सुंदर कांड का मानव जीवन पर प्रभाव
सुंदर कांड का मानव जीवन पर प्रभाव
राम चरित मानस हिंदू दर्शन का ऐसा सदग्रंथ है जिसके रहस्य मानव जीवन में मर्यादा पूर्ण तो हैं ही इसके साथ सभी भावः बाधाओं को काटने वाली अचूक औषधि भी है। कहा जाता है इस मर्मज्ञ मानस के रचियता पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने कल काल की सामजिक परिस्थिति तथा मानवता को ध्यान में रख कर की ,हिंदू दर्शन का यह पहला अध्भुत सद ग्रन्थ है जो हिन्दी भाषा में लिखा गया तथा थोड़े ही समय में अत्यन्त लोकप्रिय भी हो गया इस मानस के पठान पाठन से मनुष्य की मर्यादा स्थापित होने के साथ साथ ग्रह बाधा एवं भव बाधा दोनों समाप्त हो जाती हैं .गोस्वामी तुलसीदास जी नें अंजनिपुत्र हनुमंत लाल जी को अपना गुरु मानते है इस सद ग्रन्थ की रचना उन्हीं के निर्देशन पर की।
इस राम चरित रूपी सरोवर की गोस्वामी तुलसीदास जी ने सरोवर में उतरने हेतु सात सीडियों की सथापना की। इनको कांडों के नाम से जाना जाता है । इन सभी कांडों में सबसे श्रेष्ट तथा अदभुत काण्ड का नाम है सुंदर कांड जो इस ग्रन्थ की पांचवी सीडी है. इस काण्ड के अन्तरगत गोस्वामी जी नें मानवता के उद्देश्यों को तय करने के साथ साथ unme आने वाली बाधाओं का वर्णन किया है जो केवल राम कृपा रूपी रसायन से ही दूर हो सकती हैं। राम की कृपा प्राप्त करने के लिए सहज और सरल आचरण का होना परम आवश्यक है ।
इस काण्ड के शुरू में गोस्वामी तुलसीदास जी मानवीय मर्यादा और बालों का ज़िक्र करते हैं .बतलाते हैं की मानव के बल विवेक बुद्धि सभी की एक परसीमा है लेकिन राम कृपा की कोई सीमा नही है इस लिए संसार में होने वाले सभी रह्सयमय कार्य परभू कृपा पर ही सम्भव हैं ,इस लिए गोस्वामी जी इस काण्ड की कथा के आरंभ में ही मानव की बुद्धि और बल का ज़िक्र करते है कहते हैं कि
अंगद कहेई जाऊँ मैं पारा। जिए संसय कछु फिरती बार॥
जामवंत कह तुह सब लायक । पठिया किमि सभी कर नायक॥
कही रीछपति सुन हनुमाना । का चुप साधी रहेउ बलवाना ॥
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि विवेक विज्ञान निधाना॥
अर्थात इस संसार में सभी का बुद्धि विवेक बल और सम्पदा कि एक सीमा है तथा एक समय है। जिसके बल पर यश और प्रतिष्ठा स्थापित नही कि जा सकती है। जब तक आप के जीवन में राम कृपा रूपी संपदा या पूंजी ना हो ,यही कारण है जानकी जी कि खोज में निकला वानर दल अपनी बल और सीमा को देख कर जो राम कार्य करने के लिए पर्याप्त नहीं है शांत हो जाते हैं। उस दल में बैठे पवन पुत्र हनुमान जो ज्ञान के भण्डार तथा विज्ञान में विशारद हैं इसलिए शांत हैं कि यह कार्य जो मानवीय मूल उद्देश्यों को जोड़ने के लिए है बिना प्रभु कृपा नहीं हो सकता है। इस संसार रूपी सागर को को पार करना है तो राम कृपा रूपी बल का होना नितांत आवश्यक है।
मनुष्य के जीवन में मानवीय यात्रा करते समय हर कदम हर क्षण कोई न कोई परेशानी लंकानी का रूप धारण कर के खड़ी हो जाती है और जब तक आप के ज्ञान रूपी लात उस पर न पड़े तब तक आगे का मार्ग तय नहीं हो सकता है । इस लिए जीवन कि संपूरण यात्रा को सफल बनाने के लिए बल और बुद्धि के साथ इश्वरिये कृपा रूपी औषधि इसलिए आवश्यक होती है जो समय समय पर होने वाली थकान के समय आको तरोताजा कर सके। लंका यात्रा के समय अंजनी पुत्र हनुमंत लाल के सामना अनेक परेशानियां आई जिनके लिए उन्हों ने बल और बुद्धि का पर्योग कर सफलता प्राप्त की तथा कहीं कहीं अपनी सफलता हेतु अपना साक्षात्कार भी दिया। लंका तक पहुँचने में अनेक परेशानियाँ भी आई तो उन्हों ने राम कृपा से सफलता भी मिली। अंत में लंका नगरी में प्रवेश हुआ। किसी का कष्ट दूर करना किसी भ्रान्ति से किसी मनुष्य को निकलना किसी गरीब दीं दुखी की मदद करना सज्जन पुरुषों के पहले लक्षण कहे जाते हैं। इसी लिए हनुमान जी ने लंका में लंका वासिओं का छिप कर परिक्षण किया फलस्वरूप विभीषण जैसे संत की पहचान की तथा उसके अन्दर राम कथा के द्वारा राम कृपा रूपी बल को जगा दिया। जिस से विभीषण के अन्दर जागृति, मानवता के प्रति उत्तरदायित्व एवं आत्मविश्वासआ गया । अगर सुंदर काण्ड की पुरी कथा को ध्यान से देखा जाए तो पता चलता है कि विभीषण एक ऐसा पात्र है जो राम कि भक्ति करते है भी अभागा है। उसका ज्ञान और वैराग्य के बल से रावण का अत्याचार बढ रहा है। इसीलिए आह्न्कारी रावण को पराजित करने के लिए विभीषण को लंका के समुदाय हटाना समय कि मजबूरी के साथ साथ आवश्यक भी जो कार्य हनुमान जी ने सहर्षता के साथ किया।
लंका में जा कर पवनपुत्र हनुमान जी ने राम कृपा के बल पर अनेक समाज सुधार के कार्य किए। जिस से कि समाज पर रावण के अत्याचारों का बल कम हो सके तथा राम के चरित्र से नैतिक बल वो मनुष्य के विकास के लिए आवश्यक है मिल सके . हनुमान जी ने लंका में जा कर समाज सुधर कार्यों के बल पर यह सिद्ध कर दिया कि बहु बल व आर्थिक बल पर किए जाने वाला अत्याचार कुछ समय के लिए प्रभावशाली तो हो सकता हैकिन्तु अमर नहीं बन सकता। जानकी जी से मिलने के बाद तथा राम कथा सुनाने के बाद हनुमान जी लंका वासियों कि दशा में सुधार के लिए अगर्सर हुए तो उनके बड़ते हुए कदमों को रोकने के लिए रावण पुत्र मेघनाथ ने ब्रह्मफांस में बाँध लिया यद्यपि इस बंधन को ज्ञान और वैराग्य के बल पर तोडा भी जा सकता था लेकिन मानवता के विकास के लिए मनुष्य का मर्यादा में रहना अत्यन्त आवश्यक है। इसलिए हनुमान जी ब्रह्मफंस में बाँध गए। रावण के दरबार में पेश हुए। जिसकी चर्चा करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि'' भगवान् शिव पार्वती जी से कहते हैं -
जासु नाम जपी सुन्हो भवानी । भावः बंधन काटें नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बाँध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिः बंधवा ॥
कापी बंधन सुन निश्चर धाये .कौतिक लगि सभां सब आए ॥
दस मुख सभां दिखी कापी जाई । काही न जाई कछु अति प्रभु ताई ॥
अर्थात जीवन में अगर संकल्प शक्ति दृड़ हो तो सामाजिक परिस्थितियों के उत्तर चढाव आपके जीवन पथ पैर बाधक नहीं बन सकते हैं। यह संदेश हनुमान जी ने रावण कि सभा से सम्पुरण मानव जाती को दिया। हनुमान जी रावण कि सभा में सभा कि विशालता तथा सभासदों को देख केर भी भयभीत नहीं है क्यों कि वह जानते कि संसार का हर असंभव काम इश्वर कृपा से सम्भव हो जता है। इसी लिए ईश्वर इच्छा को सर्वोपर मानते हुएहनुमान जी रावण की सभा में निडरता से खड़े हुए हैं। उनसे उनकी निडरता के बारे में जब दशानन ने पूछा तो हनुमान जी ने ईश्वरीय बल कि सामर्थताको इस प्रकार बतलाया :-
सुनु रावण ब्रहमांड निकाया। पाई जासु बल बिरचित माया॥
जाकें बल बिरंची हरि ईसा । पालत सृजत हरत दस सीसा ॥
जा बल सीस धरत सह सासन । अंडकोस समेत गिरी कानन ।
धरई जो बिबिध देह सुरत्राता । तुम्ह से स्थान सिखावनु दाता ॥
हर को दंड कठिन देह भांजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥
खर दूषण त्रिसरा अरू बाली। बधे सकल अतुलित बलशाली॥
हनुमान जी ने इस प्रकार ईश्वरीय बल का वर्णन कर के दशानन और लंका वासियों को मानव जाती पर अत्याचार न करने तथा ईश्वरीय बल को उत्तम मान कर क्रोध और अंहकार का त्याग करें। गोस्वामी जी का यहाँ पर मत है कि कोई भी मानव विवेक और बाहुबल से संसार को तो जीत सकता है परन्तु काल को नहीं। ईश्वरीय इच्छा से चलने वाला काल सम्पूर्ण मानव जाति को उसके शुभ व अशुभ कर्मों का फल अवश्य ही देता है हनुमान जी ने आगे कदम समूचित नारी जाति के सम्मान में उठाया। रावण से अनुरोध किया कि नारी पर अत्याचार करना किसी भी धरम कि मर्यादा नहीं है। नारी समाज में सम्मानीय व आदरणीय शक्ति है । वो जवालामुखी भी है जो किसी अत्याचार को सहन तो कर सकती है लेकिन अगर मोड ले लेतो समाज में भूकम्प भी ला देती है. इसीलिए हनुमान जी दशानन को समूची नारी जाति का सम्मान करने तथा सीता जी को राम को लौटने का संदेश देते हैं .संदेश के माध्यम से पवनपुत्र इतना तक कहते हैं कि अगर सीता जी को नारी स्वाभिमान के तहत भगवान् श्रीराम को वापिस नहीं किया गया तो तेरा निश्चय ही नाश हो जाएगा.
मानवीय विनाश के लिए मानव का क्रोध उसका प्रबल शत्रु है तथा ज्ञान के नाश के लिए अंहकार को प्रबल शत्रु माना गया है,यह दोनों अवगुण मंविये चरित्र में जब जब फली भुत होते हैं.अपने और पराये का अन्तेर समाप्त हो जाने के कारण निश्चय ही नाश हो जाता है. गोस्वामी तुलसीदास जी क्ले अनुसार रावण प्र्बक कामिहोने के साथ साथ क्रोधी और अहंकारी भी है. इसीलिए हनुमान जी का उपदेश रावण कि दशा नहीं सुधर पाटा है,परिणाम स्वरुप हनुमान् जी का अपमान होने के कारण लंका नगरी का नाश तथा भयानक प्रकोप उत्त्पन्न होता है,जिसके कारण सम्पूर्ण असुर जाति का इतिहास है. आगे कि यात्रा में हनुमान जी जानकी जी को प्रणाम कर तथा राम के प्रति विश्वास बनाये रखनेका संदेश देते हैं. सुंदर काण्ड के अंतर्गत गोस्वामी जी ने पत्नी और पति दोनों के कर्तव्यों को बड़े मार्मिक दंग से दर्शाया है. उनका मत है कि मानवीय जीवन में पति और पत्नी दो ऐसे सम्बन्ध हैं जो शरीर तो दो हैं लेकिन उनकी आत्मा एक है. अगर इन दो शरीरों में आदर्शों के प्रति अविश्वास प्राप्त हो जाय तो जीवन कठिनाइयों के तले दब जाता है. अगर विश्वास है तो जीवन में आने वाली बड़ी से बड़ी परेशानी भी उनका बक बांका नहीं कर सकती है. जानकी जी हनुमान जी से आग्रह कर के भगवान् श्री राम के चरणों में अपना प्रेम संदेश प्रेषित करती हुई इन्द्र के पुत्र जयंत को दिए गई दंड कि कथा सुनाने को कहती हैं. जिस से उन्हें अपने कर्तव्यों का आभास हो जाय. तथा अपने बल पर भरोसा भी. हनुमान जी भगवान् श्रीराम का प्रेम संदेश भी सुनाते हुए कहते हैं :-
भगवान् श्री राम का भावः सदैव आदरणीय है वियोग कि इस अवस्था में जितना दुःख आपको को है उस से दुगना आप के पति भगवान् श्री राम को है .इसीलिए हे माता आप धैर्य धारण करें भगवान् श्री राम एक मॉस के अंतर्गत ही आप को बंधन मुक्त कर लेंगे. तथा राम का आस्था और विश्वास का ध्वज आपके तपोबल और संयम के लंका पर लहराने लगेगा .हनुमान जी जब वानर जाति के साथ शुभ संदेश लेकर भगवान् श्री राम से मिलते हैं सीता जी दयनीय स्थिति को सुन कर श्री राम को बड़ा दुःख होता हे और अपने पाटने वर्त धरम का आचरण करते हुए भगवान् श्री राम दुःख प्रकट करते हैं एवं हनुमान जी के कार्य कि प्रशंसा करते हुए अपने को उनका ऋणी मानते हैं जिसका वर्णन गोस्वामी जी इस प्रकार करते हैं :-
सुनु कपितोही समान उपकारी .नहि कोऊ सुर नर मुनि तन धारी
प्रति उपकार करों का तोरा .सन्मुख होई न सकत मन मोरा .. .
अतः इस मत के अनुसार भगवान् श्री राम अपने सेवक हनुमान जी के ऐसे ऋणी हैं जो कभी भार नहीं उतार सकते हैं.इस कार्य के बदले में हनुमंत लाल जी को देने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं हे इ इसलिए वो वचन देते हैं कि में तेरा सदैव रिन्नी रहूँगा जब भी कोई भक्त तेरा स्मरण करेगा इस उपकार के बदले में उसकी बाधाएं दूर करता रहूँगा.हेकपि तुमने जो मेरा उपकार किया हे ऐसा उपकार करने वाला न कोई देवता हे न कोई मानव हे नाकोई ऋषि मुनि हे.गोस्वामी जिआगे कथा को विस्तार देते हुए लंका में कोताहल ,लंका पर अनेक प्रकार के संकट विभीषण जी का बहिष्कार तथा विभीषण जी का अहंकारी रावण कि लात खा कर राम शरण में आने तक कि कथा कहते हे,जो हनुमान जी कि लोंका यात्रा का प्र्भ्जाव था. जिसके परिणाम स्वरुप जीवित रावण के होते हुए भी विभीषण का राजतिलक किया. राम कि कृपा से वानर सेना में अनेक मंगल कार्य हुए भगवान् श्री राम ने शरणागत विभीषण पर अपनी कृपा की समुद्र से मर्यादा अनुसार विनय करने तथा समुद्र पर क्रोध कर के अग्नि बाण से उसे सोखने तक की कथा गोस्वामी जी इस काण्ड के अंतर्गत कहते हैं. जिससे की हनुमान जी द्वारा किए गए सुन्दर कृत जो रावण के विनाश के लिए आवश्यक था. ,का अनोखा वर्णन है तुलसीदास जी निवेदन करते हुए कहते हैं कि इस पावन चरित्र को कहने सुनने से हनुमान जी कि कृपा प्राप्त होती है. तथा सभी प्रकार के संकट राम कृपा से दूर होते हैं. हनुमत लाल ही कल काल के अन्दर साधू संतों पर कृपा करने तथा धरम कि रक्षा करने वाले माने गए हैं .
ज्योतिष अनुसार भी शनि जैसे पाप ग्रेह का प्रभाव हनुमान जी कि कृपा से दूर होता है अतः शनि कि दशा का मारकेश ,शनि कि सादे सती का दुश प्रभाव मांगलिक दोष एवं अन्य अरिष्ट समय में यह कलमल चरित्र भक्तों परअवश्य कृपा करने वाला होता है. इसके पड़ने सुनने से सभी बाधाएं दूर होती हैं ऐसा मेरा मत है और विश्वास भी है.
इस राम चरित रूपी सरोवर की गोस्वामी तुलसीदास जी ने सरोवर में उतरने हेतु सात सीडियों की सथापना की। इनको कांडों के नाम से जाना जाता है । इन सभी कांडों में सबसे श्रेष्ट तथा अदभुत काण्ड का नाम है सुंदर कांड जो इस ग्रन्थ की पांचवी सीडी है. इस काण्ड के अन्तरगत गोस्वामी जी नें मानवता के उद्देश्यों को तय करने के साथ साथ unme आने वाली बाधाओं का वर्णन किया है जो केवल राम कृपा रूपी रसायन से ही दूर हो सकती हैं। राम की कृपा प्राप्त करने के लिए सहज और सरल आचरण का होना परम आवश्यक है ।
इस काण्ड के शुरू में गोस्वामी तुलसीदास जी मानवीय मर्यादा और बालों का ज़िक्र करते हैं .बतलाते हैं की मानव के बल विवेक बुद्धि सभी की एक परसीमा है लेकिन राम कृपा की कोई सीमा नही है इस लिए संसार में होने वाले सभी रह्सयमय कार्य परभू कृपा पर ही सम्भव हैं ,इस लिए गोस्वामी जी इस काण्ड की कथा के आरंभ में ही मानव की बुद्धि और बल का ज़िक्र करते है कहते हैं कि
अंगद कहेई जाऊँ मैं पारा। जिए संसय कछु फिरती बार॥
जामवंत कह तुह सब लायक । पठिया किमि सभी कर नायक॥
कही रीछपति सुन हनुमाना । का चुप साधी रहेउ बलवाना ॥
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि विवेक विज्ञान निधाना॥
अर्थात इस संसार में सभी का बुद्धि विवेक बल और सम्पदा कि एक सीमा है तथा एक समय है। जिसके बल पर यश और प्रतिष्ठा स्थापित नही कि जा सकती है। जब तक आप के जीवन में राम कृपा रूपी संपदा या पूंजी ना हो ,यही कारण है जानकी जी कि खोज में निकला वानर दल अपनी बल और सीमा को देख कर जो राम कार्य करने के लिए पर्याप्त नहीं है शांत हो जाते हैं। उस दल में बैठे पवन पुत्र हनुमान जो ज्ञान के भण्डार तथा विज्ञान में विशारद हैं इसलिए शांत हैं कि यह कार्य जो मानवीय मूल उद्देश्यों को जोड़ने के लिए है बिना प्रभु कृपा नहीं हो सकता है। इस संसार रूपी सागर को को पार करना है तो राम कृपा रूपी बल का होना नितांत आवश्यक है।
मनुष्य के जीवन में मानवीय यात्रा करते समय हर कदम हर क्षण कोई न कोई परेशानी लंकानी का रूप धारण कर के खड़ी हो जाती है और जब तक आप के ज्ञान रूपी लात उस पर न पड़े तब तक आगे का मार्ग तय नहीं हो सकता है । इस लिए जीवन कि संपूरण यात्रा को सफल बनाने के लिए बल और बुद्धि के साथ इश्वरिये कृपा रूपी औषधि इसलिए आवश्यक होती है जो समय समय पर होने वाली थकान के समय आको तरोताजा कर सके। लंका यात्रा के समय अंजनी पुत्र हनुमंत लाल के सामना अनेक परेशानियां आई जिनके लिए उन्हों ने बल और बुद्धि का पर्योग कर सफलता प्राप्त की तथा कहीं कहीं अपनी सफलता हेतु अपना साक्षात्कार भी दिया। लंका तक पहुँचने में अनेक परेशानियाँ भी आई तो उन्हों ने राम कृपा से सफलता भी मिली। अंत में लंका नगरी में प्रवेश हुआ। किसी का कष्ट दूर करना किसी भ्रान्ति से किसी मनुष्य को निकलना किसी गरीब दीं दुखी की मदद करना सज्जन पुरुषों के पहले लक्षण कहे जाते हैं। इसी लिए हनुमान जी ने लंका में लंका वासिओं का छिप कर परिक्षण किया फलस्वरूप विभीषण जैसे संत की पहचान की तथा उसके अन्दर राम कथा के द्वारा राम कृपा रूपी बल को जगा दिया। जिस से विभीषण के अन्दर जागृति, मानवता के प्रति उत्तरदायित्व एवं आत्मविश्वासआ गया । अगर सुंदर काण्ड की पुरी कथा को ध्यान से देखा जाए तो पता चलता है कि विभीषण एक ऐसा पात्र है जो राम कि भक्ति करते है भी अभागा है। उसका ज्ञान और वैराग्य के बल से रावण का अत्याचार बढ रहा है। इसीलिए आह्न्कारी रावण को पराजित करने के लिए विभीषण को लंका के समुदाय हटाना समय कि मजबूरी के साथ साथ आवश्यक भी जो कार्य हनुमान जी ने सहर्षता के साथ किया।
लंका में जा कर पवनपुत्र हनुमान जी ने राम कृपा के बल पर अनेक समाज सुधार के कार्य किए। जिस से कि समाज पर रावण के अत्याचारों का बल कम हो सके तथा राम के चरित्र से नैतिक बल वो मनुष्य के विकास के लिए आवश्यक है मिल सके . हनुमान जी ने लंका में जा कर समाज सुधर कार्यों के बल पर यह सिद्ध कर दिया कि बहु बल व आर्थिक बल पर किए जाने वाला अत्याचार कुछ समय के लिए प्रभावशाली तो हो सकता हैकिन्तु अमर नहीं बन सकता। जानकी जी से मिलने के बाद तथा राम कथा सुनाने के बाद हनुमान जी लंका वासियों कि दशा में सुधार के लिए अगर्सर हुए तो उनके बड़ते हुए कदमों को रोकने के लिए रावण पुत्र मेघनाथ ने ब्रह्मफांस में बाँध लिया यद्यपि इस बंधन को ज्ञान और वैराग्य के बल पर तोडा भी जा सकता था लेकिन मानवता के विकास के लिए मनुष्य का मर्यादा में रहना अत्यन्त आवश्यक है। इसलिए हनुमान जी ब्रह्मफंस में बाँध गए। रावण के दरबार में पेश हुए। जिसकी चर्चा करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि'' भगवान् शिव पार्वती जी से कहते हैं -
जासु नाम जपी सुन्हो भवानी । भावः बंधन काटें नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बाँध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिः बंधवा ॥
कापी बंधन सुन निश्चर धाये .कौतिक लगि सभां सब आए ॥
दस मुख सभां दिखी कापी जाई । काही न जाई कछु अति प्रभु ताई ॥
अर्थात जीवन में अगर संकल्प शक्ति दृड़ हो तो सामाजिक परिस्थितियों के उत्तर चढाव आपके जीवन पथ पैर बाधक नहीं बन सकते हैं। यह संदेश हनुमान जी ने रावण कि सभा से सम्पुरण मानव जाती को दिया। हनुमान जी रावण कि सभा में सभा कि विशालता तथा सभासदों को देख केर भी भयभीत नहीं है क्यों कि वह जानते कि संसार का हर असंभव काम इश्वर कृपा से सम्भव हो जता है। इसी लिए ईश्वर इच्छा को सर्वोपर मानते हुएहनुमान जी रावण की सभा में निडरता से खड़े हुए हैं। उनसे उनकी निडरता के बारे में जब दशानन ने पूछा तो हनुमान जी ने ईश्वरीय बल कि सामर्थताको इस प्रकार बतलाया :-
सुनु रावण ब्रहमांड निकाया। पाई जासु बल बिरचित माया॥
जाकें बल बिरंची हरि ईसा । पालत सृजत हरत दस सीसा ॥
जा बल सीस धरत सह सासन । अंडकोस समेत गिरी कानन ।
धरई जो बिबिध देह सुरत्राता । तुम्ह से स्थान सिखावनु दाता ॥
हर को दंड कठिन देह भांजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥
खर दूषण त्रिसरा अरू बाली। बधे सकल अतुलित बलशाली॥
हनुमान जी ने इस प्रकार ईश्वरीय बल का वर्णन कर के दशानन और लंका वासियों को मानव जाती पर अत्याचार न करने तथा ईश्वरीय बल को उत्तम मान कर क्रोध और अंहकार का त्याग करें। गोस्वामी जी का यहाँ पर मत है कि कोई भी मानव विवेक और बाहुबल से संसार को तो जीत सकता है परन्तु काल को नहीं। ईश्वरीय इच्छा से चलने वाला काल सम्पूर्ण मानव जाति को उसके शुभ व अशुभ कर्मों का फल अवश्य ही देता है हनुमान जी ने आगे कदम समूचित नारी जाति के सम्मान में उठाया। रावण से अनुरोध किया कि नारी पर अत्याचार करना किसी भी धरम कि मर्यादा नहीं है। नारी समाज में सम्मानीय व आदरणीय शक्ति है । वो जवालामुखी भी है जो किसी अत्याचार को सहन तो कर सकती है लेकिन अगर मोड ले लेतो समाज में भूकम्प भी ला देती है. इसीलिए हनुमान जी दशानन को समूची नारी जाति का सम्मान करने तथा सीता जी को राम को लौटने का संदेश देते हैं .संदेश के माध्यम से पवनपुत्र इतना तक कहते हैं कि अगर सीता जी को नारी स्वाभिमान के तहत भगवान् श्रीराम को वापिस नहीं किया गया तो तेरा निश्चय ही नाश हो जाएगा.
मानवीय विनाश के लिए मानव का क्रोध उसका प्रबल शत्रु है तथा ज्ञान के नाश के लिए अंहकार को प्रबल शत्रु माना गया है,यह दोनों अवगुण मंविये चरित्र में जब जब फली भुत होते हैं.अपने और पराये का अन्तेर समाप्त हो जाने के कारण निश्चय ही नाश हो जाता है. गोस्वामी तुलसीदास जी क्ले अनुसार रावण प्र्बक कामिहोने के साथ साथ क्रोधी और अहंकारी भी है. इसीलिए हनुमान जी का उपदेश रावण कि दशा नहीं सुधर पाटा है,परिणाम स्वरुप हनुमान् जी का अपमान होने के कारण लंका नगरी का नाश तथा भयानक प्रकोप उत्त्पन्न होता है,जिसके कारण सम्पूर्ण असुर जाति का इतिहास है. आगे कि यात्रा में हनुमान जी जानकी जी को प्रणाम कर तथा राम के प्रति विश्वास बनाये रखनेका संदेश देते हैं. सुंदर काण्ड के अंतर्गत गोस्वामी जी ने पत्नी और पति दोनों के कर्तव्यों को बड़े मार्मिक दंग से दर्शाया है. उनका मत है कि मानवीय जीवन में पति और पत्नी दो ऐसे सम्बन्ध हैं जो शरीर तो दो हैं लेकिन उनकी आत्मा एक है. अगर इन दो शरीरों में आदर्शों के प्रति अविश्वास प्राप्त हो जाय तो जीवन कठिनाइयों के तले दब जाता है. अगर विश्वास है तो जीवन में आने वाली बड़ी से बड़ी परेशानी भी उनका बक बांका नहीं कर सकती है. जानकी जी हनुमान जी से आग्रह कर के भगवान् श्री राम के चरणों में अपना प्रेम संदेश प्रेषित करती हुई इन्द्र के पुत्र जयंत को दिए गई दंड कि कथा सुनाने को कहती हैं. जिस से उन्हें अपने कर्तव्यों का आभास हो जाय. तथा अपने बल पर भरोसा भी. हनुमान जी भगवान् श्रीराम का प्रेम संदेश भी सुनाते हुए कहते हैं :-
भगवान् श्री राम का भावः सदैव आदरणीय है वियोग कि इस अवस्था में जितना दुःख आपको को है उस से दुगना आप के पति भगवान् श्री राम को है .इसीलिए हे माता आप धैर्य धारण करें भगवान् श्री राम एक मॉस के अंतर्गत ही आप को बंधन मुक्त कर लेंगे. तथा राम का आस्था और विश्वास का ध्वज आपके तपोबल और संयम के लंका पर लहराने लगेगा .हनुमान जी जब वानर जाति के साथ शुभ संदेश लेकर भगवान् श्री राम से मिलते हैं सीता जी दयनीय स्थिति को सुन कर श्री राम को बड़ा दुःख होता हे और अपने पाटने वर्त धरम का आचरण करते हुए भगवान् श्री राम दुःख प्रकट करते हैं एवं हनुमान जी के कार्य कि प्रशंसा करते हुए अपने को उनका ऋणी मानते हैं जिसका वर्णन गोस्वामी जी इस प्रकार करते हैं :-
सुनु कपितोही समान उपकारी .नहि कोऊ सुर नर मुनि तन धारी
प्रति उपकार करों का तोरा .सन्मुख होई न सकत मन मोरा .. .
अतः इस मत के अनुसार भगवान् श्री राम अपने सेवक हनुमान जी के ऐसे ऋणी हैं जो कभी भार नहीं उतार सकते हैं.इस कार्य के बदले में हनुमंत लाल जी को देने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं हे इ इसलिए वो वचन देते हैं कि में तेरा सदैव रिन्नी रहूँगा जब भी कोई भक्त तेरा स्मरण करेगा इस उपकार के बदले में उसकी बाधाएं दूर करता रहूँगा.हेकपि तुमने जो मेरा उपकार किया हे ऐसा उपकार करने वाला न कोई देवता हे न कोई मानव हे नाकोई ऋषि मुनि हे.गोस्वामी जिआगे कथा को विस्तार देते हुए लंका में कोताहल ,लंका पर अनेक प्रकार के संकट विभीषण जी का बहिष्कार तथा विभीषण जी का अहंकारी रावण कि लात खा कर राम शरण में आने तक कि कथा कहते हे,जो हनुमान जी कि लोंका यात्रा का प्र्भ्जाव था. जिसके परिणाम स्वरुप जीवित रावण के होते हुए भी विभीषण का राजतिलक किया. राम कि कृपा से वानर सेना में अनेक मंगल कार्य हुए भगवान् श्री राम ने शरणागत विभीषण पर अपनी कृपा की समुद्र से मर्यादा अनुसार विनय करने तथा समुद्र पर क्रोध कर के अग्नि बाण से उसे सोखने तक की कथा गोस्वामी जी इस काण्ड के अंतर्गत कहते हैं. जिससे की हनुमान जी द्वारा किए गए सुन्दर कृत जो रावण के विनाश के लिए आवश्यक था. ,का अनोखा वर्णन है तुलसीदास जी निवेदन करते हुए कहते हैं कि इस पावन चरित्र को कहने सुनने से हनुमान जी कि कृपा प्राप्त होती है. तथा सभी प्रकार के संकट राम कृपा से दूर होते हैं. हनुमत लाल ही कल काल के अन्दर साधू संतों पर कृपा करने तथा धरम कि रक्षा करने वाले माने गए हैं .
ज्योतिष अनुसार भी शनि जैसे पाप ग्रेह का प्रभाव हनुमान जी कि कृपा से दूर होता है अतः शनि कि दशा का मारकेश ,शनि कि सादे सती का दुश प्रभाव मांगलिक दोष एवं अन्य अरिष्ट समय में यह कलमल चरित्र भक्तों परअवश्य कृपा करने वाला होता है. इसके पड़ने सुनने से सभी बाधाएं दूर होती हैं ऐसा मेरा मत है और विश्वास भी है.
Comments
kabi main foreign jane ke leyea tarsta tha..par ab mere pass vo position hai ke jab chahu jaha chahu ja sakta hi
jai shri ram