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Showing posts from October, 2010

दीपावली पर वास्तुशास्त्र अनुसार करनें योग्य उपाय

दीपावली पर वास्तुशास्त्र अनुसार करनें योग्य उपाय दीपावली ज्ञान और समृद्धि का पर्व है. माना जाता है की इस दिन शुरू किया गया कोई कार्य एक लम्बे समय तक निर्विघन चलता है तथा सफल होता है .मनुष्य के चहु मुखी विकास के लिए विवेक,धन और ईश्वरीय कृपा की आवश्यकता पड़ती है जो दीपावली पर भगवान् गणेश ,लक्ष्मी तथा पालनहार विष्णु की कृपा से प्राप्त होती है. यह माना जाता है की दीवाली वाली रात अर्ध रात्रि से धन की देवी लक्ष्मी अपनें पति भगवान् विष्णु के साथ पृथ्वी पर भ्रमण करती है तथा अपने जन्म उत्सव देखती है .उनके भ्रमण के समय जिस घर के द्वारेखुले मिलते हैं ,ज्योतिर्मय मिलते हैं या फिर उस समय जिस घर में उनकी पूजा हो रही होती है उन सभी घरों में अपनें पति के साथ लक्ष्मी चिर काल के लिए निवास करती है. लक्ष्मी और लक्ष्मी नारायण की प्रसन्नता हेतु वास्तु विदों नें कुछ उपाय इस प्रकार बतलाये हैं १) दिवाली वाले दिन साधक को प्रातः काल शांत भाव से उत्तार दिशा   की तरफ मुह क़र के  बैठ लक्ष्मी वा लक्ष्मी नारायण का ध्यान करना चाहिए . २)पारिवारिक वृद्ध जानो से आशीर्वाद ग्रहण क़र घर की सफाई करनी चाहिए तथा घर के प्रांग

दीपावली पूजन

                           दीपावली पूजन  ॐ महलक्ष्म्ये च विद्माही विष्णु पत्नी च धीमहि           तन्नो लक्ष्मी प्र चोदयात || दीपावली को ज्ञान ,सुख ,समृद्धि का पर्व माना गया है|वैसे तो विजयादशमी ,राम नवमी ,वसंत पंचमी और दीपावली किसी काम को शुरू करनें के अभिजत महूरत माने गाये हैं ज्योतिष अनुसार इस दिन शुरू किया गया काम सुख कारी एवं सफल होता है तथा निर्विघन पूरण होता है| दिवाली के दिन से राम राज्य की अखंडता का ज्योतिष ये ही कारण मानती है | वैसे  दिवाली पर्व के पीछे अनेक पौराणिक कथाओं तथा मान्यताओं का प्रश्न है रामराज्य की कथा के साथ साथ लक्ष्मी का जन्म भगवन श्री कृषण द्वारा भामसुर का वध ,कर पृथ्वी का भार उतारनाके साथ साथ अनेक पौराणिक कथा हैं जो इस पर्व से जुडी हुई हैं | कहा जाता है की धन वा गुणों की देवी लक्ष्मी  का जन्म दिवाली के दिन ही समुद्र मंथन के समय हुआ था. जो नारायणी स्वरुप में जन कल्याण हेतु मानी गयी हैं ल लक्ष्मी की  बडी बहन कुलक्ष्मी का जन्म : कहा जाता है की समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी की बडी बहन कुलक्ष्मी का जन्म लक्ष्मी से पहले हुआ शास्त्र अनुसार कुलक्ष्मी को १४ स्थान समाज म

पूर्व जन्म सिद्धांत ऋणआध बंधन (श्राप)

पूर्व जन्म  सिद्धांत ऋणआध बंधन  (श्राप)  मानव को अपनें जीवन के दुःख एवं दर्द को जाननें एवं उसके निवारण हेतु उपाय करनें के सदैव चेष्टा रहती है. ज्योतिषीय मान्यता अनुसार प्रत्येक जीव को अपनें पूर्व जन्म में किये कर्मों के फल भोगनें पड़ते हैं जिसके परिणाम स्वरुप वो सुख-दुःख की अनुभूति करता है. साधारण तय  लोग समाज में पूर्व जन्म के ऋण  संताप की कहानी कहते सुनते देखे जाते हैं अर्थात भारतीय वैदिक सिद्धांत तथा दर्शन दोनों ही इस बात पर बल देते हैं के पूर्व जन्म में किये कर्म के द्वारा ही वर्तमान जीवन में सुख-दुःख उत्त्पन्न होते हैं ज्योतिष की मान्यता के अनुसार कुंडली का पंचम घर तथा पंचमेश पूर्व जन्म के अच्छे वा बुरे कर्म एवं उनके परिणाम की ओंर संकेत करता है अगर पंचम घर पर शुभ प्रभाव है तथा पंचमेश भी शुभ प्रभाव में है तो पूर्व जन्म के अच्छे कर्म एवं उनके प्रभाव के कारण जिन्हें वरदान कहा गया है अनायास ही जीवन में सफलता मिलती है.अगर पंचमेश और पंचम घर पर अशुभ प्रभाव है तो जीवन को श्रापित समझना चाहिए जिसके कारण कर्म फल अनुकूल नहीं मिलता है एवं अनेक परेशानी झेलनी पड़ती है. ज्योतिषीय सिद्धांत के अ