narkasur chaudash ka mahtw
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नरका सुर चौदश
आज धनतेरस है इस दिन समुद्र मंथन से चौदेवा रत्न अमृत कलश लेकर धन्वन्तरी जी प्रकट हूए थे |देव राज धन्वन्तरी जी को देव का वैध भी कहाँ गाया जाता है आज का दिन निरोगता के लिए बिशेष माना जाता है लक्ष्मी के के आशीवाद से ही सुख समर्धि निरोगता सभी पधार्थ साधक को मिलती है इसी लिए धनतेरस से ही दिवाली पूजन दिवाली उत्सव माना जाता है अत दीवाली उत्सव धनतेरस से दिवाली तक विशेष रूप से माना जाता है |
नरकासुर चौदश या छोटी दिवाली -----धनतेरस के अगले दिन नरकासुर चोद्श का छोटी दिवाली कहाँ जाता है नरकासुर चोद्श के वारे में पौराणिक मत है की भगवन श्री क्रष्ण नेअसुर भामासुरका वध कर उसके कारागार से १६०० ० एवम१०० ब्राह्मण कनिययों को मुक्त कराया था |जिन्होंने भगवान् श्री क्रष्ण को अपना पति माना था |इस प्रकार भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ विवाह हूए |इन दिन बह्मसुर के नरक से ब्राह्मण कन्यायों के मुक्ति के कारण इसे नरकासुर चोद्श कहा जाता है |
कथा -श्री भगवत पुराणके अनुसार देव राज इंद्र नेभगवानश्री क्रष्ण को द्वारिका में जाकर भामासुर के अत्याचार के बारें में सूचना दी |अगर हम भामासुर का संधि विच्छेद करें तो बनता है भौम +असुर संस्क्रत में भौम सरीर को कहते है |असुर यानि शास्त्रू को कहते है यानि जो सरीर का शास्त्रू है वह भामासुर है तथा सरीर का सबसें बड़ा शास्त्रू काम अर्थात वासनाओं को कहाँ जाता है |काम का नास ज्ञान के द्वरा होता है इसी लिए नरकासुर चौदश के दिन गन्दी जगह पनपने बाले अनधिकार को दूर करना होता है अत गन्दी जगह में नरका सुर चोद्श कें दिन दीप दान करना चाहिए यानि अंधकार में जीवन को ज्ञान के द्वरा गति देना नरका सुर चोद्श का मुख्य उदेश्य है |
नरका सुर चोद्श कें दिन लक्ष्मी पूजन के साथ साथ सभी जगह दीप दान करना चाहिए जिस से अंधकार में रह रहे जीवन को ज्ञान में प्रकाश मिलें |नरका सुर चौदश का महत्व दीवाली के सामान ही है |दीवाली ज्ञान एवं कल्याण पर्व है तो नरकासुर चौदश आध्यात्मिक पर्व है |इसी लिए इस दिन को भगवान् श्री क्रष्ण की विधवत पूजा कर आनंद उत्सव मानना चाहिए |
संसार के लोग जब भगवान् श्री क्रष्ण के ग्रहस्थी जीवन के बारें में बात करते है तो लोग इस बात पर उप हास करते है कि भगवानश्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सो आठरानियाँ थी |हिन्दू स्वम् ही ये चर्चा करता फिरता है कि हमारें भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ आठरानियाँ थी |लेकिन लोग ये सभी प्रस्थति और मरियादा भूल जाते है की श्री क्रष्ण नेजगत हित में क्या कदम उठाया |
सवसे बड़ें अश्रयकी की बात है लोग श्री क्रष्ण की लीलयों की वास्तविकता जाने काशी नरेश पुण्डरीक की तरह जिस नेस्वरूप आदिफर्जी भेष भूसा आदि से अपने को श्री क्रष्ण घोषित कर दिया था तथा संसार के स्वार्थी लोग श्री क्रष्ण के भात ही उस की पूजा करने लगे थे |अंत में उसका आतंक का अंत श्री कर्षण के द्वरा ही हूआ |संसार के स्वर्थी लोग कसी चीज की वस्त्वकता बीना जानें उस का अबलोकन करने लागतें है और बाद में सिरधून धून कर पक्षताते है है तथा अपने भाग्य .कर्म कालयानि समय को वर्था दोष लागतें है
भगवान् श्री क्रष्ण नेनरकासुर चौदस कें दिन ब्रह्मण कनिययो का उद्दार किया तथा जगत को संदेश दिया की हम भी कल किसी कमजोर गरीब असहाय का सहारा बन कर सही मार्ग दर्शन करें सभी जगह यानि जहाँ वर्ष में किसी दिन ज्ञान रुपी प्रकाश नहीं पंहुचा ज्ञान रुपी दीप दान करें एवं अपने जीवनके शास्त्रू काम क्रोध मध् लोभ सभी पर ज्ञान कें द्वरा नियन्त्र करें |अगर इस संसार में देखा जाएँ तो मानबमन के वसीभूत स्वाम ही अपना शास्त्रू तथा स्वम् ही अपना मित्र है संसार में मित्र तभी बनेगे जब मानबस्वाम अपना मित्र बनें तभी वह संसार में पाप कर्म करने से बचसकता है |तथा उस कें अंदर लोक कल्याण की भावना उस कें जीवन को परम आनन्द दाई बनती है |
आप सभी साधकों को दीपावली की ढेर सारी शुभ कामनाएं
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नरकासुर चौदश या छोटी दिवाली -----धनतेरस के अगले दिन नरकासुर चोद्श का छोटी दिवाली कहाँ जाता है नरकासुर चोद्श के वारे में पौराणिक मत है की भगवन श्री क्रष्ण नेअसुर भामासुरका वध कर उसके कारागार से १६०० ० एवम१०० ब्राह्मण कनिययों को मुक्त कराया था |जिन्होंने भगवान् श्री क्रष्ण को अपना पति माना था |इस प्रकार भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ विवाह हूए |इन दिन बह्मसुर के नरक से ब्राह्मण कन्यायों के मुक्ति के कारण इसे नरकासुर चोद्श कहा जाता है |
कथा -श्री भगवत पुराणके अनुसार देव राज इंद्र नेभगवानश्री क्रष्ण को द्वारिका में जाकर भामासुर के अत्याचार के बारें में सूचना दी |अगर हम भामासुर का संधि विच्छेद करें तो बनता है भौम +असुर संस्क्रत में भौम सरीर को कहते है |असुर यानि शास्त्रू को कहते है यानि जो सरीर का शास्त्रू है वह भामासुर है तथा सरीर का सबसें बड़ा शास्त्रू काम अर्थात वासनाओं को कहाँ जाता है |काम का नास ज्ञान के द्वरा होता है इसी लिए नरकासुर चौदश के दिन गन्दी जगह पनपने बाले अनधिकार को दूर करना होता है अत गन्दी जगह में नरका सुर चोद्श कें दिन दीप दान करना चाहिए यानि अंधकार में जीवन को ज्ञान के द्वरा गति देना नरका सुर चोद्श का मुख्य उदेश्य है |
नरका सुर चोद्श कें दिन लक्ष्मी पूजन के साथ साथ सभी जगह दीप दान करना चाहिए जिस से अंधकार में रह रहे जीवन को ज्ञान में प्रकाश मिलें |नरका सुर चौदश का महत्व दीवाली के सामान ही है |दीवाली ज्ञान एवं कल्याण पर्व है तो नरकासुर चौदश आध्यात्मिक पर्व है |इसी लिए इस दिन को भगवान् श्री क्रष्ण की विधवत पूजा कर आनंद उत्सव मानना चाहिए |
संसार के लोग जब भगवान् श्री क्रष्ण के ग्रहस्थी जीवन के बारें में बात करते है तो लोग इस बात पर उप हास करते है कि भगवानश्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सो आठरानियाँ थी |हिन्दू स्वम् ही ये चर्चा करता फिरता है कि हमारें भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ आठरानियाँ थी |लेकिन लोग ये सभी प्रस्थति और मरियादा भूल जाते है की श्री क्रष्ण नेजगत हित में क्या कदम उठाया |
सवसे बड़ें अश्रयकी की बात है लोग श्री क्रष्ण की लीलयों की वास्तविकता जाने काशी नरेश पुण्डरीक की तरह जिस नेस्वरूप आदिफर्जी भेष भूसा आदि से अपने को श्री क्रष्ण घोषित कर दिया था तथा संसार के स्वार्थी लोग श्री क्रष्ण के भात ही उस की पूजा करने लगे थे |अंत में उसका आतंक का अंत श्री कर्षण के द्वरा ही हूआ |संसार के स्वर्थी लोग कसी चीज की वस्त्वकता बीना जानें उस का अबलोकन करने लागतें है और बाद में सिरधून धून कर पक्षताते है है तथा अपने भाग्य .कर्म कालयानि समय को वर्था दोष लागतें है
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नरकासुर चौदश या छोटी दिवाली -----धनतेरस के अगले दिन नरकासुर चोद्श का छोटी दिवाली कहाँ जाता है नरकासुर चोद्श के वारे में पौराणिक मत है की भगवन श्री क्रष्ण नेअसुर भामासुरका वध कर उसके कारागार से १६०० ० एवम१०० ब्राह्मण कनिययों को मुक्त कराया था |जिन्होंने भगवान् श्री क्रष्ण को अपना पति माना था |इस प्रकार भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ विवाह हूए |इन दिन बह्मसुर के नरक से ब्राह्मण कन्यायों के मुक्ति के कारण इसे नरकासुर चोद्श कहा जाता है |
कथा -श्री भगवत पुराणके अनुसार देव राज इंद्र नेभगवानश्री क्रष्ण को द्वारिका में जाकर भामासुर के अत्याचार के बारें में सूचना दी |अगर हम भामासुर का संधि विच्छेद करें तो बनता है भौम +असुर संस्क्रत में भौम सरीर को कहते है |असुर यानि शास्त्रू को कहते है यानि जो सरीर का शास्त्रू है वह भामासुर है तथा सरीर का सबसें बड़ा शास्त्रू काम अर्थात वासनाओं को कहाँ जाता है |काम का नास ज्ञान के द्वरा होता है इसी लिए नरकासुर चौदश के दिन गन्दी जगह पनपने बाले अनधिकार को दूर करना होता है अत गन्दी जगह में नरका सुर चोद्श कें दिन दीप दान करना चाहिए यानि अंधकार में जीवन को ज्ञान के द्वरा गति देना नरका सुर चोद्श का मुख्य उदेश्य है |
नरका सुर चोद्श कें दिन लक्ष्मी पूजन के साथ साथ सभी जगह दीप दान करना चाहिए जिस से अंधकार में रह रहे जीवन को ज्ञान में प्रकाश मिलें |नरका सुर चौदश का महत्व दीवाली के सामान ही है |दीवाली ज्ञान एवं कल्याण पर्व है तो नरकासुर चौदश आध्यात्मिक पर्व है |इसी लिए इस दिन को भगवान् श्री क्रष्ण की विधवत पूजा कर आनंद उत्सव मानना चाहिए |
संसार के लोग जब भगवान् श्री क्रष्ण के ग्रहस्थी जीवन के बारें में बात करते है तो लोग इस बात पर उप हास करते है कि भगवानश्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सो आठरानियाँ थी |हिन्दू स्वम् ही ये चर्चा करता फिरता है कि हमारें भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ आठरानियाँ थी |लेकिन लोग ये सभी प्रस्थति और मरियादा भूल जाते है की श्री क्रष्ण नेजगत हित में क्या कदम उठाया |
सवसे बड़ें अश्रयकी की बात है लोग श्री क्रष्ण की लीलयों की वास्तविकता जाने काशी नरेश पुण्डरीक की तरह जिस नेस्वरूप आदिफर्जी भेष भूसा आदि से अपने को श्री क्रष्ण घोषित कर दिया था तथा संसार के स्वार्थी लोग श्री क्रष्ण के भात ही उस की पूजा करने लगे थे |अंत में उसका आतंक का अंत श्री कर्षण के द्वरा ही हूआ |संसार के स्वर्थी लोग कसी चीज की वस्त्वकता बीना जानें उस का अबलोकन करने लागतें है और बाद में सिरधून धून कर पक्षताते है है तथा अपने भाग्य .कर्म कालयानि समय को वर्था दोष लागतें है
भगवान् श्री क्रष्ण नेनरकासुर चौदस कें दिन ब्रह्मण कनिययो का उद्दार किया तथा जगत को संदेश दिया की हम भी कल किसी कमजोर गरीब असहाय का सहारा बन कर सही मार्ग दर्शन करें सभी जगह यानि जहाँ वर्ष में किसी दिन ज्ञान रुपी प्रकाश नहीं पंहुचा ज्ञान रुपी दीप दान करें एवं अपने जीवनके शास्त्रू काम क्रोध मध् लोभ सभी पर ज्ञान कें द्वरा नियन्त्र करें |अगर इस संसार में देखा जाएँ तो मानबमन के वसीभूत स्वाम ही अपना शास्त्रू तथा स्वम् ही अपना मित्र है संसार में मित्र तभी बनेगे जब मानबस्वाम अपना मित्र बनें तभी वह संसार में पाप कर्म करने से बचसकता है |तथा उस कें अंदर लोक कल्याण की भावना उस कें जीवन को परम आनन्द दाई बनती है |
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नरकासुर चौदश या छोटी दिवाली -----धनतेरस के अगले दिन नरकासुर चोद्श का छोटी दिवाली कहाँ जाता है नरकासुर चोद्श के वारे में पौराणिक मत है की भगवन श्री क्रष्ण नेअसुर भामासुरका वध कर उसके कारागार से १६०० ० एवम१०० ब्राह्मण कनिययों को मुक्त कराया था |जिन्होंने भगवान् श्री क्रष्ण को अपना पति माना था |इस प्रकार भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ विवाह हूए |इन दिन बह्मसुर के नरक से ब्राह्मण कन्यायों के मुक्ति के कारण इसे नरकासुर चोद्श कहा जाता है |
कथा -श्री भगवत पुराणके अनुसार देव राज इंद्र नेभगवानश्री क्रष्ण को द्वारिका में जाकर भामासुर के अत्याचार के बारें में सूचना दी |अगर हम भामासुर का संधि विच्छेद करें तो बनता है भौम +असुर संस्क्रत में भौम सरीर को कहते है |असुर यानि शास्त्रू को कहते है यानि जो सरीर का शास्त्रू है वह भामासुर है तथा सरीर का सबसें बड़ा शास्त्रू काम अर्थात वासनाओं को कहाँ जाता है |काम का नास ज्ञान के द्वरा होता है इसी लिए नरकासुर चौदश के दिन गन्दी जगह पनपने बाले अनधिकार को दूर करना होता है अत गन्दी जगह में नरका सुर चोद्श कें दिन दीप दान करना चाहिए यानि अंधकार में जीवन को ज्ञान के द्वरा गति देना नरका सुर चोद्श का मुख्य उदेश्य है |
नरका सुर चोद्श कें दिन लक्ष्मी पूजन के साथ साथ सभी जगह दीप दान करना चाहिए जिस से अंधकार में रह रहे जीवन को ज्ञान में प्रकाश मिलें |नरका सुर चौदश का महत्व दीवाली के सामान ही है |दीवाली ज्ञान एवं कल्याण पर्व है तो नरकासुर चौदश आध्यात्मिक पर्व है |इसी लिए इस दिन को भगवान् श्री क्रष्ण की विधवत पूजा कर आनंद उत्सव मानना चाहिए |
संसार के लोग जब भगवान् श्री क्रष्ण के ग्रहस्थी जीवन के बारें में बात करते है तो लोग इस बात पर उप हास करते है कि भगवानश्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सो आठरानियाँ थी |हिन्दू स्वम् ही ये चर्चा करता फिरता है कि हमारें भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ आठरानियाँ थी |लेकिन लोग ये सभी प्रस्थति और मरियादा भूल जाते है की श्री क्रष्ण नेजगत हित में क्या कदम उठाया |
सवसे बड़ें अश्रयकी की बात है लोग श्री क्रष्ण की लीलयों की वास्तविकता जाने काशी नरेश पुण्डरीक की तरह जिस नेस्वरूप आदिफर्जी भेष भूसा आदि से अपने को श्री क्रष्ण घोषित कर दिया था तथा संसार के स्वार्थी लोग श्री क्रष्ण के भात ही उस की पूजा करने लगे थे |अंत में उसका आतंक का अंत श्री कर्षण के द्वरा ही हूआ |संसार के स्वर्थी लोग कसी चीज की वस्त्वकता बीना जानें उस का अबलोकन करने लागतें है और बाद में सिरधून धून कर पक्षताते है है तथा अपने भाग्य .कर्म कालयानि समय को वर्था दोष लागतें है
भगवान् श्री क्रष्ण नेनरकासुर चौदस कें दिन ब्रह्मण कनिययो का उद्दार किया तथा जगत को संदेश दिया की हम भी कल किसी कमजोर गरीब असहाय का सहारा बन कर सही मार्ग दर्शन करें सभी जगह यानि जहाँ वर्ष में किसी दिन ज्ञान रुपी प्रकाश नहीं पंहुचा ज्ञान रुपी दीप दान करें एवं अपने जीवनके शास्त्रू काम क्रोध मध् लोभ सभी पर ज्ञान कें द्वरा नियन्त्र करें |अगर इस संसार में देखा जाएँ तो मानबमन के वसीभूत स्वाम ही अपना शास्त्रू तथा स्वम् ही अपना मित्र है संसार में मित्र तभी बनेगे जब मानबस्वाम अपना मित्र बनें तभी वह संसार में पाप कर्म करने से बचसकता है |तथा उस कें अंदर लोक कल्याण की भावना उस कें जीवन को परम आनन्द दाई बनती है |
आप सभी साधकों को दीपावली की ढेर सारी शुभ कामनाएं
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नरका सुर चौदश
आज धनतेरस है इस दिन समुद्र मंथन से चौदेवा रत्न अमृत कलश लेकर धन्वन्तरी जी प्रकट हूए थे |देव राज धन्वन्तरी जी को देव का वैध भी कहाँ गाया जाता है आज का दिन निरोगता के लिए बिशेष माना जाता है लक्ष्मी के के आशीवाद से ही सुख समर्धि निरोगता सभी पधार्थ साधक को मिलती है इसी लिए धनतेरस से ही दिवाली पूजन दिवाली उत्सव माना जाता है अत दीवाली उत्सव धनतेरस से दिवाली तक विशेष रूप से माना जाता है |
नरकासुर चौदश या छोटी दिवाली -----धनतेरस के अगले दिन नरकासुर चोद्श का छोटी दिवाली कहाँ जाता है नरकासुर चोद्श के वारे में पौराणिक मत है की भगवन श्री क्रष्ण नेअसुर भामासुरका वध कर उसके कारागार से १६०० ० एवम१०० ब्राह्मण कनिययों को मुक्त कराया था |जिन्होंने भगवान् श्री क्रष्ण को अपना पति माना था |इस प्रकार भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ विवाह हूए |इन दिन बह्मसुर के नरक से ब्राह्मण कन्यायों के मुक्ति के कारण इसे नरकासुर चोद्श कहा जाता है |
कथा -श्री भगवत पुराणके अनुसार देव राज इंद्र नेभगवानश्री क्रष्ण को द्वारिका में जाकर भामासुर के अत्याचार के बारें में सूचना दी |अगर हम भामासुर का संधि विच्छेद करें तो बनता है भौम +असुर संस्क्रत में भौम सरीर को कहते है |असुर यानि शास्त्रू को कहते है यानि जो सरीर का शास्त्रू है वह भामासुर है तथा सरीर का सबसें बड़ा शास्त्रू काम अर्थात वासनाओं को कहाँ जाता है |काम का नास ज्ञान के द्वरा होता है इसी लिए नरकासुर चौदश के दिन गन्दी जगह पनपने बाले अनधिकार को दूर करना होता है अत गन्दी जगह में नरका सुर चोद्श कें दिन दीप दान करना चाहिए यानि अंधकार में जीवन को ज्ञान के द्वरा गति देना नरका सुर चोद्श का मुख्य उदेश्य है |
नरका सुर चोद्श कें दिन लक्ष्मी पूजन के साथ साथ सभी जगह दीप दान करना चाहिए जिस से अंधकार में रह रहे जीवन को ज्ञान में प्रकाश मिलें |नरका सुर चौदश का महत्व दीवाली के सामान ही है |दीवाली ज्ञान एवं कल्याण पर्व है तो नरकासुर चौदश आध्यात्मिक पर्व है |इसी लिए इस दिन को भगवान् श्री क्रष्ण की विधवत पूजा कर आनंद उत्सव मानना चाहिए |
संसार के लोग जब भगवान् श्री क्रष्ण के ग्रहस्थी जीवन के बारें में बात करते है तो लोग इस बात पर उप हास करते है कि भगवानश्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सो आठरानियाँ थी |हिन्दू स्वम् ही ये चर्चा करता फिरता है कि हमारें भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ आठरानियाँ थी |लेकिन लोग ये सभी प्रस्थति और मरियादा भूल जाते है की श्री क्रष्ण नेजगत हित में क्या कदम उठाया |
सवसे बड़ें अश्रयकी की बात है लोग श्री क्रष्ण की लीलयों की वास्तविकता जाने काशी नरेश पुण्डरीक की तरह जिस नेस्वरूप आदिफर्जी भेष भूसा आदि से अपने को श्री क्रष्ण घोषित कर दिया था तथा संसार के स्वार्थी लोग श्री क्रष्ण के भात ही उस की पूजा करने लगे थे |अंत में उसका आतंक का अंत श्री कर्षण के द्वरा ही हूआ |संसार के स्वर्थी लोग कसी चीज की वस्त्वकता बीना जानें उस का अबलोकन करने लागतें है और बाद में सिरधून धून कर पक्षताते है है तथा अपने भाग्य .कर्म कालयानि समय को वर्था दोष लागतें है
भगवान् श्री क्रष्ण नेनरकासुर चौदस कें दिन ब्रह्मण कनिययो का उद्दार किया तथा जगत को संदेश दिया की हम भी कल किसी कमजोर गरीब असहाय का सहारा बन कर सही मार्ग दर्शन करें सभी जगह यानि जहाँ वर्ष में किसी दिन ज्ञान रुपी प्रकाश नहीं पंहुचा ज्ञान रुपी दीप दान करें एवं अपने जीवनके शास्त्रू काम क्रोध मध् लोभ सभी पर ज्ञान कें द्वरा नियन्त्र करें |अगर इस संसार में देखा जाएँ तो मानबमन के वसीभूत स्वाम ही अपना शास्त्रू तथा स्वम् ही अपना मित्र है संसार में मित्र तभी बनेगे जब मानबस्वाम अपना मित्र बनें तभी वह संसार में पाप कर्म करने से बचसकता है |तथा उस कें अंदर लोक कल्याण की भावना उस कें जीवन को परम आनन्द दाई बनती है |
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आज धनतेरस है इस दिन समुद्र मंथन से चौदेवा रत्न अमृत कलश लेकर धन्वन्तरी जी प्रकट हूए थे |देव राज धन्वन्तरी जी को देव का वैध भी कहाँ गाया जाता है आज का दिन निरोगता के लिए बिशेष माना जाता है लक्ष्मी के के आशीवाद से ही सुख समर्धि निरोगता सभी पधार्थ साधक को मिलती है इसी लिए धनतेरस से ही दिवाली पूजन दिवाली उत्सव माना जाता है अत दीवाली उत्सव धनतेरस से दिवाली तक विशेष रूप से माना जाता है |
नरकासुर चौदश या छोटी दिवाली -----धनतेरस के अगले दिन नरकासुर चोद्श का छोटी दिवाली कहाँ जाता है नरकासुर चोद्श के वारे में पौराणिक मत है की भगवन श्री क्रष्ण नेअसुर भामासुरका वध कर उसके कारागार से १६०० ० एवम१०० ब्राह्मण कनिययों को मुक्त कराया था |जिन्होंने भगवान् श्री क्रष्ण को अपना पति माना था |इस प्रकार भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ विवाह हूए |इन दिन बह्मसुर के नरक से ब्राह्मण कन्यायों के मुक्ति के कारण इसे नरकासुर चोद्श कहा जाता है |
कथा -श्री भगवत पुराणके अनुसार देव राज इंद्र नेभगवानश्री क्रष्ण को द्वारिका में जाकर भामासुर के अत्याचार के बारें में सूचना दी |अगर हम भामासुर का संधि विच्छेद करें तो बनता है भौम +असुर संस्क्रत में भौम सरीर को कहते है |असुर यानि शास्त्रू को कहते है यानि जो सरीर का शास्त्रू है वह भामासुर है तथा सरीर का सबसें बड़ा शास्त्रू काम अर्थात वासनाओं को कहाँ जाता है |काम का नास ज्ञान के द्वरा होता है इसी लिए नरकासुर चौदश के दिन गन्दी जगह पनपने बाले अनधिकार को दूर करना होता है अत गन्दी जगह में नरका सुर चोद्श कें दिन दीप दान करना चाहिए यानि अंधकार में जीवन को ज्ञान के द्वरा गति देना नरका सुर चोद्श का मुख्य उदेश्य है |
नरका सुर चोद्श कें दिन लक्ष्मी पूजन के साथ साथ सभी जगह दीप दान करना चाहिए जिस से अंधकार में रह रहे जीवन को ज्ञान में प्रकाश मिलें |नरका सुर चौदश का महत्व दीवाली के सामान ही है |दीवाली ज्ञान एवं कल्याण पर्व है तो नरकासुर चौदश आध्यात्मिक पर्व है |इसी लिए इस दिन को भगवान् श्री क्रष्ण की विधवत पूजा कर आनंद उत्सव मानना चाहिए |
संसार के लोग जब भगवान् श्री क्रष्ण के ग्रहस्थी जीवन के बारें में बात करते है तो लोग इस बात पर उप हास करते है कि भगवानश्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सो आठरानियाँ थी |हिन्दू स्वम् ही ये चर्चा करता फिरता है कि हमारें भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ आठरानियाँ थी |लेकिन लोग ये सभी प्रस्थति और मरियादा भूल जाते है की श्री क्रष्ण नेजगत हित में क्या कदम उठाया |
सवसे बड़ें अश्रयकी की बात है लोग श्री क्रष्ण की लीलयों की वास्तविकता जाने काशी नरेश पुण्डरीक की तरह जिस नेस्वरूप आदिफर्जी भेष भूसा आदि से अपने को श्री क्रष्ण घोषित कर दिया था तथा संसार के स्वार्थी लोग श्री क्रष्ण के भात ही उस की पूजा करने लगे थे |अंत में उसका आतंक का अंत श्री कर्षण के द्वरा ही हूआ |संसार के स्वर्थी लोग कसी चीज की वस्त्वकता बीना जानें उस का अबलोकन करने लागतें है और बाद में सिरधून धून कर पक्षताते है है तथा अपने भाग्य .कर्म कालयानि समय को वर्था दोष लागतें है
भगवान् श्री क्रष्ण नेनरकासुर चौदस कें दिन ब्रह्मण कनिययो का उद्दार किया तथा जगत को संदेश दिया की हम भी कल किसी कमजोर गरीब असहाय का सहारा बन कर सही मार्ग दर्शन करें सभी जगह यानि जहाँ वर्ष में किसी दिन ज्ञान रुपी प्रकाश नहीं पंहुचा ज्ञान रुपी दीप दान करें एवं अपने जीवनके शास्त्रू काम क्रोध मध् लोभ सभी पर ज्ञान कें द्वरा नियन्त्र करें |अगर इस संसार में देखा जाएँ तो मानबमन के वसीभूत स्वाम ही अपना शास्त्रू तथा स्वम् ही अपना मित्र है संसार में मित्र तभी बनेगे जब मानबस्वाम अपना मित्र बनें तभी वह संसार में पाप कर्म करने से बचसकता है |तथा उस कें अंदर लोक कल्याण की भावना उस कें जीवन को परम आनन्द दाई बनती है |
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आज धनतेरस है इस दिन समुद्र मंथन से चौदेवा रत्न अमृत कलश लेकर धन्वन्तरी जी प्रकट हूए थे |देव राज धन्वन्तरी जी को देव का वैध भी कहाँ गाया जाता है आज का दिन निरोगता के लिए बिशेष माना जाता है लक्ष्मी के के आशीवाद से ही सुख समर्धि निरोगता सभी पधार्थ साधक को मिलती है इसी लिए धनतेरस से ही दिवाली पूजन दिवाली उत्सव माना जाता है अत दीवाली उत्सव धनतेरस से दिवाली तक विशेष रूप से माना जाता है |
नरकासुर चौदश या छोटी दिवाली -----धनतेरस के अगले दिन नरकासुर चोद्श का छोटी दिवाली कहाँ जाता है नरकासुर चोद्श के वारे में पौराणिक मत है की भगवन श्री क्रष्ण नेअसुर भामासुरका वध कर उसके कारागार से १६०० ० एवम१०० ब्राह्मण कनिययों को मुक्त कराया था |जिन्होंने भगवान् श्री क्रष्ण को अपना पति माना था |इस प्रकार भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ विवाह हूए |इन दिन बह्मसुर के नरक से ब्राह्मण कन्यायों के मुक्ति के कारण इसे नरकासुर चोद्श कहा जाता है |
कथा -श्री भगवत पुराणके अनुसार देव राज इंद्र नेभगवानश्री क्रष्ण को द्वारिका में जाकर भामासुर के अत्याचार के बारें में सूचना दी |अगर हम भामासुर का संधि विच्छेद करें तो बनता है भौम +असुर संस्क्रत में भौम सरीर को कहते है |असुर यानि शास्त्रू को कहते है यानि जो सरीर का शास्त्रू है वह भामासुर है तथा सरीर का सबसें बड़ा शास्त्रू काम अर्थात वासनाओं को कहाँ जाता है |काम का नास ज्ञान के द्वरा होता है इसी लिए नरकासुर चौदश के दिन गन्दी जगह पनपने बाले अनधिकार को दूर करना होता है अत गन्दी जगह में नरका सुर चोद्श कें दिन दीप दान करना चाहिए यानि अंधकार में जीवन को ज्ञान के द्वरा गति देना नरका सुर चोद्श का मुख्य उदेश्य है |
नरका सुर चोद्श कें दिन लक्ष्मी पूजन के साथ साथ सभी जगह दीप दान करना चाहिए जिस से अंधकार में रह रहे जीवन को ज्ञान में प्रकाश मिलें |नरका सुर चौदश का महत्व दीवाली के सामान ही है |दीवाली ज्ञान एवं कल्याण पर्व है तो नरकासुर चौदश आध्यात्मिक पर्व है |इसी लिए इस दिन को भगवान् श्री क्रष्ण की विधवत पूजा कर आनंद उत्सव मानना चाहिए |
संसार के लोग जब भगवान् श्री क्रष्ण के ग्रहस्थी जीवन के बारें में बात करते है तो लोग इस बात पर उप हास करते है कि भगवानश्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सो आठरानियाँ थी |हिन्दू स्वम् ही ये चर्चा करता फिरता है कि हमारें भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ आठरानियाँ थी |लेकिन लोग ये सभी प्रस्थति और मरियादा भूल जाते है की श्री क्रष्ण नेजगत हित में क्या कदम उठाया |
सवसे बड़ें अश्रयकी की बात है लोग श्री क्रष्ण की लीलयों की वास्तविकता जाने काशी नरेश पुण्डरीक की तरह जिस नेस्वरूप आदिफर्जी भेष भूसा आदि से अपने को श्री क्रष्ण घोषित कर दिया था तथा संसार के स्वार्थी लोग श्री क्रष्ण के भात ही उस की पूजा करने लगे थे |अंत में उसका आतंक का अंत श्री कर्षण के द्वरा ही हूआ |संसार के स्वर्थी लोग कसी चीज की वस्त्वकता बीना जानें उस का अबलोकन करने लागतें है और बाद में सिरधून धून कर पक्षताते है है तथा अपने भाग्य .कर्म कालयानि समय को वर्था दोष लागतें है
भगवान् श्री क्रष्ण नेनरकासुर चौदस कें दिन ब्रह्मण कनिययो का उद्दार किया तथा जगत को संदेश दिया की हम भी कल किसी कमजोर गरीब असहाय का सहारा बन कर सही मार्ग दर्शन करें सभी जगह यानि जहाँ वर्ष में किसी दिन ज्ञान रुपी प्रकाश नहीं पंहुचा ज्ञान रुपी दीप दान करें एवं अपने जीवनके शास्त्रू काम क्रोध मध् लोभ सभी पर ज्ञान कें द्वरा नियन्त्र करें |अगर इस संसार में देखा जाएँ तो मानबमन के वसीभूत स्वाम ही अपना शास्त्रू तथा स्वम् ही अपना मित्र है संसार में मित्र तभी बनेगे जब मानबस्वाम अपना मित्र बनें तभी वह संसार में पाप कर्म करने से बचसकता है |तथा उस कें अंदर लोक कल्याण की भावना उस कें जीवन को परम आनन्द दाई बनती है |
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नरका सुर चौदश
आज धनतेरस है इस दिन समुद्र मंथन से चौदेवा रत्न अमृत कलश लेकर धन्वन्तरी जी प्रकट हूए थे |देव राज धन्वन्तरी जी को देव का वैध भी कहाँ गाया जाता है आज का दिन निरोगता के लिए बिशेष माना जाता है लक्ष्मी के के आशीवाद से ही सुख समर्धि निरोगता सभी पधार्थ साधक को मिलती है इसी लिए धनतेरस से ही दिवाली पूजन दिवाली उत्सव माना जाता है अत दीवाली उत्सव धनतेरस से दिवाली तक विशेष रूप से माना जाता है |
नरकासुर चौदश या छोटी दिवाली -----धनतेरस के अगले दिन नरकासुर चोद्श का छोटी दिवाली कहाँ जाता है नरकासुर चोद्श के वारे में पौराणिक मत है की भगवन श्री क्रष्ण नेअसुर भामासुरका वध कर उसके कारागार से १६०० ० एवम१०० ब्राह्मण कनिययों को मुक्त कराया था |जिन्होंने भगवान् श्री क्रष्ण को अपना पति माना था |इस प्रकार भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ विवाह हूए |इन दिन बह्मसुर के नरक से ब्राह्मण कन्यायों के मुक्ति के कारण इसे नरकासुर चोद्श कहा जाता है |
कथा -श्री भगवत पुराणके अनुसार देव राज इंद्र नेभगवानश्री क्रष्ण को द्वारिका में जाकर भामासुर के अत्याचार के बारें में सूचना दी |अगर हम भामासुर का संधि विच्छेद करें तो बनता है भौम +असुर संस्क्रत में भौम सरीर को कहते है |असुर यानि शास्त्रू को कहते है यानि जो सरीर का शास्त्रू है वह भामासुर है तथा सरीर का सबसें बड़ा शास्त्रू काम अर्थात वासनाओं को कहाँ जाता है |काम का नास ज्ञान के द्वरा होता है इसी लिए नरकासुर चौदश के दिन गन्दी जगह पनपने बाले अनधिकार को दूर करना होता है अत गन्दी जगह में नरका सुर चोद्श कें दिन दीप दान करना चाहिए यानि अंधकार में जीवन को ज्ञान के द्वरा गति देना नरका सुर चोद्श का मुख्य उदेश्य है |
नरका सुर चोद्श कें दिन लक्ष्मी पूजन के साथ साथ सभी जगह दीप दान करना चाहिए जिस से अंधकार में रह रहे जीवन को ज्ञान में प्रकाश मिलें |नरका सुर चौदश का महत्व दीवाली के सामान ही है |दीवाली ज्ञान एवं कल्याण पर्व है तो नरकासुर चौदश आध्यात्मिक पर्व है |इसी लिए इस दिन को भगवान् श्री क्रष्ण की विधवत पूजा कर आनंद उत्सव मानना चाहिए |
संसार के लोग जब भगवान् श्री क्रष्ण के ग्रहस्थी जीवन के बारें में बात करते है तो लोग इस बात पर उप हास करते है कि भगवानश्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सो आठरानियाँ थी |हिन्दू स्वम् ही ये चर्चा करता फिरता है कि हमारें भगवान् श्री क्रष्ण के सोलह हजार एक सौ आठरानियाँ थी |लेकिन लोग ये सभी प्रस्थति और मरियादा भूल जाते है की श्री क्रष्ण नेजगत हित में क्या कदम उठाया |
सवसे बड़ें अश्रयकी की बात है लोग श्री क्रष्ण की लीलयों की वास्तविकता जाने काशी नरेश पुण्डरीक की तरह जिस नेस्वरूप आदिफर्जी भेष भूसा आदि से अपने को श्री क्रष्ण घोषित कर दिया था तथा संसार के स्वार्थी लोग श्री क्रष्ण के भात ही उस की पूजा करने लगे थे |अंत में उसका आतंक का अंत श्री कर्षण के द्वरा ही हूआ |संसार के स्वर्थी लोग कसी चीज की वस्त्वकता बीना जानें उस का अबलोकन करने लागतें है और बाद में सिरधून धून कर पक्षताते है है तथा अपने भाग्य .कर्म कालयानि समय को वर्था दोष लागतें है
भगवान् श्री क्रष्ण नेनरकासुर चौदस कें दिन ब्रह्मण कनिययो का उद्दार किया तथा जगत को संदेश दिया की हम भी कल किसी कमजोर गरीब असहाय का सहारा बन कर सही मार्ग दर्शन करें सभी जगह यानि जहाँ वर्ष में किसी दिन ज्ञान रुपी प्रकाश नहीं पंहुचा ज्ञान रुपी दीप दान करें एवं अपने जीवनके शास्त्रू काम क्रोध मध् लोभ सभी पर ज्ञान कें द्वरा नियन्त्र करें |अगर इस संसार में देखा जाएँ तो मानबमन के वसीभूत स्वाम ही अपना शास्त्रू तथा स्वम् ही अपना मित्र है संसार में मित्र तभी बनेगे जब मानबस्वाम अपना मित्र बनें तभी वह संसार में पाप कर्म करने से बचसकता है |तथा उस कें अंदर लोक कल्याण की भावना उस कें जीवन को परम आनन्द दाई बनती है |
आप सभी साधकों को दीपावली की ढेर सारी शुभ कामनाएं
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