टि के शुभ्रम्भ से ही चली आ रही है. लेकिन इसमें मनुष्य एक ऐसा प्राणी है की वो अपनी संतान को अपनें ही हाथों पाल पोस कर बड़ा करने की प्रबल इच्छा रखता है. हिन्दू दर्शन के अनुसार पुत्र को माता पिता के सुंदर कर्मों का फल माना गया है. जो वंश वृद्धि में सहायक होता है. इसीलिए मनुष्य की प्रबल इच्छा होती है की उस से उत्त्पन्न संतान में एक पुत्र हो.
ज्योतिष अनुसार संतान की उत्पत्ति मनुष्य के पूर्व जन्मों का फल है. अर्थात पूर्वजन्मों के कर्मों का फल संतान देने में सहायक सिद्ध होता है जब की मुर्ख जन उसे अपने मैथुनी कर्ण का प्रभाव और फल समझते हैं मैथुनी कर्ण ब्रह्मा की मैथुनी सृष्टि के अनुसार मनुष्य का स्वाभाविक कर्म बन गया है. लेकिन उसका साधन संतान या पुत्र उत्त्पति हो आवश्यक नहीं है. अगर कुंडली का पंचम और पंचमेश पाप प्रभाव में है.तथा संतान का कारक गुरु पीड़ित अवस्था में है तो मनुष्य को संतान का सुख मिलना असंभव होगा लेकिन अगर गुरु ही पीड़ित अवस्था में है और उसका पंचम और पंचमेश से सम्बन्ध है तो मनुष्य की संतानों में पुत्र नहीं होगा. वैसे ज्योतिष पुस्तक सहरावली के अनुसार अगर कुंडली के केन्द्रक भाव में गुरु विद्यमान है तो उसकी संतानों में एक पुत्र आवश्यक होगा.
दत्तक पुत्र योग :
ज्योतिशानुसार कुंडली का पंचम घर संतान,शिक्षा,प्रेम संबंध तथा संतान का माना जाता है. संतान का कारक ग्रह गुरु को माना गया है. अगर कुंडली का पंचमेश छाते घर में हो तो जातक को दत्तक पुत्र का सुख मिलता है तथा ऐसी स्तिथि में उसे पुत्र गोद लेना पड़ता है. लेकिन अगर संतान का कारक गुरु अपने नीच नवांश या पाप प्रभाव में हो तथा पंचमेश पीड़ित हो तो जातक द्वारा गोद लिए हुए पुत्र का कुछ समय नाश हो जाता है. ऐसी अवस्था में जातक को ज्योतिषय आधार पर नियमानुसार आवश्यक उपचार करने के बाद दत्तक पत्र लेना चाहिए अगर उपचार संभव न हो तो दत्तक पुत्र को प्राप्त नहीं करना चाहिए अन्यथा वंश को भरी नुक्सान की संभावना रहती है|
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