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Showing posts from June, 2009

गजेन्द्र मोक्ष स्त्रोत्र : मूल पाठ

गजेन्द्र मोक्ष स्त्रोत्र : मूल पाठ विश्व की उत्पत्ति का कारण हरि जो स्वयं बने, सत चित और आनंद के रस से सने ॥ दूर करते तीन ताप को कृपा मय द्रष्ट से । नमन है श्री क्रष्ण को सुख दे हमें निज द्रष्ट से।। इस सम्पुरण संसार की रचना इश्वर की इच्छा पर ही हुई है वाही सृष्टि की उत्पत्ति संघार और पालन के कार्य और कारण है जिन का स्वरुप सत्य चित और आनंद से परिपूरण है। जिनकी कृपा मय दृष्टि दैविक ,दैहिक और भौतिक सभी प्रकार के कष्टों कोप दूर करने वाली है। ऐसे परमात्मा भगवान् श्री क्रष्ण को हमारा नमन है। निवेदन है कि अपनी कृपा मय दृष्टि सुख और आनंद दें। गज ग्रेह

गजेन्द्र के पूर्व जन्म संस्कार

गजेन्द्र के पूर्व जन्म संस्कार लोक शिक्षा के लिए अवतार था ,जिस ने लिया। जन अदृशय हो कर के भी , जन स्दृशय को कौतिक किया ॥ राम नाम ,नाम जिसका सर्व मंगल धाम है । नमन है श्री कृष्ण को ,श्रद्घा में प्रणाम है ॥ भगवान् श्री हरि के दर्शन पा कर ग्रह श्री हरि के समान रूप बना कर सभी देवताओं के देखते देखते देव लोक को चला गया तथा गजेन्द्र भी अपने हाथी की योनी को छोड़ कर श्री हरि के समान रूप वाला होकर वैकुण्ठ धाम को गया। इस रहस्य के पीछे भगवत महा पुराण में गज और ग्रह दोनों के पूर्व जन्म संकार की कथा मिलती है जिस से यह सिद्ध होता है कि सृष्टि का प्रत्येक जीव अपने पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार ही सुख और दुःख भोगता है। सुखदेव जी ने अर्जुन पौत्र परीक्षत को समझाते हुए उनके पूर्व जनम कि कथा का वर्णन इस प्रकार किया कि गज पूर्व जन्म में पांडव कुल में उत्पन्न इन्देर्धुमन नाम का राजा था जो प्रजा पालन में कुशल वैष्णो का चरण अनुरागी था कालांतर में उसने इस आशय से राज पाठ स्त्री और पुत्र सभी का त्याग कर दिया कि वह प्रभु भक्ति कर अपने जीवन को सफल और सुखद बनाएगा फलस्वरूप इन्देर्धुमन जंगल में जा कर प्रभु चरणों

गजेन्द्र मोक्ष स्त्रोत्र

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गजेन्द्र मोक्ष स्त्रोत्र गजेन्द्र मोक्ष की पौराणिक कथा महारिशी वेड व्यास द्बारा रचित भगवत महापुराण जिसे सुख सागर के नाम से जाना जाता है के पूर्वार्ध में मिलती है। पौराणिक मत के अनुसार अष्टम मान व्येंत्र में हु हु नाम का एक ग्रह मानसरोवर के जल में रहता था जो अत्यन्त बल शाली था। मानसरोवर में हाथिओं के राजा गजेन्द्र जो अपने बल और विवेक के लिए प्रसिद्ध था का संध्या के समय परिवार के साथ जन आना हो गया गज अपनी पत्नी के साथ मानसरोवर में नित्य प्रति जल क्रीडा करता था तथा अपने बचों के साथ भी खेलता था। एक लंबे समय के बाद सरोवर में रह रहे हु हु नाम के ग्रह से गज का बैर हो गया। एक दिन जब गज अपने परिवार के साथ जल क्रीडा करने हेतु मानसरोवर गया हुआ था जल क्रीडा के समय ग्रह ने उसका पैर पकड़ लिया फलस्वरूप दोनों में युद्ध शुरू हो गया गज अपने पैर को छुडाने के लिए भरपूर बल का प्रयोग करने लगा लेकिन जल के अंदर.ग्रह का बल अधिक होने के कारण वो गज को खीनता ही चला गया .यह युद्ध लगातार ६ महीने चलता रहा गज का बल दिन प्रतिदिन कम होता गया ग्रह का बल बढता गया एक दिन निराश मन से उस गज को उसकी पत्नी और बच्चों ने भी छोड़

स्वेत आर्क के वास्तु गणेश

स्वेत आर्क के वास्तु गणेश वास्तुशास्त्र में हिंदू दर्शन के अनुसार गणेश की प्रतिमा तथा पूजन का आवासीय शुद्धि एवं अनुकूल ऊर्जा के लिए विशेष महत्तव है इसलिये सभी प्रकार के वास्तु दोषों को दूर करने हेतु दोष्वाले स्थान पर वास्तु गणेश लगाने का विशेष प्राचीन विधान है। वैसे तो वास्तु गणेश अनेक प्रकार की धातुओं के बनाये जाते हैं जिन में सभी के अपने अलग अलग प्रभाव हैं.लेकिन स्वेत आर्क का वास्तु गणेश सभी प्रकार के दोषों को मुक्ति हेतु सबसे सरल साधन तथा मनोकामना सिद्ध करनेवाला कहा जाता है। स्वेत आर्क एक ऐसा पौधा होता है जिसको हिंदू दर्शन के अनुसार साक्षात् ही गणेश का रूप कहा जाता है इस पौधे के अंतर्गत अनेक औश्धिये एवं दैविक गुण होने के साथ साथ एक विशेष यह भी गुण है कि इसकी जड़ में स्वयं गणेश जी कि आकृति बनी होती है। अगर जड़ को ध्यान से देखा जाए तो इसके बराबर में निकली दो शाखाएँ गणेश जी के दो दातों का कार्य करती हैं एवं इस से आगे का भाग साक्षात् गणेश जी का रूप बना देता है। इस लिए इस पौधे के पूजन तथा प्रतिमा का विशेष महत्त्व है। प्रतिमा के आभाव में इसकी लकड़ी एवं पुष्प पत्ते सभी भवन को वास्तु दो