नरकासुर चौदस (छोटी दिवाली) का इतिहास
नरकासुर चौदस (छोटी दिवाली) का इतिहास
दिवाली तम अन्धकार का नाश केर प्रकाश देने का नाम है जिसके माध्यम से मानव मात्र का ही नहीं समस्त प्राणी जगत का कल्याण हो दिवाली पर्व धनतेरस से लेकर अमावस्या तक मनाया जाता है .जिस पर प्रत्येक दिन का अपना अलग इतिहास है नरकासुर चौदस जिसे लोग छोटी दिवाली के नाम से जानते हैं ,का इतिहास भगवान् श्रीकृष्ण के चरित्र से जुड़ा हुआ है .भगवत के मतानुसार द्वापर के अंतिम चरण में भामसुर नाम का असुर हुआ जिसनें अपनी वासनाओं की शांति हेतु १६१०० ऋषि एवं ब्रहम कन्याओं को अपनें कारवास में दल दिया था .पृथ्वी के जागृत मनुष्य तथा भूपति आदि भामासुर को हरानें में नतमस्तक हो गए .इसके बाद देवताओं के राजा इंद्र को भारी चिंता हुई भामासुर के अत्याचार से पृथ्वी पर भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर था जिसको नष्ट करना देवेन्द्र को भी कड़ी चुनौती थी देवेन्द्र नें भगवान् श्रीकृष्ण से भामासुर के अत्याचार को समाप्त करने तथा ब्रह्मण एवं ऋषि कन्याओं को मुक्त करने हेतु द्वारका पहुँच के निवेदन किया ,देवेन्द्र के प्रस्ताव को स्वीकार कर भगवान् श्रीकृष्ण नें भामासुर पर आक्रमण किया लम्बी लड़ाई तथा देव सहयोग के बाद भगवन श्रीकृष्ण आज ही के दिन भामासुर का वध करनें तथा ब्रह्मण-ऋषि कन्याओं को मुक्त करनें में सफल हुए.इन्ही कन्याओं से भगवान् श्रीकृष्ण नें उनके आग्रह पर विशेष परिस्थितियों में पानिग्रहन संस्कार किया.
वैसे भोम शरीर को कहा जाता है और शरीर का असुर वासना एवं काम होते हैं .यदि आध्यात्मिक दृष्टि से इस पर्व की चर्चा करें तो मनुष्य के अन्दर उत्पन्न होने वाली काम वासना का नाश कर ज्ञान वृद्धि करने वाला पर्व है इस सकल संसार में मनुष्य के शरीर से उत्पन्न वासना सबसे प्रबल नाश का कारण है. इसीलिए आज के दिन दीपावली पैर दीप जलने का सबसे बड़ा महत्त्व है. किओं की ज्ञान का दीप अन्दर के कामरूपी शत्रु का नाश कर संसार में प्रसिद्धि एवं लोक कल्याण देने वाला हो जाता है. इस लिए इस दिन भवन मंदिर के साथ साथ उन सभी गंदे तथा अंधकारमय दीप जलने चाहिए जहाँ सारे साल प्रकाश नहीं हुए है.,भगवान् श्रीक्रिशन की लीला गुणगान करना चाहिए.
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