गोवर्धन पूजा का महत्त्व
गोवर्धन पूजा का महत्त्व
दिवाली के अगले दिन यानि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा वाले दिन गोवर्धन के रूप में भगवन श्री कृष्ण की पूजा होती है .गोवर्धन भगवन श्री कृषण का ही एक स्वरुप है जिसको गिरराज धरण के नाम से भी जाना जाता है कहा जाता है की जब भगवन श्रीकृष्ण ब्रज के अन्दर बल लीला करते थे उन दिनों ब्रज में इंद्र की पूजा ,मेघों के अधिपति होने के कारण अन्न दाता के रूप में होती थी तथा लोगों का विश्वास था की इंद्र की वो लोग पूजा नहीं करेंगे तो वर्षा नहीं होगी ,वर्षा के आभाव से अन्न पैदा नहीं होगा अतः सृष्टि का सञ्चालन इंद्र ही करता है वो ही भगवान है . भगवान श्री कृष्ण नें इस परम्परा का खंडन क़र दिया तथा इंद्र की जगह पर एक परबत की पूजा करवानी शुरू की और बतलाया की सभी आपत्तियों से यह परबत हमारी रक्षा करता है अतः देवराज इंद्र से इसका महत्त्व अधिक है गायों के चर्नें के कारण इस परबत का नाम गोवर्धन था पूजा को बंद हुआ देख देवराज इंद्र तिलमिला उठा और उसनें १६ की १६ मेघ मालाएं ब्रिज्मंडल को दुबनें के लिए छोड़ दी फल स्वरुप ब्रज डूबनें लगा और चारोँ ओर त्राहि त्राहि मच गयी.सभी भयभीत लोग भगवान श्री कृष्ण की शरण पहुंचे इसको देख भगवान श्रीकृष्ण गिरिराज की तलहटी में पहुँच गए और उन्होंनें सभी ग्वाल और गोपियों के सहयोग से अपनी छोटी ऊँगली पे उठा लिया तथा सुदर्शन चक्र के माध्यम से इंद्र की मेघ बालाओं से बरसनें वाले पानी को सोख दिया .कहा ये भी जाता है की देवराज इंद्र सात दिन लगातार दिन रात बर्ष करता रहा तथा भगवान श्रीकृष्ण उसके जल को सोखते रहे .फलस्वरूप इंद्र हार गया .
क्षमा मांगनें हेतु कामधेनु गायें लेकर ब्रज में आया और उसनें भगवान श्री कृष्ण की आराधना की उसी दिन से ये पर्व गोवर्धन के रूप में मनाया जानें लगा एवं भगवान श्री कृष्ण की पूजा गिरिराज धरण केरूप में होनें लगी .
ये एक आध्यात्मिक पर्व है. जो जीव को इश्वर की शरणागत देता है .गोवर्धन पूजा गोसेवा के महत्त्व को भी बताती है गोवर्धन की परिकर्मा साडे सात कोस है .इस पूजा में भगवान श्रीकृष्ण के दो स्वरुप हैं :
बालस्वरूप जो यशोदा नंदन है
दूसरा गोवर्धन स्वरुप जो प्राकृतिक स्वरूप है इस पूजा में खाने और खिलनें वाला ,पूजा करने और करानें वाला दोनों ही स्वरुप भगवान श्रीकृष्ण के हैं .ये पर्व इस बात को सिद्ध करता है की सृष्टि का भोगता एवं करता दोनों ही इश्वर हैं ये ही इस पर्व का मुख्य उद्देश्य है जो योगी जनों के लिए प्रिये है
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