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Showing posts from November, 2010

कुंडली में राहू

कुंडली में राहू का प्रभाव ज्योतिष अनुसार राहू और केतु सूर्य के क्रांति पथ पर पड्नें वाले वो बिंदु हैं जिसका पृथ्वीके जन जीवन पे प्रभाव पड़ता है किन्तु इनको ग्रह नहीं माना जाता है .यह दो बिंदु हैं तथा जिनका सूर्य के चारोँ ओर अन्य ग्रहों की तरह परिक्रमण नहीं है. लेकिन ज्योतिष शास्त्र का मानना है की इनका जन जीवन पर गहरा प्रभाव होता है लेकिन यह किसी भी राशी का अधिपत्य नहीं करते हैं ना ही इनकी कोई राशी होती है. अर्थात यह जिस ग्रह की राशी में स्थित होते हैं उसी का अधिपत्य ले लेते हैं तथा उसी ग्रह के सामान कार्य करते हैं वैसे स्वाभाव के अनुसार केतु को मंगल के सामान बताया गया है और राहू को शनि के सामान बताया गया है राहू का प्रभाव: राहू को शनि के सामान वजा ग्रह कहा गया है अर्थात जिग भाव में स्थित होता है उसे अत्यंत सक्रिय क़र देता है फलस्वरूप अत्यंत सक्रियता के कारण उस भाव का नाश होने लगता हैं .अगर यह स्थिति कुंडली के ६,८,१२ भाव में हो तो अच्छी मानी जाती है. यह भाव ख़राब कहे गाये हैं और इनके सक्रिय होनें से जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव नहीं पड़ता है. लेकिन अगर राहू केंद्र या त्रिकोण भाव के स्व

गोवर्धन पूजा का महत्त्व

गोवर्धन पूजा का महत्त्व  दिवाली के अगले दिन यानि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा वाले दिन गोवर्धन के  रूप में भगवन श्री कृष्ण  की पूजा होती है .गोवर्धन  भगवन श्री कृषण का ही एक स्वरुप है जिसको गिरराज धरण के नाम से भी जाना जाता है कहा जाता है की जब भगवन श्रीकृष्ण ब्रज के अन्दर बल लीला करते थे  उन दिनों ब्रज में इंद्र की पूजा ,मेघों के अधिपति होने के कारण अन्न दाता के रूप में होती थी तथा लोगों का विश्वास था की इंद्र की वो लोग पूजा नहीं करेंगे तो वर्षा नहीं होगी ,वर्षा के आभाव से अन्न पैदा नहीं होगा अतः सृष्टि का सञ्चालन इंद्र ही करता है वो ही भगवान है . भगवान श्री कृष्ण नें इस परम्परा का खंडन क़र दिया तथा इंद्र की जगह पर एक परबत की पूजा करवानी शुरू की और बतलाया की सभी आपत्तियों से यह परबत हमारी रक्षा करता है अतः देवराज इंद्र से इसका महत्त्व अधिक है गायों के चर्नें के कारण इस परबत का नाम गोवर्धन था पूजा को बंद हुआ देख देवराज इंद्र तिलमिला उठा और उसनें १६ की १६ मेघ मालाएं ब्रिज्मंडल को दुबनें के लिए छोड़ दी फल स्वरुप ब्रज डूबनें लगा और चारोँ ओर त्राहि त्राहि मच गयी.सभी भयभीत लोग भग

शुभकामनाएं सहयोग वा आशीर्वाद

शुभकामनाएं सहयोग वा आशीर्वा द मनुष्य जीवन में परोपकार की भावनाएं उअके जीवन की सफलता के आधार को सरल और सहज बनाती हैं .अगर मानव अपना कर्तव्य समझ क़र किसी कमजोर ,असहाय और वृद्ध व्यक्ति की सेवा वा सहयोग करता है तो उसके बदले में उसे मिलनें वाले आशिर वचन भविष्य में सफलता की सीडी बन जाते हैं इस लिए भारतीय दर्शन नें परोपकार को सबसे बड़ा धर्म कहा है तथा दूसरों को पीड़ा या कष्ट देने को सबसे बड़ा अन्याय माना है . ज्योतिष शास्त्र में भी कुंडली के पंचम घर से पूर्व जन्म का लेखा जोखा प्रकट होता है जो नावें घर से सम्बंधित दशा आनें पर मनुष्य को भोगना पड़ता है अर्थात कुंडली का पंचम घर पर अगर शुभ प्रभाव है तो पूर्व में किये हुए कर्मों के आशिर वचन या वरदान के कारण मनुष्य को जीवन में सफलता मिलती है अगर पंचम घर पर अशुभ और पाप प्रभाव है तो पूर्व में किये हुए कर्म का सम्बन्ध किसी को कष्ट पीड़ा (श्राप ) होनें के कारण जीवन में अड़चन आती हैं तथा असफलता मिलती है. अगर गहनता के साथ किसी कुंडली का अध्यन्न गम्भीरता के साथ किया जाये और देखा जाये की उसका नवांश का सम्बन्ध पंचम और पंचमेश से है तो वर्तमान जीवन की साड़ी सफ