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Showing posts from September, 2014

DEVI KATYANI

देवी कत्यानी नवरात्री के छटवे दिन देवी कत्यानी की पूजा होती है |पूरण अनुसार देवी कत्यानी का इतहास इस प्रकार है कि एक कतनमक मुनि हूए इन के पुत्र ऋषि कतयहूए इन हो नेमाँ भगवती की बहुत कालतक कठोर तपस्या करी मुनि की प्रबल इच्छा थी की देवी भगवती इन के घर पुत्री के रूप में जन्म लें माँ भगवती नेमुनि की प्रर्थना स्वीकार कर ली कुछ कालबाद जब दानव महिषासुर का अत्याचार प्रथ्वी पर बहुत बडगाया तब ब्रह्मा विष्णू महेश अपना तेज द्वरा महिसासुर के बध हेतु एक तेज उत्पन्न किया महर्षि कात्यान ने सर्व प्रथम उनकी पूजा करी इसी कारण माँ भगवती कत्यानी कहलाई |कुछ लोंग एसा भी मानते है कि माँ कत्यानी मुनि कात्यानके यहाँ पुत्री रूप में पैदा हूई थी |देवी भगवती ने अश्वन क्रष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुकल सप्तमी अष्टमी एवं नौवी को मुनि की पूजा ग्रहण कर दशवी तिथि को महिसासुर का वध किया था |माँ कत्यानी अमोघ फल दयानी है |भगवन श्री क्रष्ण को पति रूप में पाने हेतु ब्रज की गोपियों ने माँ कत्यानी देवी का पूजन किया परिणाम स्वरूप देवी कत्यानी ब्रज मंडल की अराध्य देवी के रूप में प्रसिद हूई |माँ की चार भुजा है |देवी का स्

skand maata ka shesh bhag

माँ  स्कन्द माता भक्तो की सभी अभिलासयो को पूरण करने बाली है| देवी की  उपसना  से इस म्रत्यु लोक में  उसे परम शांति मिलती है एवं सुख का अनुभव होता है |साधक को मोक्ष दवार सहिज सुलभ हो जाता है  माँ स्कन्द देवी की उपसना के साथ बालस्वरूप भगवान् स्कन्द की उपसना स्वयं होने लगती है तथा उन की क्रपा भी जीव को प्राप्त होती है |अत साधक विशेष रुचि के साथ स्कन्द माता की उपसना करें |देवी सूर्य मंडल की अधिस्त्री देवी है |जिस कें कारण साधक को साधना से विशेष तेज प्राप्त होता है |अत साधक को एकाग्रित भाव उपसना करनी चाहिए |देवी की उपासना साधक को सभी कामनाये पूर्ण करने बाले होती है 

स्कन्द माता

नव रात्रि के पंचम दिन देवी स्कंद माता का पूजन होता है |पुराणों में स्कन्द नाम भगवन कार्तिकेय  जी का है |जो देवासुर संग्राम में देवो के सेनापति बने तथा भयानक देत्य तारका सुर का नाश किया था | पुराणों में कर्तिके  जी को  शक्ति धर के नाम से भी जाना जाता है इन का बहन मोर है | भगवन कार्तिके की देवी को माँ होने के कारण स्कन्द माता के नाम से जाना जाता है |इन की पूजा नवरात्री के पाचवे दिन होती है |उस दिन साधक का मन विशुद्ध  चक्र में होता है |इन के विग्रह में भगवन स्कन्द जी माँ की गोद में बेठे होते है |देवी की दाई भुजा  जो उपर को उठी होती है कमल पुष्प है |वाई उपर बलि भुजा बर  मुद्रा में है |वाई तरफ की नीचे से उपर की और उठी भुजा देवी कमल पुष्प लिए हूए है देवी का  सुरूप पूर्ण ते शुभ्र है |माँ भगवती का बाहन सिंह है  नवरात्री के पांचवे दिन कमल पुष्प  महत्व माना जाता है इस चक्र में उपस्थित मन बाले साधक समस्थ बह किर्या एवं चित विर्तियो का लोप हो जाता  है |

devi kusmanda

नवरात्री कें चोथे दिन देवी कुष्मांडा का पूजन होता है |इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में होता है अत साधक को अतियंत निर्मल पवित्र मन से भगवती की उपसना करनी चाहिये |देवी की उपसना से भक्तो के सभी रोग शोक नष्ट हो जातें है इस में कोई संदेह नहीं है |देवी की क्रपा से साधक यश  बल और निरोगता प्राप्त करता है माँ भगवती की क्रपा से साधक के सभी बधायो का नाश होता है भगवती अल्प सेवा से प्रशन्न होती है अत शंसार में भाव बधायो से मुक्ति चाहिए तो साधक को कुष्मांडा देवी की शरण लेनी चाहिए इन की क्रपा से परम पद की प्राप्ति होती है |अत साधक को चाहिए की पुराणओ में वर्णित निति के द्वरा देवी की उपसना करनी चाहिए |एसा करने से भक्त को सुख समर्धि प्राप्त होती है तथा परम पद भी | बोलिए सांचे दरवार की जय , जय माता की प्रेम से                                                       .   ..

maa shail putri

माँ भगवती शैल पुत्री पहले नवरात्री मै माँ शैलपुत्री का पूजन होता है | पर्वत राज हिमालय की पुत्री कें रूप में उत्पन्न होने कें कारण इन का नाम शैल पुत्री है |शैलपुत्री बैल पर सवार है इन के दाए हाथ में त्र्सुल तथा वाये हाथ में कमल पुष्प शोभित है |ये नव दुर्गाओ में प्रथम है शैल पुत्री पूर्व जन्म दक्ष प्रजा पति के यहाँ उत्पन्न हुयी थी उस समय इन का नाम सती था | इनका विवहा उस समय भगवन शिव के साथ हूआ था |एक वार दक्ष प्रजापति द्वरा वहुत बड़ा यग हरिद्वर कनखल में यग किया गाया था सभी देवो को बुलाया था लेकिन भगवन शिव को निमंत्र नहीं भेजा गाया था |इस यग भगवन शिव ,भगवन विष्णु तथा ब्रह्मा भी नहीं पहुचे थे |सती इस यग में हट कर चली गयी थी तब सती को अपमान का सामना करना पड़ा इतना ही नहीं भगवान शिव का अपमान देख कर तो सती दंग रह गयी |परिणाम स्वरूप सती नेयोग समाधि लेकर अपने को नष्ट कर लिया था |कुछ लोंग सती द्वरा अग्नि समान की कथा कहते है लेकिन शास्त्र केवल योग समाधि का ही प्रणाम मानते है |लेकिन बस्त्विक बात यह की माँ भगवती भगवन शिव का अपमान नहीं सह सकी तथा उन्होंने योग समाधि लेकर अपने को नष्ट कर