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Showing posts from May, 2010

स्वगोत्र :खाप पंचायत : विवाह

स्वगोत्र :खाप  पंचायत : विवाह विवाद भागवत पुराण के अनुसार ब्रह्मा के बाएँ अंग से महिला की उत्पत्ति हुई और दायिने अंग से पुरुष की उतपत्ति हुई अर्थात स्त्री और पुरुष एक ही शारीर के दो अभिन्न अंग है जिनके कारण सृष्टि का सृजन हुआ और चलता आ रहा है जहाँ तक गोत्र का निर्धारण है हिन्दू समाज में उसकी दो प्रकार से व्यवस्था है पहली पिता के द्वारा दूसरी गुरु के द्वारा/पति के द्वारा .इसके साथ साथ  किसी भी महिला को अपने जीवन साथी चुनने की गुण,वंश और बल के आधार परदी गयी है. जिस से प्रभावित हो कर कोई स्त्री अपने जीवन की रक्षा एवं व्यवस्था का भार किसी पुरुष को सोंपती है या उसके माता पिता कन्यादान के माध्यम से करते हैं इसके बाद कन्या का नाम गोत्र व जाति पति की सुविधा अनुसार हो होती है. हिन्दू समाज में कुछ लोग क्षत्र वाद को मान्यता देते हैं ,कुछ वंश वाद को देते हैं कुछ गोत्र वाद को देते हैं अर्थात अपनी नानी मामी आदि के गोत्र में विवाह करना वर्जित मानते हैं,कुछ लोग एक ही गोत्र में विवाह को ठीक मानते हैं लेकिन क्षेत्रीय अन्तेर को अनिवार्य मानते हैं एवं कुछ दुसरे लोग बुआ,विवाहित बहन के गोत्र में शादी को वर

कंहा लगाय कोन सा पौधा घर के अंदर

  वृक्ष  इस  धरा का  आभूषण  है | वृक्ष  धरा  का  देवता  है |  सभी  विकारोको  अपने  उपर  ग्रहण  कर  मानब  जीवन  में  सुख  तथा  सन्ति  देने  बाला  वृक्ष  ही  मना गया  है | महाभारत  काव्य  के  राचीय्ता  वेद  व्यास  जी  ने  अपने  महाभारत  पुराणमें  लिखा  है किवृक्ष  श्राष्टी के  अलंकार  है  तथा  मानब जीवन  के  देवता  भी  है | वृक्ष  कटना  महा  पाप  है  तथा  वृक्ष  रोपण  महा  पुण्य  है इतना  ही  नही  वेद  व्यास जी ने  महा भारत  में  लिखा  कि वृक्ष  रोपण पुत्र  के  समान  सुभ  फळ  दायी  है  जीन  के जीवन  में  संतान  नही  है  ऐसे  दाम्पत्ती  वृक्ष  रोपण  कर  के  पुत्र  प्राप्ती  के  समान  पुण्य  प्राप्त  कर  सकते  है अर्थात  वृक्ष  कटना   पुत्र  वधके  समान  दुख  दायी  है | घर  के  अंदर  वृक्ष  तथा  लातायो  का  विशेष  महत्य  है जिस  से  घर  के  वास्तू  दोष  दूर  होते  है  तथा  जीवन  में  सुख  ओर  सन्ति  मिळती  है | लेकीन  वृक्ष  रोपण से  पहले  ये विचार  कर  लेना  चाहिये  कि  कोनसा  पौधा  कहा  लागाय जाये |वास्तू  अनुसार  इनकाविवेचन  इस  प्रकार  है | [१]-अशोक ,पुन्नाग ,मौलसिरी,शमी

ग्रह दशा :३१ अक्टूबर १९८४:१८से १९ मई २०१०

ग्रह दशा :३१ अक्टूबर १९८४:१८से १९ मई २०१० ३१  अक्टूबर १९८४ की ग्रेह स्थति  पर ज्योतिषिये आधार पर अगर विवेचन करें तो ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार की बनती है जो मानव जीवन को अत्यंत प्रभावित  करने वाली तथा देश के लिए दुर्भागयापुरण सिद्ध हुई .उस समय की ग्रह स्थिति जिसका आंकलन स्वतंत्र भारत की कुंडली में किया जाये तो देश के लिए कमजोर और भयानक परिस्थिति थी जिसका आरम्भ किसी राजनेता के भाषण या धर्म आधार को माना जाये.,तो ज्योतिषीय स्थिति स्पष्ट हो जाती है.स्वतंत्र भारत की कुंडली वृषलगन और कर्क राशी की है जिसका नवांश मीन राशी से बनता है. उस समय कुंडली में सूर्य में केतु का अंतर चल रहा था.केतु भारत की कुंडली में सप्तम घर ,मारक स्थान में है ३१ अक्टोबर वाले दिन कानून का  कारक गुरु मंगल के साथ १२ वें घर वानप्रस्थ अवस्था में था. फलस्वरूप जो घटना घटित हुई उस पर कानून और सेना ने नियंत्रण हेतु कोई कार्य नहीं किया घटना स्थलों से सेनाओं की दुरिएअन  होने   के कारण घटना घटित होती रही . इस घटना का एक दूसरा ज्योतिषीय कारण शक्तिशाली सूर्य जो सरकार वा सत्ता का   कारक माना जाता है घटना स्थल से दुरी या दे