ग्रह दशा :३१ अक्टूबर १९८४:१८से १९ मई २०१०
ग्रह दशा :३१ अक्टूबर १९८४:१८से १९ मई २०१०
३१ अक्टूबर १९८४ की ग्रेह स्थति पर ज्योतिषिये आधार पर अगर विवेचन करें तो ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार की बनती है जो मानव जीवन को अत्यंत प्रभावित करने वाली तथा देश के लिए दुर्भागयापुरण सिद्ध हुई .उस समय की ग्रह स्थिति जिसका आंकलन स्वतंत्र भारत की कुंडली में किया जाये तो देश के लिए कमजोर और भयानक परिस्थिति थी जिसका आरम्भ किसी राजनेता के भाषण या धर्म आधार को माना जाये.,तो ज्योतिषीय स्थिति स्पष्ट हो जाती है.स्वतंत्र भारत की कुंडली वृषलगन और कर्क राशी की है जिसका नवांश मीन राशी से बनता है. उस समय कुंडली में सूर्य में केतु का अंतर चल रहा था.केतु भारत की कुंडली में सप्तम घर ,मारक स्थान में है ३१ अक्टोबर वाले दिन कानून का कारक गुरु मंगल के साथ १२ वें घर वानप्रस्थ अवस्था में था. फलस्वरूप जो घटना घटित हुई उस पर कानून और सेना ने नियंत्रण हेतु कोई कार्य नहीं किया
घटना स्थलों से सेनाओं की दुरिएअन होने के कारण घटना घटित होती रही .
इस घटना का एक दूसरा ज्योतिषीय कारण शक्तिशाली सूर्य जो सरकार वा सत्ता का कारक माना जाता है घटना स्थल से दुरी या देश से बाहर होने के कारण सुचना मिलनें देरी हुई तथा नियंत्रण करने में समय लग गया.
आजकल भी मंगल शनि और गुरु की परिस्थिति अनुकूल नहीं है अतः आये दिन अग्नि से सम्बंधित घटनाओं से जन,धन की हानि के संकेत ज्योतिषीय आधार पर हैं .आगामी समय १३ मई से १९ मई तक जिस समय मंगल शनि सूर्य के साथ कुम्भ के नवांश में होगा .कानून के कारक गुरु की कोई दृष्टि नहीं होगी ये मंगल देश की कुंडली के मारक स्थान में गोचर करेगा अतः ये समय क़ा कुछ सम्बन्ध जनहित में नहीं है.इन दिनों में ऐसी कोई घटना घटित हो सकती है जिस क सम्बन्ध अग्नि से होगा और सरकार तथा कानून क कोई नियंत्रण नहीं होगा.१८ मई क दिन अधिक प्रभावित करनें वाला है इन दिनों में जन हानि के संकेत हैं.
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