Subject: कन्यायो के विवाहिक बिलब को दूर करता है पाठ जानकी मंगल या पारवती मंगल -- आज घर घर में कन्याओ के विवहा में अरचन की कहनी आम हो गयी है आज दहेज़ की कमी या योग्य वर न मिलने की स्थति में लड़कियो की अवस्था बड़ी हो जाती है तथा माता पिता को दिन रात चिन्ता बनी रहती है |अगर किसी तरह से बात बन जाये तो रिश्ता टूटना सहज या आम बात हो गयी है |इ सभी समस्याओ को माँ भगवती या माँ जानकी जी क्रपा से ही दूर किया जा सकता है |इन की क्रपा से ही विवहिकजीवन में बिलब की बाधा दूर होगी साथ ही साथ विवाहिक जीवन आनन्द दाई होगा इस में कोई संदेह नहीं है |अत साधक को शुक्ल पक्ष की पूरनमा या अष्टमी से निरंतर 11 दिन एक पाठ प्रत दिन के हिसाब से पाठ करना मंगल कारी होता है | इस अनुष्ठान में देवी के चित्र को सिंदूर लगाना तथा कपूर आरती करना न भूले एवं पंच उपचार से देवी का पूजन करना चाहिए |जो सभी कामनायो को पूरण करेगा कोहू न काहू क़र सुख दुःख दाता | निज कृत कर्म भोग फल पाता|| गरल सुधा रिपु करें मिताई ,गोपद सिन्धु अनिल सितलाई . गरुण सुमेर रैन सम ताहि ,राम कृपा कर चितवें जाहि ...
दत्तक पुत्र संसार के हर प्राणी की इच्छा संतान उत्त्पन्न करने तथा उसका पालन पोषण कर बड़े करने की होती है. जो इस सृष्टि के शुभ्रम्भ से ही चली आ रही है. लेकिन इसमें मनुष्य एक ऐसा प्राणी है की वो अपनी संतान को अपनें ही हाथों पाल पोस कर बड़ा करने की प्रबल इच्छा रखता है. हिन्दू दर्शन के अनुसार पुत्र को माता पिता के सुंदर कर्मों का फल माना गया है. जो वंश वृद्धि में सहायक होता है. इसीलिए मनुष्य की प्रबल इच्छा होती है की उस से उत्त्पन्न संतान में एक पुत्र हो. ज्योतिष अनुसार संतान की उत्पत्ति मनुष्य के पूर्व जन्मों का फल है. अर्थात पूर्वजन्मों के कर्मों का फल संतान देने में सहायक सिद्ध होता है जब की मुर्ख जन उसे अपने मैथुनी कर्ण का प्रभाव और फल समझते हैं मैथुनी कर्ण ब्रह्मा की मैथुनी सृष्टि के अनुसार मनुष्य का स्वाभाविक कर्म बन गया है. लेकिन उसका साधन संतान या पुत्र उत्त्पति हो आवश्यक नहीं है. अगर कुंडली का पंचम और पंचमेश पाप प्रभाव में है.तथा संतान का कारक गुरु पीड़ित अवस्था में है तो मनुष्य को संतान का सुख मिलना असंभव होगा लेकिन अगर गुरु ही पीड़ित अवस्था में है और ...
गजेन्द्र के पूर्व जन्म संस्कार लोक शिक्षा के लिए अवतार था ,जिस ने लिया। जन अदृशय हो कर के भी , जन स्दृशय को कौतिक किया ॥ राम नाम ,नाम जिसका सर्व मंगल धाम है । नमन है श्री कृष्ण को ,श्रद्घा में प्रणाम है ॥ भगवान् श्री हरि के दर्शन पा कर ग्रह श्री हरि के समान रूप बना कर सभी देवताओं के देखते देखते देव लोक को चला गया तथा गजेन्द्र भी अपने हाथी की योनी को छोड़ कर श्री हरि के समान रूप वाला होकर वैकुण्ठ धाम को गया। इस रहस्य के पीछे भगवत महा पुराण में गज और ग्रह दोनों के पूर्व जन्म संकार की कथा मिलती है जिस से यह सिद्ध होता है कि सृष्टि का प्रत्येक जीव अपने पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार ही सुख और दुःख भोगता है। सुखदेव जी ने अर्जुन पौत्र परीक्षत को समझाते हुए उनके पूर्व जनम कि कथा का वर्णन इस प्रकार किया कि गज पूर्व जन्म में पांडव कुल में उत्पन्न इन्देर्धुमन नाम का राजा था जो प्रजा पालन में कुशल वैष्णो का चरण अनुरागी था कालांतर में उसने इस आशय से राज पाठ स्त्री और पुत्र सभी का त्याग कर दिया कि वह प्रभु भक्ति कर अपने जीवन को सफल और सुखद बनाएगा फलस्वरूप इन्देर्धुमन जंगल में जा कर प्रभु चरणों...
Comments