गजेन्द्र मोक्ष स्त्रोत्र
गजेन्द्र मोक्ष स्त्रोत्र
गजेन्द्र मोक्ष की पौराणिक कथा महारिशी वेड व्यास द्बारा रचित भगवत महापुराण जिसे सुख सागर के नाम से जाना जाता है के पूर्वार्ध में मिलती है। पौराणिक मत के अनुसार अष्टम मान व्येंत्र में हु हु नाम का एक ग्रह मानसरोवर के जल में रहता था जो अत्यन्त बल शाली था। मानसरोवर में हाथिओं के राजा गजेन्द्र जो अपने बल और विवेक के लिए प्रसिद्ध था का संध्या के समय परिवार के साथ जन आना हो गया गज अपनी पत्नी के साथ मानसरोवर में नित्य प्रति जल क्रीडा करता था तथा अपने बचों के साथ भी खेलता था। एक लंबे समय के बाद सरोवर में रह रहे हु हु नाम के ग्रह से गज का बैर हो गया। एक दिन जब गज अपने परिवार के साथ जल क्रीडा करने हेतु मानसरोवर गया हुआ था जल क्रीडा के समय ग्रह ने उसका पैर पकड़ लिया फलस्वरूप दोनों में युद्ध शुरू हो गया गज अपने पैर को छुडाने के लिए भरपूर बल का प्रयोग करने लगा लेकिन जल के अंदर.ग्रह का बल अधिक होने के कारण वो गज को खीनता ही चला गया .यह युद्ध लगातार ६ महीने चलता रहा गज का बल दिन प्रतिदिन कम होता गया ग्रह का बल बढता गया एक दिन निराश मन से उस गज को उसकी पत्नी और बच्चों ने भी छोड़ दिया परिणाम स्वरुप गज निसहाय और अकेला हो गया तब उस गज नें अपना बंधन छुडाने के लिए सांसारिक देवताओं को जिन की वो नित्य प्रति आराधना करता था याद किया लेकिन गज को भंवर में पड़ा देख कोई भी पास नहीं आया इस पर दुखी हो गज नें सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा को अपनी सहायता के लिए पुकारा लेकिन गज को भंवर में पड़ा देख ब्रहमा भी पास नहीं आए जिस के वश दुखी हो गज नें अपनी मृत्यु के बारे में बार बार विचार करने लगा जब वह तन मन दोनों से dउब रहा था उस्सी समय उसे अपने पूर्व जनम की स्मृति हुई तथा पूर्व जनम में गाया जाने वाला स्त्रोत्र भी याद आया क्यूँ की हाथी के शरीर में मैथुनिक कर्म की प्रबलता अधिक होने के कारण आध्यात्मिक ज्ञान कमजोर होता है। इसलिए गज पूर्वजन्म की स्मृति होने पर इश्वर की अराधना करता है। जिसमे वह जल में न डूब कर मरने की बात कहता है। शास्त्रों के अनुसार आठ प्रकार की मृत्यु अकाल मृत्यु कही जाती है जो इस प्रकार हैं। आत्म दाह करनें,ज़हर खाकर मरनें ,अग्नि में जलने, जल में डूब कर मरने,सर्प या किसी त्रियक जानवर के डसने से प्राप्त होने वाली मृत्यु ,राजा के राजदंड से प्राप्त मृत्यु, किसी ब्राह्मण -मुनि के श्राप से प्राप्त मृत्यु ,पिशाच मृत्यु। यह आठों प्रकार की मृत्यु अकाल और अशुभ मृत्यु कहलाती हैं। इअलिये गज जब प्रभु से प्रार्थना करता है तो अपने अमर होने की बात नहीं कहता है केवल वह अपने स्त्रोत्र में यही निवेदन करता है की उसकी मृत्यु इस ग्रह के कारण जल में डूब कर न हो। ऐसी कृपा प्रभु उस पर करें और इसे इस भावः सागर से उबार लें। कुछ मर्मज्ञों का मत है की जब गज प्रभु शरणागत हुआ उस समय वह पूर्ण रूप से डूब चुका था मात्र उसकी जौ के बराबर सूँड रही थी स्त्रोत्र के साथ ही उसने पाया की भगवान् श्री हरि जो सम्पुरण जीवों की आत्मन है सन्निकट होने के कारण सरोवर पर प्रकट हो गए तथा अपने वाहन गरुड़ को भी छोड़ दिया प्रभु को आया देख गज जल में बह कर जाने वाले कमल के पुष्प से उनका अभिवादन करना चाहता था लेकिन उसी समय जल में उत्पन्न लहर के कारण वह भी उस से दूर चला गया परिणाम स्वरुप अपनी यह दशा देख आये हुए सर्व शक्तिमान परमात्मा के सामने गज रोने लगा गज नें उस समय यह भी देखा की प्रारम्भ में उस ने जिन देवताओं को पुकारा था और जो नहीं आए थे प्रभु के आते ही सभी एकत्रित हो गए। इन सभी देवताओं के देखते देखते भगवान श्री हरि नें गज की सूँड को पकड़ कर गज को बाहर निकाला और अपने सुदर्शन चक्र से ग्रह का शीश काट दिया .प्रभु ग्रह ओर गज दोनों को गति दे कर अंतर्ध्यान हो गए। यही कथा का मर्म है.गज के द्वारा किया गया स्त्रोत्र ग्जेंद्र्स्त्रोत्र के नाम से विख्यात हुआ। यह घटना गजेन्द्र मोक्ष के नाम से जाने जानी लगी.इस स्त्रोत्र ओर कथा के कहने सुन ने से प्रभु कृपा प्राप्त होती है। बिन प्रयास ही भावः बंधन कट ते हैं निरंतर पाठ करने वाले साधक को प्रभु अपनी अनुपाय्नी भक्ति प्रदान करते हैं।
गजेन्द्र मोक्ष की पौराणिक कथा महारिशी वेड व्यास द्बारा रचित भगवत महापुराण जिसे सुख सागर के नाम से जाना जाता है के पूर्वार्ध में मिलती है। पौराणिक मत के अनुसार अष्टम मान व्येंत्र में हु हु नाम का एक ग्रह मानसरोवर के जल में रहता था जो अत्यन्त बल शाली था। मानसरोवर में हाथिओं के राजा गजेन्द्र जो अपने बल और विवेक के लिए प्रसिद्ध था का संध्या के समय परिवार के साथ जन आना हो गया गज अपनी पत्नी के साथ मानसरोवर में नित्य प्रति जल क्रीडा करता था तथा अपने बचों के साथ भी खेलता था। एक लंबे समय के बाद सरोवर में रह रहे हु हु नाम के ग्रह से गज का बैर हो गया। एक दिन जब गज अपने परिवार के साथ जल क्रीडा करने हेतु मानसरोवर गया हुआ था जल क्रीडा के समय ग्रह ने उसका पैर पकड़ लिया फलस्वरूप दोनों में युद्ध शुरू हो गया गज अपने पैर को छुडाने के लिए भरपूर बल का प्रयोग करने लगा लेकिन जल के अंदर.ग्रह का बल अधिक होने के कारण वो गज को खीनता ही चला गया .यह युद्ध लगातार ६ महीने चलता रहा गज का बल दिन प्रतिदिन कम होता गया ग्रह का बल बढता गया एक दिन निराश मन से उस गज को उसकी पत्नी और बच्चों ने भी छोड़ दिया परिणाम स्वरुप गज निसहाय और अकेला हो गया तब उस गज नें अपना बंधन छुडाने के लिए सांसारिक देवताओं को जिन की वो नित्य प्रति आराधना करता था याद किया लेकिन गज को भंवर में पड़ा देख कोई भी पास नहीं आया इस पर दुखी हो गज नें सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा को अपनी सहायता के लिए पुकारा लेकिन गज को भंवर में पड़ा देख ब्रहमा भी पास नहीं आए जिस के वश दुखी हो गज नें अपनी मृत्यु के बारे में बार बार विचार करने लगा जब वह तन मन दोनों से dउब रहा था उस्सी समय उसे अपने पूर्व जनम की स्मृति हुई तथा पूर्व जनम में गाया जाने वाला स्त्रोत्र भी याद आया क्यूँ की हाथी के शरीर में मैथुनिक कर्म की प्रबलता अधिक होने के कारण आध्यात्मिक ज्ञान कमजोर होता है। इसलिए गज पूर्वजन्म की स्मृति होने पर इश्वर की अराधना करता है। जिसमे वह जल में न डूब कर मरने की बात कहता है। शास्त्रों के अनुसार आठ प्रकार की मृत्यु अकाल मृत्यु कही जाती है जो इस प्रकार हैं। आत्म दाह करनें,ज़हर खाकर मरनें ,अग्नि में जलने, जल में डूब कर मरने,सर्प या किसी त्रियक जानवर के डसने से प्राप्त होने वाली मृत्यु ,राजा के राजदंड से प्राप्त मृत्यु, किसी ब्राह्मण -मुनि के श्राप से प्राप्त मृत्यु ,पिशाच मृत्यु। यह आठों प्रकार की मृत्यु अकाल और अशुभ मृत्यु कहलाती हैं। इअलिये गज जब प्रभु से प्रार्थना करता है तो अपने अमर होने की बात नहीं कहता है केवल वह अपने स्त्रोत्र में यही निवेदन करता है की उसकी मृत्यु इस ग्रह के कारण जल में डूब कर न हो। ऐसी कृपा प्रभु उस पर करें और इसे इस भावः सागर से उबार लें। कुछ मर्मज्ञों का मत है की जब गज प्रभु शरणागत हुआ उस समय वह पूर्ण रूप से डूब चुका था मात्र उसकी जौ के बराबर सूँड रही थी स्त्रोत्र के साथ ही उसने पाया की भगवान् श्री हरि जो सम्पुरण जीवों की आत्मन है सन्निकट होने के कारण सरोवर पर प्रकट हो गए तथा अपने वाहन गरुड़ को भी छोड़ दिया प्रभु को आया देख गज जल में बह कर जाने वाले कमल के पुष्प से उनका अभिवादन करना चाहता था लेकिन उसी समय जल में उत्पन्न लहर के कारण वह भी उस से दूर चला गया परिणाम स्वरुप अपनी यह दशा देख आये हुए सर्व शक्तिमान परमात्मा के सामने गज रोने लगा गज नें उस समय यह भी देखा की प्रारम्भ में उस ने जिन देवताओं को पुकारा था और जो नहीं आए थे प्रभु के आते ही सभी एकत्रित हो गए। इन सभी देवताओं के देखते देखते भगवान श्री हरि नें गज की सूँड को पकड़ कर गज को बाहर निकाला और अपने सुदर्शन चक्र से ग्रह का शीश काट दिया .प्रभु ग्रह ओर गज दोनों को गति दे कर अंतर्ध्यान हो गए। यही कथा का मर्म है.गज के द्वारा किया गया स्त्रोत्र ग्जेंद्र्स्त्रोत्र के नाम से विख्यात हुआ। यह घटना गजेन्द्र मोक्ष के नाम से जाने जानी लगी.इस स्त्रोत्र ओर कथा के कहने सुन ने से प्रभु कृपा प्राप्त होती है। बिन प्रयास ही भावः बंधन कट ते हैं निरंतर पाठ करने वाले साधक को प्रभु अपनी अनुपाय्नी भक्ति प्रदान करते हैं।
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