वैदिक रीति द्वरा संतान प्राप्ति के उपाय
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From: Shriniwas Sharma
Date: 2017-09-13 18:18 GMT+05:30
Subject: वैदिक रीति सन्तान प्राप्ति हेतु किया गया यज्ञ सफलता दायक
To: shriniwas sharma
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Date: 2017-09-13 18:18 GMT+05:30
Subject: वैदिक रीति सन्तान प्राप्ति हेतु किया गया यज्ञ सफलता दायक
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ज्योतिष वेदों की आंख है हमारे चारो वेदों में अनेक प्रकार के यज्ञ अनुष्ठान आधुनिक चिक्स्था पद्धति से अधिक सफल करी सिद्ध होता है | युज्र्वेद में प्राकतिक चिकसा का विशेष महत्व है जो वेद रीति से चिक्स्था करता है उसी को वेदों ने वेद कंहा है | हमारे वेदों में अनेक इसे सधन है जिस का प्रयोग कर अपने भाग्य के अंधकार को मनाब दूर क्र सकता है |
त्रेता युग में महाराजा दशरथ द्वरा पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ कराया गया था जिस की अध्यक्षता लोमस मुनि द्वरा करी गयी थी उसी के प्रभाव स्वरूप महाराजा दशरथ के चार पुत्र पैदा हुए जिनका नाम आज भी विश्व विख्यात है |
अगर हम वेदों की बात करे तो नस्पुकता संतान हीनता कोई विषय ही नहीं है वह शर्ते की वैध्य हमारा वैदिक रीति को जानने बाला एवं चिक्स्था करने बाला हो दूसरा अनुष्ठान में हमारे पंडित को भी वेदों उन सभी मंत्रो का एवं हवन सामग्री तैयार करने की सारी विधि का ज्ञान होना चाहिए | अगर देखा जाये तो हमारे वैध को ज्योतिष का ज्ञान होना चाहिए एवं ज्योत्षी को औषधियों का भरपूर ज्ञान एवं उन महूर्त नक्षत्रो को पूरण ज्ञान होना चाहिए जिस में वह शुभ फल दाई हो | इस के साथ साथ नाडी आदि का भी ज्ञान परम अब्स्य्क है |
हमारे ज्योतिष पंचांग में भी उतम संतान प्राप्ति हेतु अनेक महूर्त है अगर उनका सहारा लिया जाये तो साधक को निश्चय ही सफलता मिलती है | इस के साथ साथ मैथुन कर्म किन दिनों कोंसे नक्षत्र एवं महूर्त में शुभ फली होगा इस की व्यवस्था है | हमारे शस्त्रों में मैथुन कर्म को दिन में एवं क्रष्ण पक्ष में पूर्ण वर्जित कंहा है जिस से पति पत्नी की सरीरक उर्जा कमजोर होती एवं अनेक बीमारी होने की संभवना होती है जो प्रतक्ष देखी जा सकती है | इस के साथ साथ संध्या कल जिस समय सूर्य अस्थ होने को हो मैथुन कर्म भूल कर नहीं करना चाहिए |
भगवत के पूर्वार्ध भाग के द्वतीय स्कंध में हरिनाक्श की कथा आती है जो हरिनाकाश्य्प का बड़ा भाई था
हमारे शास्त्रों के अनुसार देवता एवं देवं दैत्य कश्यप मुनि की संतान है कश्यप मुनि की दो पत्नियां है १ -दीती जो दैत्यों की मां है | २ अदिति जो देवतायो की माँ है | दिति देवताओ से ईष्या रखती थी एवं देवताओ से बलवान पुत्र चाहती थी | इस के लिए उस ने अपने पति कश्यप से अनुरोध किया लेकिन उन्होंने इस पर कोई सहमती नहीं जिताई | एक दिन संध्या के समय जब कश्यप मुनि संध्या वंदन हेतु जा रहे थे दिति उनके सरीर से वसनायो के वसीभूत होकर लीपट गयी और पुत्र की कामना करने लगी जिस से भावी वस् मैथुनी कर्म हुआ एवं गर्भधारण भी हुआ | जब गर्भ बड़ने लगा एवं दिति ने अपने पति कश्यप से पूछा तो उन्होंने ध्यान रख कर देखा की गर्भ में एक भयानक रक्षिस पल रहा है जो देवो पर भारी होगा एवं प्रथ्वी पर उत्पत्त करेंगा उन्होंने सारी घटना अपनी पत्नी दिति को बतलाई तो वह बहुत प्रश्नं हुई क्यों की वह देवतायो से बल शाली पुत्र चाहती थी | यह बच्चा १६ महा मां के गर्भ में रहा जिस से पैदा होने से पूरब ही शौक की लहर दौड़ गयी यह एक भयानक रक्षिश हुआ जिस का नाम हरिनाक्श हुआ जिस ने प्रथ्वी का हरण किया था एवं भगवन विष्णु ने बारहा रूप धारण कर जल से उपर प्रथ्वी को लाये एवं जल के अंदर ही युद्ध करते हुए बध कर संसार को भय मुक्त किया यह था अशुभ समय में गर्भाधान का प्रभाव | इस के साथ साथ अगर गर्भाधान असुभ समय में हुआ है तो प्रसव भी अशुभ समय में होगा अगर गर्भाधान शुभ समय में हुआ है तो प्रसब भी शुभ समय में होगा अर्थात शुभ समय में किया गया कर्म ही शुभ फल दाई सिद्ध होता है |
हमारे शास्त्रों के अनुसार देवता एवं देवं दैत्य कश्यप मुनि की संतान है कश्यप मुनि की दो पत्नियां है १ -दीती जो दैत्यों की मां है | २ अदिति जो देवतायो की माँ है | दिति देवताओ से ईष्या रखती थी एवं देवताओ से बलवान पुत्र चाहती थी | इस के लिए उस ने अपने पति कश्यप से अनुरोध किया लेकिन उन्होंने इस पर कोई सहमती नहीं जिताई | एक दिन संध्या के समय जब कश्यप मुनि संध्या वंदन हेतु जा रहे थे दिति उनके सरीर से वसनायो के वसीभूत होकर लीपट गयी और पुत्र की कामना करने लगी जिस से भावी वस् मैथुनी कर्म हुआ एवं गर्भधारण भी हुआ | जब गर्भ बड़ने लगा एवं दिति ने अपने पति कश्यप से पूछा तो उन्होंने ध्यान रख कर देखा की गर्भ में एक भयानक रक्षिस पल रहा है जो देवो पर भारी होगा एवं प्रथ्वी पर उत्पत्त करेंगा उन्होंने सारी घटना अपनी पत्नी दिति को बतलाई तो वह बहुत प्रश्नं हुई क्यों की वह देवतायो से बल शाली पुत्र चाहती थी | यह बच्चा १६ महा मां के गर्भ में रहा जिस से पैदा होने से पूरब ही शौक की लहर दौड़ गयी यह एक भयानक रक्षिश हुआ जिस का नाम हरिनाक्श हुआ जिस ने प्रथ्वी का हरण किया था एवं भगवन विष्णु ने बारहा रूप धारण कर जल से उपर प्रथ्वी को लाये एवं जल के अंदर ही युद्ध करते हुए बध कर संसार को भय मुक्त किया यह था अशुभ समय में गर्भाधान का प्रभाव | इस के साथ साथ अगर गर्भाधान असुभ समय में हुआ है तो प्रसव भी अशुभ समय में होगा अगर गर्भाधान शुभ समय में हुआ है तो प्रसब भी शुभ समय में होगा अर्थात शुभ समय में किया गया कर्म ही शुभ फल दाई सिद्ध होता है |
पंडित -श्रीनिवास शर्मा
ज्योतिष विद एवं वास्तु सलहाकार , कथा वाचक
website -www.vedicastrology and vaastu.com
mob -9811352415,8826731440
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