jyotish kee prmarkta
हमारे शास्त्रों में ज्योतिष को वेदों की आंख माना गया है वेदों के सवालाख श्लोको में से दश हजर ज्योतिष के है ज्योतिष समय का विज्ञानं है |जिस की प्रमरिकता काल समय है |ज्योतिष समय की एसी गरिना है जो पल पल का अंतर स्थानीय आधार पर करती है |यानि ज्योतिष वह विज्ञानं है जो ये सिद्ध करती है कि प्रक्रति एक पल में एक स्थान पर एक अधुवुध वस्तु पैदा करती है |पल जितनी देरमें मानव पलक झपकत है |हमारे शास्त्रों कें अनुसार इस स्रष्टि में चार हजार प्रकार के मानव पाए जाते है तथा दश हजार प्रकार के व्रक्ष है इस के साथ जलचर पशु पक्षी सभी को मिलालिया जाय तो कुल ८४ प्रकार बनते है जिनका वरण हमारे शास्त्रों में है इन सभी पर ब्रह्मांड में दिख लायी देने बाले ग्रहों का पड़ता है |लेकिन इन सभी में मानब की प्रवर्ती भिन्न है |मनाब इस सभी प्रकार के जीवो में सभी से अधीक जागृत है | इस लिए मानब अपने शारीरक एवं मानसिक सुवधा हेतु अनेक प्रकार के ज्ञान एवं विज्ञानं का सहारा लेता है जिस में ज्योतिष सबसे अधीक महत्व पूरण है क्योकी इस श्रस्ती में समय स्वतंत्र रूप से कार्य करता है तथा सबसे अधीक शक्त्सली साली है जो पल पल में बदलता रहता है तथा समय प्रवर्तन के साथ प्रकति का प्रवर्ती उसी के अनुसार हो जाती है जो किसी जीव को हानी किसी को लाभ पहुचती है |जिस के अधीन प्रतेक जीव को अपना जीवन यापन करना पड़ता है |
लेकिन बड़े दुर्भाग्य की बात है की आधुनिक मानब जो समय के समुद्र में रहता है तथा उसी में उसकी शुभदा निहत है समय के अधीन न रहकर समय को अपना अधीन करना चाहता है जो असंभव है |मानब का जीवन कुछ छड समय के विपरीत सुख की बैलामहसूस कर सकता है लेकिन स्थायी नहीं रह सकता है |
हिन्दू जिस रावन को बुराई का प्रतीक मन कर प्रत वर्ष पुतला देहनकरते है उस के बारे में खा जाता है की वह समय का सवसे बड़ा ज्ञाता था जिसका प्रतीक उस के दश मुख है जो उस को अपने विषय का पंडित सिद्ध करते है एवं उस की बीस भुजा उस के बल का प्रतीक है जो ये सिद्द करती है की उस काल का वह सवसे अधीक बल साली था |इस के साथ साथ उसकी नाभी का अम्रत उस की निरोगता का आयु वर्धि का प्रतीक है |उस के परिवार में मंदोदरी जैसी रानी मेघनाथ जैसा बेटा कुम्भकर्ण जेसे भाई उस की समर्धि का प्रतीक है |
अब हम कालकी बैलाबात करें जो छनछन परिवर्तन करता है जब रावन की कुंडली में शनि की साढ़े साती का गोचर प्रभावी हूआ तथा मारकेश शुक्र की दशा आई तो राम के साथ मारा गाया तथा उस बल साली रावन का नामोनीसा इस दुनियां से मिट गया ये थी समय की प्रुभता जिसे मानब अहिकर के बसिभुत होकर भूल जाता है |
हिटलर जो अपने को सबसे बड़ा आर्य कहता था जिस का नाजी बाद शनि की सघे सती काल में सर्वो उपर था समय बदला दशा बदली साढ़े सती काल के बाद उसी हिटलर जो समय को अपना गुलाम मानता था समय की गुलामी ग्रहण कर खुद ख़ुशी कर मारा गाया |
एक बात मुझे महभारत काल की याद आती है अगर हम महाभारत काल के पंचांग की बात करे तो शनि नीच राशी में मेष में था तथा पक्ष जो पन्द्रह दिन का शुभ मना जाता है तेरह दिन का था |
मेदनी ज्योतिष अनुसार शनि जनता का कारकमाना जाता है जब वह अपनी उच्च राशी तुला में होता है जनता को अनेक लाभ देता है लेकिन जब अपनी नीच राशी में होता है तो शक्ता पक्ष को हानी तथा जनता का नाश करता है |मै पुन अपनी उसी बात पर अता हूँ महाभारत काल जब युध की पूरण तयारी हो चुकी थी |उस समय कर्ण की मुलाकात भगवान् श्रीक्रष्ण से हूई और अबसर पाकर उस ne भगवान् श्रीक्रष्ण से कहा की प्रभु कौरब युध हारजायेगें क्योकि ज्योतिष अनुसार समय शक्ता के पक्ष में नहीं है | शनि नीच राशी में इस से शक्ता पक्ष की हानी होगी मेरा ही नहीं राज्य के बड़े बड़े ज्योतिषियों का मानना|
मेरा भी ये मन् ना है की १९७१ में जब भारत पाकितान का युद्ध हुआ तब शनि अपनी नीच राशी मेष में था जो जनता के नाश का कारण बना ये समय का परिवर्तन है जिस की गरना ज्योतिष के अनुसार करी जाती है
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कोहू न काहू क़र सुख दुःख दाता |निज कृत कर्म भोग फल पाता||
गरल सुधा रिपु करें मिताई ,गोपद सिन्धु अनिल सितलाई .
गरुण सुमेर रैन सम ताहि ,राम कृपा कर चितवें जाहि ..
Pt.Shriniwas Sharma
Mo:9811352415
http:// vedicastrologyandvaastu. blogspot.com/
www.aryanastrology.com
Professional charges :Rs500/patri,prashan Rs 250
central bank a/c: SB no:CBIN0280314/3066728613
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